हिमाचल के पढ़े-लिखे लोग बिटिया के दुश्मन
शिमला — हिमाचल में ज्यादा पढ़े-लिखे लोग ही बेटियों के दुश्मन बन गए हैं और उन्हें पैदा ही नहीं होने दे रहे। इससे लिंग अनुपात बिगड़ता जा रहा है। दूसरी ओर जिन क्षेत्रों के लोग कम पढ़े-लिखे हैं, वे बिटिया का मोल बखूबी जानते हैं और वहां लिंग अनुपात भी बढि़या है। जनगणना विभाग के तहसील व सब तहसील स्तर के ताजा आंकड़ों में यह तथ्य सामने आए हैं।प्रदेश में 0-6 आयु वर्ग का लिंग अनुपात गिरकर 909 रह गया है। यानी प्रदेश में एक हजार लड़कों के पीछे मात्र 909 लड़कियां हैं। हैरानी तो यह बात की है कि अधिक साक्षर क्षेत्रों में लड़कियां कम हो रही हैं। मंडी जिला की सरकाघाट, कांगड़ा की जवाली, जसवां व नूरपुर को प्रदेश की सबसे साक्षर तहसीलों में गिना जाता है, लेकिन इनका शिशु लिंग अनुपात बेहद चिंताजनक है। इसके विपरीत लाहुल-स्पीति की लाहुल, उदयपुर, किन्नौर जिला की सांगला व कुल्लू की निरमंड तहसील को कम साक्षर तहसील में गिना जाता है, लेकिन यहां लिंग अनुपात काफी बेहतर है। जनगणना आंकड़े स्पष्ट तौर पर संकेत कर रहे हैं कि जहां साक्षरता दर बढ़ रही है, वहां लिंग अनुपात गिर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर 0-6 आयु वर्ग का लिंग अनुपात 919 है। यानी राष्ट्रीय स्तर की तुलना में हिमाचल में 10 बच्चियां कम पैदा हो रही हैं। समाजशास्त्रियों के मुताबिक 0-6 आयु वर्ग का लिंग अनुपात 952 होना चाहिए था, लेकिन राज्य में यह बढ़ने की बजाय कम हो रहा है। उल्लेखनीय है कि देशभर में लड़कियां बचाने को जागरूकता अभियान पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। बावजूद इसके लिंग अनुपात गिरना चिंताजनक है। हिमाचल का लिंग अनुपात 940 है। यानी प्रति एक हजार पुरुष पर 940 महिलाएं हैं। औसत लिंग अनुपात शिशु लिंग अनुपात से कहीं अच्छा है, लेकिन शिशुओं का लिंग अनुपात सुधारना भी राज्य के समक्ष बड़ी चुनौती है।