सौ दिन के केजरीवाल
( सुरेश कुमार, योल )
पिछली बार जब अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, तो 49 दिनों में ही रफ्तार पकड़ ली थी। अगर उस समय केजरीवाल की रेल पटरी से न उतरी होती, तो यकीनन दिल्ली एक बड़े बदलाव को महसूस कर पाती। इस बार की केजरीवाल सरकार अपने कार्यकाल के 100 दिन तो जरूर पूरे कर पाई है, लेकिन इसमें अड़ंगे बेशुमार रहे। पार्टी में बिखराव सार्वजनिक हुआ, तो स्टिंग का बाजीगर खुद स्टिंग के जाल में फंस गया। दिल्ली को आगे बढ़ाने के बजाय केजरीवाल खुद को बचाने में लगे रहे। ऐसे में चुनावों से पहले विकास की जो बातें की जा रही थीं, वे तो सरकार के इस कार्यकाल में नदारद ही रहीं। इस कार्यकाल में विवादों के मामले में तो केजरीवाल ने हद ही कर दी। हर दूसरे दिन वह किसी न किसी विवाद के जरिए सुर्खियों में आ जाते थे। अब की ताजा जंग दिल्ली के ही उपराज्यपाल नजीब जंग से छिड़ी हुई है। राष्ट्रपति के द्वार तक दस्तक दी जा चुकी है। इस तरह के माहौल में कोई दिल्ली के कौन से विकास या बदलाव की उम्मीद कर सकता है। ऐसे माहौल का दिल्ली के विकास पर क्या असर पड़ेगा, क्या कभी केजरीवाल ने इस विषय पर ध्यान दिया है। उधर केंद्र अपनी हार के लिए केजरीवाल को प्रताडि़त करने में लगा हुआ है। ऐसा केजरीवाल का मानना है कि केंद्र सरकार दिल्ली सरकार का सहयोग नहीं कर रही है। इतना तो तय है कि इन नेताओं की लड़ाई में दिल्ली की उम्मीदें अंततः औंधे मुंह गिरेंगी। जैसा केजरीवाल चाहते थे, वैसा नहीं हुआ। दिल्ली की जनता ने सरकार से जो चाहा, वह भी तो नहीं हुआ। ऐसे में दिल्ली में क्या हो रहा है, किसी को कुछ पता नहीं।