संयुक्त कुटुंब के असंख्य लाभ

By: Jan 28th, 2017 12:05 am

अकेला मनुष्य थोड़ी देर बाद रुक जाता है, परंतु सामूहिक और संगठित सहयोग से ऐसी अनेक चेतनाओं और सुविधाओं की उत्पत्ति होती है, जिनके द्वारा बड़े-बड़े कठिन कार्य सहज हो जाते हैं…

पृथक-पृथक रूप से छोटे-छोटे प्रयत्न करने में शक्ति का अपव्यय अधिक और कार्य न्यून होता है। अकेला मनुष्य थोड़ी देर बाद रुक जाता है, परंतु सामूहिक और संगठित सहयोग से ऐसी अनेक चेतनाओं और सुविधाओं की उत्पत्ति होती है, जिनके द्वारा बड़े-बड़े कठिन कार्य सहज हो जाते हैं। सम्मिलित खेत, सम्मिलित रसोई, सम्मिलित व्यापार, सम्मिलित संस्था, सम्मिलित परिवार का क्षेत्र विस्तृत होता है। सम्मिलित परिवार की प्रवृत्ति से मानव प्राणी की सुख, शांति एवं सफलताओं में आश्चर्यजनक रीति से अभिवृद्धि होती है। आर्थिक दृष्टि से विचार कीजिए तो धन का मितव्यय होता है तथा संपन्नता में अभिवृद्धि होती है। पृथक-पृथक रहने पर पृथक चूल्हे जलते हैं, दीपक जलते हैं, भोजन, निवास तथा शिक्षा इत्यादि के निर्मित प्रत्येक छोटे परिवार को पृथक ही व्यय करना पड़ता है। आजकल मकान की समस्या बड़ी विषम है। चार भाई यदि पारस्परिक स्नेह का विकास कर सम्मिलित रहें, तो चार मकानों के स्थान पर एक से ही कार्य चल जाएगा। चार मकान, चार फर्नीचर, फर्श, सजावट के समान की आवश्यकता प्रतीत न होगी। अतिथियों के लिए अतिरिक्त पलंग, बिस्तर फिर सबको पृथक रखने की क्या जरूरत? घर के साधारण नौकर का व्यय भी एक ही स्थान से किया जा सकेगा और चारों भाइयों को आराम भी प्राप्त होगा।

चार भाइयों के एक साथ सम्मिलित रहने में यदि दो सौ रुपए का व्यय है, तो पृथक रहने में चार सौ का व्यय है। एक भाई दूसरे अच्छे भाई के व्यवहार, प्रोग्राम, दिनचर्या को देखकर उसका अनुकरण करेगा, गंदगी से बचेगा, व्यर्थ की आदतों जैसे सिनेमा, मद्य,  सिगरेट, सैर-सपाटा इत्यादि अनेक प्रकार के अपव्यय से बचा रहेगा। जो मैं चाहता हूं, वह सबको भी होना चाहिए। सबके लिए वही व्यवस्था करने में बहुत व्यय पड़ेगा। केवल मेरे ही लिए वस्तु होने से सबको बुरा प्रतीत होगा-ऐसा सोचकर गृह के अन्य सदस्य भी अपनी आवश्यकताओं पर संयम और मन पर नियंत्रण रखेंगे। जब यह नियंत्रण हट जाता है, तो हर व्यक्ति खुले हाथ व्यय करता है। घर की जुड़ी हुई संपत्ति नष्ट हो जाती है। झूठे दिखावे में आदमी बर्बाद हो जाता है। इस प्रकार जहां एक ओर व्यय में किफायत होती है, वहीं दूसरी ओर संपन्नता में वृद्धि होती है। धन क्रमशः एकत्रित होता है। सम्मिलित श्रम से लाभ भी अधिक होता है। घर के विश्वस्त आदमी मिलकर कारोबार में जितना लाभ कर सकते हैं, उतना नौकरों द्वारा नहीं हो सकता। सबकी आय एक ही स्थान पर एकत्रित होने से संचित पूंजी में वृद्धि होती है। अर्थशास्त्र का अकाट्य नियम है, अधिक पूंजी अधिक लाभ।  सबकी कमाई एक स्थान पर होने से पारिवारिक उद्योग-धंधे, छोटे-छोटे व्यापार और छोटी कंपनियां चालू की जा सकती हैं। यही छोटी कंपनियां मिलकर बड़ी कंपनियां बन जाती हैं। प्रत्येक परिवार की एक साख होती है। अच्छी साख वाले परिवार के सदस्य को जीवन में अग्रसर होने में यह पूर्व संचित प्रतिष्ठा-संपदा बहुत लाभ पहुंचाती है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App or iOS App