सुरभि के हाथ प्रतिभा की पताका
हिमाचल की एक और बेटी ने बालीवुड में अपनी प्रतिभा का सिक्का चला दिया है। इस बार अभिनय नहीं, बल्कि निर्देशन में बिलासपुर की बेटी ने सफलता के शिखर को चूम लिया है। बालीवुड के हॉरर फिल्मों के निर्माता- निर्देशक रामगोपाल वर्मा के साथ पहाड़ की इस बेटी सुरभि शर्मा ने अस्स्टिंट डायरेक्टर की भूमिका में अपनी प्रतिभा की झलक दिखलाई है। छोटे से पहाड़ी प्रदेश से निकली यह प्रतिभा अब मायानगरी में सफलता पाने को बेताब है। मायानगरी मुंबई में हिमाचल की यह पहली बेटी है, जिसने कैमरा थामकर अपनी अलग ही इमेज पेश कर बेटियों के लिए करियर की राह दिखाई है। बिलासपुर की मल्टी टेलेंटेड गर्ल सुरभि शर्मा ने बालीवुड के प्रसिद्व निर्देशक रामगोपाल वर्मा की तेलुगु फिल्म वंगाविटी में सह-निर्देशक के रूप में भूमिका निभाई। सुरभि के इस टेंलेट को राम गोपाल वर्मा ने खूब सराहा और उसे अपनी बालीवुड फिल्म राय में सह-निर्देशन के लिए ऑफर दिया। सुरभि का बालीवुड में यह पहला कदम व अनुभव था। अपनी पढ़ाई के चलते सुरभि ने फिलहाल इस ऑफर को मंजूर नहीं किया है। 22 वर्षीय सुरभि वर्तमान में नोएड़ा की पर्ल अकादमी स्पेशलाइजेशन इन फिल्म मेकिंग एंड एनिमेशन से बीए ऑनर्स की पढ़ाई कर रही हैं। वह अंतिम सेमेस्टर की स्टूडेंट हैं। बालीवुड में दिल से, मस्त, जंगल, प्यार तूने क्या किया, अब तक छप्पन, डरना मना है, गायब, सरकार व सरकार राज जैसी हिट व चर्चित फिल्में दे चुके रामगोपाल वर्मा ने सुरभि को पढ़ाई खत्म होने के बाद अपनी आगामी फिल्मों में सह निर्देशन का ऑफर दे दिया है। सुरभि अपने पहले प्रयास की कामयाबी से बेहद उत्साहित हैं। उन्होंने बताया कि अपने संस्थान के माध्यम से उन्हें मुबंई में रामगोपाल वर्मा के साथ काम करने का मौका मिला। उन्हें तेलुगु फिल्म ‘वंगाविटी’ की शूटिंग में सह निर्देशन का कार्य दिया गया था, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। सुरभि ने अपनी लगन, मेहनत व प्रतिभा से फिल्म के मुख्य निर्देशक को बेहद प्रभावित किया। तेलुगु फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें हैदराबाद, मुबंई, आंध्रप्रदेश के कई जगहों में जाने का मौका मिला। चैलेंजिंग परिस्थितियों में भी सुरभि ने हर टॉस्क को लगन से पूरा किया। बिलासपुर की निवासी 22 वर्षीय निवासी सुरभि ने पांचवीं कक्षा से ही कविता व कहानी लिखना शुरू कर दिया था। वह एक नवोदित लेखिका के साथ निर्देशन का कार्य भी करती हैं। बिलासपुर की यह बेटी मल्टी टेलेंटेड हैं। लेखन, निर्देशन के अलावा वह फोटोग्राफी, एंकरिंग, डांसिग, गायन, एक्टिंग भी करती हैं। सुरभि के पिता दीप राज शर्मा तहसीलदार के पद से सेवानिवृत हुए हैं। अब वह वकालत का कार्य करते हैं। उनकी माता डा. अनिता शर्मा बिलासपुर में जिला भाषा अधिकारी के पद पर सेवारत हैं। बॉक्स-युवा वर्ग पर तैयार की है लघु फिल्म सुरभि ने युवा वर्ग की मस्याओं पर एक लघु फिल्म तैयार की है। इसमें सुरभि ने लेखन के साथ स्वयं निर्देशन का कार्य किया है। इसकी रिकार्डिंग व एडिटिंग का कार्य चंडीगढ़ में चल रहा है। इस फिल्म को वह लघु फिल्म फेस्टिवल अवार्ड के लिए भेजना चाहती हैं। सुरभि का कहना है कि यह फिल्म आधुनिक युवाओं की समस्याओं पर आधारित है, जो हर वर्ग को बेहद पंसद आएगी। इसके बाद सुरभि हिमाचल के पर्यटन पर एक डाक्यूमेंटरी तैयार करेगी। इसमें हिमाचल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों की सुदंरता को भी दिखाया जाएगा। इसके लिए सुरभि ने कार्य शुरू कर दिया है। ‘दिव्य हिमाचल’ से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि हिमाचल की खूबसूरती पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां पर कई ऐसे धार्मिक व पर्यटन क्षेत्र हैं, जिन पर आधारित फिल्मों का निर्माण किया जा सकता है। साथ ही यहां के कलाकारों में बहुत टेलेंट है। जल्द ही डाक्यूमेंटरी फिल्मों का निर्माण शुरू किया जाएगा, जिसमें स्थानीय कलाकारों को भी अभिनय करने का मौका मिलेगा। उन्होंने बताया कि हाल ही में राय फिल्म में उन्हें सह निर्देशन के लिए ऑफर मिला था, लेकिन पढ़ाई पूरी न होने के चलते मना कर दिया। अब वह पढ़ाई पूरी करने के बाद ही बालीवुड में कदम रखेंगी।
-विजय ठाकुर, बिलासपुर
छोटी सी मुलाकात
सपनों की ऊंचाई से डर नहीं लगता…
फि ल्मी पृष्ठभूमि में सुरभि खुद को कहां तक देखती है ?
