दूसरी राजधानी से पहले शिमला को बचाओ

By: Jan 28th, 2017 12:02 am

( अरुण सिंह लेखक, एचपीसीए से संबद्ध हैं )

जो प्रदेश 40 हजार करोड़ के कर्ज तले दबा है, क्या उस प्रदेश को अपने संसाधन बढ़ाने की ओर ध्यान देना चाहिए या जनता का पैसा ऐसी फिजूलखर्ची में बर्बाद करना चाहिए ? मुख्यमंत्री का यह तुगलकी फरमान चुनाव को ध्यान में रखकर जारी किया गया है और यह जनता को भ्रमित करने वाला है…

जैसे-जैसे हिमाचल के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे हिमाचल में राजनीतिक पारा बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री शिमला छोड़कर कांगड़ा में घोषणाओं का अंबार लगा रहे हैं और दूसरी ओर राजधानी शिमला बर्फबारी की मार झेल रही है। शिमला जिला में लगभग दो हफ्तों तक बिजली गुल रही और पानी की किल्लत से लोगों में हाहाकार मचा हुआ था, लेकिन प्रशासन इस सब में पूरी तरह से असंवेदनशील और अप्रभावित नजर आया। जब प्रदेश का मुख्यमंत्री खुद अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ के कांगड़ा में चुनावी रेवडि़यां बांटने में मस्त हो, तो प्रशासन जो अब सत्ता परिवर्तन की बाट जोह रहा हो, उसका पस्त होना समझ में आता है। जिस तरह मुख्यमंत्री ने काबिल अफसरों को दरकिनार करके अपने कुछ चहेते रिटायर्ड और टायर्ड अधिकारियों को अनुचित लाभ देकर महत्त्वपूर्ण पदों पर बिठाया है, उससे हिमाचल का पूरा प्रशासनिक ढांचा चरमरा गया है। ऐसे में जिस तरह की घोषणाएं वीरभद्र सिंह आए दिन कर रहे हैं, वह वाकई हास्यास्पद है। अपने हर चहेते विधायक के क्षेत्र में एसडीएम कार्यालय और डिग्री कालेज की खैरात देने के बाद धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने की घोषणा ने खुद उनकी पार्टी और मंत्रिमंडल में हलचल मचा दी है। कौल सिंह का बयान, ‘ऐसी घोषणाएं प्रेस विज्ञप्ति से नहीं होतीं और जब यह मुद्दा कैबिनेट में आएगा, तब देखेंगे’ दर्शाता है कि मुख्यमंत्री का यह तुगलकी फरमान केवल जनता को चुनावों के दृष्टिगत भ्रमित करने के लिए है और उनकी खुद की पार्टी में इसका भारी विरोध है। आज सबसे ज्यादा चिंता प्रदेश की चरमरा चुकी शिक्षा व्यवस्था को लेकर होनी चाहिए, क्योंकि प्रदेश के अच्छे शिक्षण संस्थाओं की बात हो, तो ले-देकर 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए संस्थान ही नजर आएंगे। जो कालेज वीरभद्र सिंह आज खोल रहे हैं, वहां से निकलने वाले बच्चों के लिए वीरभद्र सिंह जैसे राजनीतिज्ञों के पास दो विकल्प होते हैं-मनरेगा के तहत रोजगार अन्यथा बेरोजगारी भत्ता। हिमाचल में आने वाले पर्यटकों के आकर्षण के लिए भी अंग्रेजों द्वारा निर्मित इमारतें या तब स्थापित किए गए पर्यटक स्थल हैं, आजादी के बाद तो हमने चाहे शिमला, मनाली या डलहौजी हो या फिर कोई अन्य स्थल, का मटियामेट ही किया है।

सड़कों के अलावा पर्यटकों को हिमाचल घूमने का कोई जरिया नहीं है और सड़कों की हालत देखकर कोई पर्यटक हिमाचल आना ही नहीं चाहता। इन सब बुनियादी जरूरतों के बजाय जनता को ऐसी घोषणाओं का लालीपॉप देना सच में दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन सवाल यह है कि हिमाचल का मतदाता क्या 21वीं सदी में ऐसे फैसलों से भ्रमित होगा? क्या वह यह नहीं समझेगा कि ये घोषणाएं रजवाड़ाशाही से ग्रस्त एक राजनेता की येन-केन-प्रकरण से केवल सत्ता हथियाने की चाल है? जो प्रदेश आज 40 हजार करोड़ के कर्ज तले दबा है, क्या उस प्रदेश को अपने संसाधन बढ़ाने की ओर ध्यान देना चाहिए या जनता के टैक्स का पैसा ऐसी फिजूलखर्ची में बर्बाद करना चाहिए? पंजाब के बंटवारे के बाद आज भी हरियाणा और पंजाब की एक ही राजधानी चंडीगढ़ है और उसे देश के सबसे अच्छे शहरों में जाना जाता है। दूसरी ओर शिमला जो ब्रिटिश राज में समर कैपिटल के रूप में प्रख्यात थी, आज केवल अव्यवस्था का पर्याय बन चुकी है। कोशिश तो यह होनी चाहिए थी कि प्रदेश का जो सात प्रतिशत हिस्सा पुनर्गठन संधि के तहत चंडीगढ़ में है, उसके तहत हिमाचल चंडीगढ़ में ही प्रशासनिक कार्यों के लिए अपनी राजधानी बना ले और शिमला और धर्मशाला को विश्व के सबसे बेहतरीन पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करे। भौलोगिक दृष्टि से भी चंडीगढ़ राजधानी के रूप में पूरे हिमाचल के लिए उपयुक्त रहेगी। आज गर्मियों में शिमला में पर्यटकों को पानी की किल्लत रहती है, सर्दियों में नागरिकों को बिजली पानी दोनो की परेशानी झेलनी पड़ती है तथा यातायात का तो पूरा साल ही बुरा हाल रहता है। बरसात में लोग पीलिया की मार झेलते हैं, तो स्वास्थ्य विभाग की पोल खुल जाती है। मानो साल का हर मौसम शिमला के लिए नई चुनौती लेकर आता है और शिमला उस चुनौती के लिए कभी तैयार नहीं दिखता। ऐसे में धर्मशाला में दूसरी राजधानी की मुख्यमंत्री की घोषणा चुनावी मौसम में अपना उपहास उड़वाने से बढ़कर कुछ नहीं। तकनीकी के युग में जहां भारत डिजिटल इंडिया की ओर मार्ग प्रशस्त कर रहा है, ऐसे में 19वीं सदी की ये सौगातें हिमाचल को बिलकुल विपरीत दिशा की ओर ले जा रही हैं। संचार क्रांति में हुई प्रगति ने आधारभूत ढांचे की परिभाषा और जरूरतों को बदल दिया है। आज अमरीका, यूरोप के कारोबार भारत के नौजवान पुणे, बंगलूर या गुरुग्राम से चला रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की यह सोच प्रदेश को 21वीं सदी की चुनौतियों से जूझने के बजाय 19वीं सदी की ओर लेकर जा रही है। भ्रष्टाचार के आरोपों और जेल जाने के डर से मुख्यमंत्री आज हताशा में प्रदेश के बारह जिलों को महीने के हिसाब से राजधानी का दर्जा भी दे देंगे, लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि 21वीं सदी में देश के साथ हिमाचल के युवा की आशा और आकांक्षा बदल गई है। ऐसे में उनकी ये घोषणाएं केवल उन्हें उपहास का पात्र बना रही हैं।

ई-मेल : thakurarunsingh@gmail.com


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