राजा दशरथ और सुमंत्र
जब श्रीराम के वन में जाने का समय आया तो राजा दशरथ ने सुमंत्र को यह विशेष दायित्व सौंपा कि सुमंत्र श्रीराम के साथ वन में जाएं और इस बात का ख्याल रखें कि श्रीराम, लक्ष्मण और सीता को कोई तकलीफ न हो। राजा दशरथ ने यह भी अनुरोध किया कि सुमंत्र श्रीराम को मना कर वापस लाने के प्रयास भी करते रहें…
राजा दशरथ को सुशासन में सहयोग देने के लिए कुल आठ ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जो अपने क्षेत्र में बहुत ही कुशल व विद्वान थे। सुमंत्र नमें से एक था, जो अत्यंत निपुण व योग्य प्रशासक होने के साथ-साथ राजा दशरथ के बहुत करीब था। राजा दशरथ को सुमंत्र पर इतना विश्वास था कि सुमंत्र एक तरह से उनके परिवार का ही सदस्य माना जाता था। सुमंत्र ने ही राजा दशरथ को यह परामर्श दिया था कि पुत्र प्राप्ति के लिए उन्हें यज्ञ करना चाहिए और उस के लिए ऋषि शृंगी को बुलावा देना चाहिए। सुमंत्र को विशवास था कि अगर ऋषि शृंगी इस यज्ञ को संपूर्ण करेंगे तो राजा दशरथ को अवश्य ही पुत्र प्राप्ति होगी। सुमंत्र को श्री राम के साथ प्रारंभ से ही अत्यंत स्नेह था। श्रीराम को किसी तरह का कोई दुःख हो, इसकी सुमंत्र कल्पना भी नहीं कर सकते थे। जब कैकेयी के दो वर मांगने और फलस्वरूप वन में जाने का समाचार मिला तो सुमंत्र के क्रोध का कोई ठिकाना नहीं रहा। अपने आक्रोश को कैकेयी के प्रति प्रगट करने में बिना कोई हिचकिचाहट दिखाते हुए, सुमंत्र कैकेयी के महल में चले गए और उसे खूब भली-बुरी सुनाई। उन्हें भली भांति मालूम था कि उस समय महल में राजा दशरथ के साथ कौशल्या व अन्य घर के सदस्य भी उपस्थित हैं। फिर भी उन्होंनें कैकेयी को खूब सुनाई। एक समय तो सुमंत्र को इतना गुस्सा आ गया कि वे कैकेयी को श्राप देने का सोचने लगे, लेकिन फिर अपने गुस्से पर काबू कर लिया। जब श्रीराम के वन में जाने का समय आया तो राजा दशरथ ने सुमंत्र को यह विशेष दायित्व सौंपा कि सुमंत्र श्रीराम के साथ वन में जाएं और इस बात का ख्याल रखें कि श्रीराम, लक्ष्मण और सीता को कोई तकलीफ न हो। राजा दशरथ ने यह भी अनुरोध किया कि सुमंत्र श्रीराम को मना कर वापस लाने के प्रयास भी करते रहें। इसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से दर्शाया गया है।
अयोध्या कांड, सर्ग 35, श्लोक 5,7, 9,10,11,12,13,16,17, 27, 30,32
हे रानी, इस पृथ्वी पर तुम्हारे लिए चाहने वाली कोई भी वस्तु नहीं है। तुम्हारे द्वारा तुम्हारे पति राजा दशरथ, जो कि समस्त सृष्टि चल और अचल का साथ देने वाले हैं, छले गए हैं। मैं तुम्हें अपने पति की हत्यारिन समझता हूं। तुमने अपने कृत्यों से अपने पति ही नहीं बल्कि उनके पूरे वंश का सर्वनाश कर दिया है, ऐसे पति का जो राजा इंद्र समान अजेय, पर्वत समान मजबूत और समुद्र समान शांत व ठहरा हुआ है। निस्संदेह एक राजा की मृत्यु होने पर उनका बड़ा पुत्र ही उनका उतराधिकारी होता है। तुमने इस पुरातन समय से चली आ रही प्रथा को इश्वाकू वंश के शासक के जीवित होते हुए ही तोड़ दिया है। तुम्हारा पुत्र भरत ताज संभाले और इस धरती पर शासन करे। हम सब वहीं जाएंगे, जहां श्री राम जाएंगे। तुम्हारे शासन में एक भी ब्राह्मण नहीं रहेगा। अगर तुम इसी तरह का दुष्कर्म करने पर आमादा हो तो हम श्रीराम द्वारा चलने वाले मार्ग पर ही चलेंगे। ए शाही औरत तुम्हें ऐसी सत्ता से किस तरह का सुख मिलेगा, जिसका साथ सभी नेक लोग, नाते-रिश्तेदार और ब्राह्मण छोड़ चुके होंगे। तुम ऐसा दुष्कर्म करने पर आमादा हो।
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