रंग चिकित्सा में जल
नश्चर शरीर में रंग एक विशिष्ट तत्त्व है और इसका ठीक रहना आवश्यक है। यदि अंगों के स्वाभाविक रंग घटें, बढ़ें तो रोग का ही प्रतीक समझना चाहिए। सूर्य चिकित्सा शास्त्री इसी रंग की कमी-वेशी को लक्ष्य करके पीडि़त स्थान पर उसी के अनुसार रंग पहुंचा कर चिकित्सा करते हैं। कोई भी परिवर्तन उस समय तक नहीं हो सकता, जब तक कि गर्मी न पहुंचे। गर्मी और पानी से हर जीवित पदार्थ में तुरंत ही परिवर्तन हो जाता है। बरसात में पौधे बहुत तादाद में उगते हैं और बहुत जल्दी बढ़ते हैं। हजारों किस्म के कीड़े-मकोड़े वर्षा ऋतु में अपने आप पैदा हो जाते हैं। मक्खियां, मच्छर, केंचुए, मेंढक और न जाने कितनी तरह के जंतु इस ऋतु में पैदा होते हैं, वे गर्मी और जाड़े में पैदा नहीं होते। गर्मी का केंद्र सूर्य है, इसे ही अग्नि तत्त्व का अधिष्ठाता माना गया है। आग हम चूल्हे में जलाते हैं, वह भी सूर्य की शक्ति से ही आ जाती है। आपने देखा होगा कि गर्मी के दिनों में जरा से प्रयत्न से आग जल उठती है और उसमें गर्मी अधिक होती है, किंतु जाड़े और बरसात में वह प्रयत्नपूर्वक प्रज्वलित होती है, सो भी मंद वेग से। मनुष्यों के शरीर गर्मी के कारण ही जीवित रह सकते हैं। गर्मी शांत होते ही शरीर मुर्दा हो जाता है। यह जीवित रखने वाली गर्मी हमें सूर्य से प्राप्त होती है। इसलिए सूर्य की किरणों को पानी में मिश्रित करके उसे इस योग्य बनाया जाता है कि वह शरीर में आवश्यक परिवर्तन करता हुआ उचित द्रव्यों को पहुंचा सके। सूर्य किरणों में एक और भी खूबी है। वह यह है कि उनमें स्वयं रंग होते हैं। आकाशस्थ चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि आदि ग्रहों की किरणें भी पृथ्वी पर आती हैं, यह सूर्य की किरणों में मिल जाने के कारण उन्हें सप्तरंग वाली बना देती हैं।
सूर्य के सप्तुमखी घोड़े का वर्णन पुराणों में इसी दृष्टि से किया गया है। किरणें घोड़ा हैं और सात रंग उसके सात मुख हैं। इंद्रधनुष में सात रंग साफ दिखाई देते हैं। सूर्य-किरणों से समस्त रोगों का नष्ट होना प्रसिद्ध है और इसे प्रत्येक विज्ञानी स्वीकार भी करता है। सूर्य-चिकित्सा शास्त्री जिन रंगों की रुग्ण शरीर में कमी देखता है, उन्हें पहुंचाता है। इस रंग को वह सूर्य किरणों से प्राप्त करता है। रंगीन कांच में एक ही रंग की किरण पार हो सकती है और शेष रंगों की बाहर ही रह जाती हैं। इसलिए रंगीन कांचों का आवश्यकतानुसार उपयोग करके उनके द्वारा वांछनीय रंगों को प्राप्त कर लिया जाता है। बीमार भाग पर रंगीन कांच द्वारा प्रकाश देना, इसी सिद्धांत पर निर्भर है। बोतलों में पानी भरकर उनमें उन रंगों को आकर्षित इसलिए किया जाता है कि यह रंगों से प्रभावित जल द्वारा पेट में पहुंचकर रक्त में मिल जाए और अपने प्रभाव से अव्यवस्था को दूर कर दे और क्षतिपूर्ति करता हुआ पीडि़त भाग को स्वस्थ बनाए। जल की विशेषता प्रसिद्ध है कि सूर्य के साथ सम्मिश्रण से जीवित पदार्थों में वह तुरंत ही सजीव प्रतिक्रिया पैदा करता है। शक्कर, तेल, मक्खन, औषधि आदि को इन्हीं रंगों से प्रभावित कर लेना ठीक है। इससे उन वस्तुओं की शक्ति स्वभावतः कई गुना बढ़ जाती है।
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