हिमाचल को बचाने के लिए बनी धारा 118
पहाड़ी राज्य की बेशकीमती जमीनों को बचाने के लिए प्रदेश में धारा 118 का कानून लाया गया। वर्ष 1972 के इस एक्ट के पीछे स्वर्गीय मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार की मंशा थी कि यहां की जमीनें बाहर से आने वाले लोग न खरीद सकें। हिमाचल के लोग तब धन-धान्य में इतने ज्यादा प्रभावशाली नहीं थे, जिसके चलते बाहर से आने वाले लोग यहां पर उनसे जमीन खरीदने लगे और अपना व्यापार आगे बढ़ाने लगे। कुछ मामले स्वर्गीय परमार के ध्यान में आए, जिसमें वे लोग मिले, जिन्होंने अपनी जमीन बेची थी और बाद में उन्हीं लोगों के पास दास बन गए थे। इन हालातों को देखने के बाद तत्कालीन विधानसभा में एक्ट लाया गया, जिसमें फिर बार-बार आगे की सरकारें संशोधन करती रहीं। कांग्रेस ने इस एक्ट में एक दर्जन से अधिक बार संशोधन किया है, जिसे उनकी सरकार समय की जरूरत बताती रही। वर्तमान में यह एक्ट और इसकी मंशा कटघरे में खड़ी है, क्योंकि ऐसे लोगों को यहां धारा 118 की मंजूरियां दे दी गईं, जिन्होंने इसका दुरुपयोग किया। प्रदेश में बने जस्टिस सूद के आयोग ने धारा 118 के तहत दी गई मंजूरियों पर कई तरह के सवाल खड़े किए हैं। यही वजह है कि वर्तमान भाजपा सरकार ने इस एक्ट की परमिशन को खंगालना शुरू कर दिया है और इसे अधिक सख्त बनाने के लिए नए नियम लागू किए हैं। पहले बिना विभागों की एनओसी के राजस्व महकमा अपने नियमों को पूरा होने पर एनओसी दे देता था, इसमें सिर्फ विभागों का इसेंशियल सर्टिफिकेट ही देखा जाता था। यहां पर बिजली परियोजनाओं के निर्माण, उद्योगों के निर्माण व होटल इकाइयों को खड़ा करने की इजाजतें दी गई हैं, जिससे एक बड़ा स्ट्रक्चर खड़ा हो चुका है। वर्तमान में जो नियम बदले गए हैं, उसके मुताबिक संबंधित विभागों की जिम्मेदारी तय की गई है। विभाग तब तक किसी को भी एनओसी नहीं दे सकते, जब तक सभी नियम-कायदों को पूरा नहीं किया जाता। इसके बाद मामला राजस्व विभाग के पास आएगा और तब सरकार इसे देखेगी। यहां बिल्ड-अप स्ट्रक्चर को लेने के लिए भी नियमों में बदलाव किया गया है और यह पूरा मामला नगर नियोजन विभाग देखेगा।
हर माह पहुंच रहे 15 आवेदन
धारा 118 के तहत प्रदेश में हर महीने 15 आवेदन मंजूरी के लिए सचिवालय तक पहुंचते हैं। जिलाधीशों के माध्यम से ही अब राजस्व विभाग को सभी मामले पहुंचते हैं। लंबित मामले कितने हैं, इसकी जानकारी सभी जिलाधीशों के पास मौजूद है। राजस्व विभाग का कहना है कि उनके पास वर्तमान में कोई भी मामला लंबित नहीं है, क्योंकि जिन मामलों में आपत्तियां लगती हैं उन्हें भी जिलाधीशों को भेजा जा चुका है। प्रमुख इकाइयों में उद्योग, बिजली परियोजनाएं ही शामिल हैं। इनके अलावा सरकार दूसरे मामलों में मंजूरी देने में ज्यादा तवज्जो नहीं देती। शिक्षण संस्थानों में निजी विश्वविद्यालयों को पहले ही जमीनें दी जा चुकी हैं और वर्तमान में सरकार के पास किसी भी निजी विश्वविद्यालय का प्रस्ताव लंबित नहीं है। सीमेंट कंपनियों के कुछ आवेदन हैं और उनके लिए नियम अधिक कड़े हैं।
कांग्रेस के वक्त हुआ धारा 118 में बदलाव
प्रो. धूमल : देश में संविधान के तहत सभी को रहने का हक है। कोई भी व्यक्ति कहीं भी स्वतंत्रतापूर्वक रहकर व्यवसाय भी कर सकता है।
