गीता रहस्य

By: Jan 28th, 2017 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

अतः वेद एवं ऋषियों के शास्त्र, उपनिषद, गीता आदि ग्रंथ जो आज के वेदज्ञ, वेद एवं अष्टांग योग विद्या को जानकर कठोर अभ्यास द्वारा असंप्रज्ञात समाधि प्राप्त ब्रह्मऋषि व्यास, गुरु वशिष्ठ के समान ब्रह्म पद को पा जाते हैं, उनके वचन भी सत्य हैं और उन्हीं से वेद एवं छह शास्त्र आदि ग्रंथ सुनना सत्य है। ऐसा ऋषियों  ने कहा है। अब या तो हम वेद, शास्त्रों की बात मानें अथवा अन्य की…

योग-शास्त्र  सूत्र 3/9 के अध्ययन  से स्पष्ट होता है कि जिज्ञासु भी यदि तपस्या को कम करता है अथवा त्याग देता है तो उसके अंदर के चित्त पर एकत्र पाप-वासनाएं जाग जाती हैं। अतः जिज्ञासु को कठोर साधना करते हुए पर-वैराग्य प्राप्त करके ज्ञानी बनना आवश्यक है।

ज्ञानी – चौथा भक्त ज्ञानी है। प्रभु ज्ञान स्वरूप हैं। अथर्ववेद मंत्र 10/8/15 में कहा कि परमेश्वर से दूर होते हुए भी (पूर्णेन वसति) पूर्ण ज्ञानी पुरुष के हृदय में प्रकट रहते हैं। प्रभु के दर से दूर होने का अर्थ है कि जो वेदाध्ययन एवं योगाभ्यास आदि उपासना छोड़कर त्रिगुणी माया में ही भोग पदार्थों का स्वाद लेते रहते हैं, वह कभी भी परमेश्वर को प्राप्त नहीं कर पाते। अथर्ववेद मंत्र 4/32/5 में कहा कि हे प्रभु! (तव क्रत्वा) तेरे ज्ञान प्राप्त करने वाले कार्यों से (अपपेरतः अस्मि) दूर हो जाता है, वह (अभागः सन्) भाग्यहीन हो जाता है। ज्ञानी इस पदवी पर तब पहुंचता है जब वेदानुकूल यज्ञ, योगाभ्यास आदि सभी शुभ कर्मों को करता हुआ असंप्रज्ञात समाधि प्राप्त कर लेता है। इस कारण अथर्ववेद मंत्र 4/33/3 में कहा (अस्माकासः) हमारे साथ (प्रसूरयः) उत्तम ज्ञानी हैं। इसलिए (नः अधम्) हमारे पाप (अप) नष्ट हो जाएं।

अथर्ववेद मंत्र 4/34/3 का भाव है (एनाम् ओदनम्) जो इस ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर लेता है (अवर्तिः कदाचन न सचते) उसके पास शरीर रक्षार्थ धन का अभाव नहीं रहता अर्थात ज्ञानी दरिद्र अथवा दुखी नहीं होता, इत्यादि। ज्ञानी सदा समाधिरस्थ अर्थात ब्रह्मलीन रहता है। श्रीकृष्ण महाराज के ऐसे श्लोकों से स्पष्ट है कि ज्ञानी बनने के लिए वेदाध्ययन, यज्ञ, ज्ञानियों का संग, वैराग्य, योगाभ्यास इन सब साधनों को आचरण में लाकर असंप्रज्ञात समाधि प्राप्त करके ईश्वर अनुभूति प्राप्त करना होता है।

श्लोक 7/17 में श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि हे अर्जुन! उन चारों भक्तों में ज्ञानी परमेश्वर से नित्ययुक्त अर्थात सदा जुड़ा हुआ एक परमेश्वर की भक्ति करने वाला है, वह सबसे उत्तम है। क्योंकि ज्ञानी को मैं अत्यंत प्रिय हूं और वह ज्ञानी मेरे को प्रिय है।

भाव – विद धातु से वेद शब्द निष्पन्न होता है। वेद को सनातन ईश्वरीय विद्या कहा है। ऋग्वेद में पदार्थों का ज्ञान-विज्ञान, यजुर्वेद में कर्म, सामवेद में उपासना एवं अथर्ववेद में तीनों वेदों को साक्षी युक्त ज्ञान तथा आयुर्वेद विद्या का ज्ञान है। हम प्रमाणयुक्त विचार द्वारा ही सत्य को ग्रहण करें। प्रायः आजकल के मिथ्यावादी, अप्रमाणिक भाषण करने वालों से बचें अन्यथा पापयुक्त हो जाएंगे। योगशास्त्र सूत्र 1/7 और सांख्य शास्त्र सूत्र 1/66 में वेदों को स्वतः प्रमाण कहा है। वेद एवं योग विद्या के ज्ञाता, व्यासमुनि जी जैसे ऋषियों के वचनों, को भी पूर्णतः प्रमाणयुक्त वचन कहा है। इस प्रकार छह शास्त्र और अन्य सभी ऋषि प्रवीण ग्रंथ जो हैं, वह सत्य हैं। जो वेद में कहा है वही सत्य है और व्यास जैसी किसी अन्य ऋषि ने भी जो कह दिया वह भी सत्य है, क्योंकि उन्होंने कहना ही वेदों के अनुसार है। अतः वेद एवं ऋषियों के शास्त्र, उपनिषद, गीता आदि ग्रंथ जो आज के वेदज्ञ, वेद एवं अष्टांग योग विद्या को जानकर कठोर अभ्यास द्वारा असंप्रज्ञात समाधि प्राप्त ब्रह्मऋषि व्यास, गुरु वशिष्ठ के समान ब्रह्म पद को पा जाते हैं, उनके वचन भी सत्य हैं और उन्हीं से वेद एवं छह शास्त्र आदि ग्रंथ सुनना सत्य है। ऐसा ऋषियों  ने कहा है। अब या तो हम वेद, शास्त्रों की बात मानें अथवा अन्य की।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App or iOS App