बालीवुड फिल्म निर्देशन में ज्यादातर पुरुषों का ही बोलबाला है। मैं बालीवुड में बतौर निर्देशक के रूप में करियर की शुरुआत कर इस क्षेत्र में भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बनना चाहती हूं। फिल्मी पृष्ठभूमि में स्वयं को शिखर के शीर्ष पायदान पर देखना चाहती हूं।
इस प्रोफेशन में आने की वजह, कोई तो प्रेरणा रही होगी ?
मेरी मां मेरे के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। वह बिलासपुर जिला भाषा अधिकारी के पद पर सेवारत हैं। अधिकतर मां-बाप अपनी बेटियों को स्टेबल करियर जैसे स्टाफ नर्स, डाक्टर, टीचिंग के लिए ही अप्रोच करते हैं, लेकिन मेरे माता-पिता ने मेरी रुचि के अनुसार ही करियर चुनने को कहा और हर मुशिकल में मेरा मार्गदर्शन किया।
रामगोपाल जैसे निर्देशक की ऑफर के क्या मायने हैं?
यह मेरी जिदंगी का सबसे महत्त्वपूर्ण लम्हा था। बालीवुड के प्रसिद्व निर्देशक रामगोपाल से उनकी आगामी फिल्मों में सह निर्देशन काऑफर मिलने से मेरा हौसला दोगुना हो गया है। इस ऑफर से मुझे बालीवुड में सुनहरी मंजिल नजर आने लगी है।
यानी कुछ समय की प्रतीक्षा में आपका भविष्य भी इंतजार कर रहा है ?
रामगोपाल जी ने मुझे अपनी फिल्म राय के लिए सह निर्देशन करने का ऑफर दिया था, लेकिन पढ़ाई के चलते मैं इसे स्वीकार नहीं कर पाई। पढ़ाई खत्म होते ही उन्होंने अपनी फिल्मों के लिए कार्य करने के लिए खुला ऑफर दे दिया है। पढ़ाई खत्म होते ही मैं बालीवुड में कुछ हटकर कार्य करना चाहती हूं।
अब तक के अनुभव में सबसे सुखद और बड़ा पल कब आया?
नोएडा के बीए ऑनर्स इन कम्युनिकेशन डिजाइन संस्थान से पढ़ाई के दौरान मुबंई में रामगोपाल की फिल्म इंडस्ट्री में इंटर्नशिप का मौका मिला। तेलुगु फिल्म ‘वंगाविटी’ में सह निर्देशन के रूप में कार्य कर अपने हुनर से सभी को प्रभावित किया। कार्य से प्रभावित होकर रामगोपाल ने अपनी लिखी पुस्तक मुझे भेंट की। रामगोपाल के जन्मदिन पर अमिताभ बच्चन से मिलना मेरी जिदंगी के यादगार लम्हे रहे हैं।
तेलुगु फि ल्म उद्योग से जो सीखा ?
तेलुगु फिल्म ‘वंगाविटी’ में कार्य करने का मौका मिला। वंगाविटी शख्स की तेलंगाना आंदोलन के लिए अहम भूमिका रही थी। उनके जीवन पर यह फिल्म बनी है। तेलुगु फिल्म बालीवुड से जरा हटकर होती है। फिल्म को निर्देशन करने की कई बारीकियां सीखने को मिली हैं।
अभिव्यक्ति की आपकी सौंगंध ?
अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए, लेकिन अभिव्यक्ति पर अनावश्यक बंधन भी नहीं डाले जाने चाहिए।
हिमाचल की पृष्ठभूमि में आपको बतौर निर्देशक क्या आकर्षित करता है ?
बालीवुड की फिल्में ज्यादातर कामर्शियल होती हैं, लेकिन मेरी सोच इनसे हटकर है। मैं कामर्शियल की बजाय सामाजिक मुद्दों, युवाओं की समस्याओं व ऐसी फिल्मों पर काम करना चाहती हूं, जो समाज में बदलाव लाने में असरदार हों।
हिमाचल को फिल्म शूटिंग की पहली पसंद बनने के लिए क्या करना होगा?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिमाचल देवभूमि, वीरभूमि के साथ पर्यटन के लिए भी खूबसूरत जगह है। प्रकृति से हिमाचल को बहुत कुछ मिला है, लेकिन हमारी सरकारें इसमें शृंगार नहीं कर पाई हैं। पर्यटन विभाग को फिल्म इंडस्ट्री के साथ सीधा तालमेल बनाना चाहिए और फिल्म निर्देशकों की जरूरत के अनुसार यहां सुविधाएं विकसित करनी होंगी।
कोई कविता हमारे पाठकों के नाम ?
सपनों की ऊंचाई से डर नहीं लगता…मंजिल हो पास या दूर.. मुश्किलों के भय से परे आकश छूने की आस लिए चलती हूं और चलूंगी…