प्रो. धूमलः धारा-118 प्रदेश के हित में है। इसका जब भी संशोधन हुआ, कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल के दौरान ही हुआ। इसके दुरुपयोग की जांच के लिए ही मौजूदा सरकार ने जस्टिस डीपी सूद जांच आयोग गठित किया था।
प्रो. धूमल : प्रदेश के पढ़े-लिखे बेरोजगारों को जितना रोजगार मिलना चाहिए, नहीं मिल सका है। मौजूदा सरकार ने 70 फीसदी रोजगार की शर्त को लागू करवाना सुनिश्चित बनाया है। कुशल कारीगरों के लिए हिमाचल में आईटीआई और इंजीनियरिंग कालेज खोले गए हैं।
भाजपा सरकार ने किया दुरुपयोग
वीरभद्र सिंह : ठाकरे के आंदोलन को किसी भी स्तर पर सही नहीं ठहराया जा सकता। भारत धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है। पूरे देश में कोई भी नागरिक कहीं भी व्यवसाय कर सकता है।
वीरभद्र सिंह : धारा-118 को प्रदेश हित में लागू किया गया था, मगर भाजपा सरकार ने इसका दुरुपयोग किया है। सत्ता में आने पर दूध का दूध व पानी का पानी किया जाएगा।
वीरभद्र सिंह : 70 फीसदी रोजगार के लिए कांग्रेस की सरकारों ने इसे गंभीरता से व सख्ती से लागू करवाने के कदम उठाए थे। आने वाले समय में भी इसे और गंभीरता से लागू करवाया जाएगा। प्रदेश में बेरोजगारी उन्मूलन के लिए जो भी संभव कदम हैं, उठाए जाएंगे।
भाषा-संप्रदाय पर न बंटे देश
सुशांत : राष्ट्रीय दृष्टि से यह सही नहीं है। भाषा व संप्रदाय के आधार पर देश को बांटा जाना सही नहीं है। इससे ज्यादा टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा।
सुशांत : धारा-118 प्रदेश के हित में है। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। इससे ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दूंगा।
सुशांत : 70 फीसदी रोजगार की शर्त को पूरी तरह से लागू करने की आवश्यकता है।
धारा 118 हिमाचल के हित में
कौल सिंह : ठाकरे को लोकतांत्रिक देश में ऐसे ऐलान करने का कोई हक नहीं है। देश के संविधान में सभी नागरिकों को स्वतंत्रतापूर्वक कहीं भी व्यवसाय करने या रहने की छूट है।
कौल सिंह : धारा-118 प्रदेश के हित में है। इसका दुरूपयोग किन कारणों से हो रहा है, करने वाले कौन लोग हैं। इसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए। कांग्रेस पहले ही हिमाचल ऑन सेल के आरोप लगा चुकी है।
कौल सिंह : घोषणाएं करने से कुछ नहीं होता। उन्हें जब तक सख्ती से अमलीजामा नहीं पहनाया जाता है, तब तक ऐसी शर्तों का कोई मतलब नहीं है। नौ लाख बेरोजगारों से युक्त इस देश में ऐसी शर्तें गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है।
ठाकरे के आंदोलन
में नहीं पड़ेंगे
महेश्वर : पूरा देश एक है। हम ठाकरे के इस आंदोलन में न तो पड़ना चाहेंगे और न ही प्रतिक्रिया देना वाजिब समझेंगे। देश के नागरिकों को पूरे देश में कहीं भी रहने का हक है।
महेश्वर : धारा-118 हिमाचल के लोगों की जमीन के संरक्षण के लिए लागू की गई थी, मगर इसकी आड़ में अब बेनामी सौदे होने लगे हैं। धारा-118 के तहत बेटा तो अपने बाप की जमीन नहीं बेच सकता है।
महेश्वर : शर्त तो बिलकुल सही है, लेकिन इसे सख्ती से लागू नहीं करवाया जा सका है। किसी भी कारखाने को स्थापित करने से पहले पढ़े-लिखे बेरोजगारों को संबंधित उद्योग प्रबंधन बतौर स्किल्ड वर्कर अपने खर्चे पर अनुभव हासिल करवाए।