ऋग्वेदिक स्त्री

By: Jan 14th, 2017 12:15 am

जुहू ने अपनी एक ऋचा में कहा है जैसे बलवान राजा का राज्य सुरक्षित रहता है वैसे ही बृहस्पति की पत्नी  जुहू का सतीत्व सुरक्षित रहे। उसके आगे भी ऋचाओं में भी जुहू की सच्चरित्रता और पति के साथ एक निष्ठ होने की बात कही गई है। ऋग्वेद के अनुसार आर्यों में समान्यतया अपनी स्त्रियों को युद्ध में भेजना अनुचित समझा जाता था…

ऋग्वेद में वर्णित समाज एक सुव्यवस्थित और सांस्कृतिक दृष्टि से प्रौढ़ समाज था। उसमें स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर जितना कहा गया है, उसके आधार पर समाज में स्त्रियों की स्थिति के बारे में एक निश्चित धारणा बखूबी बनती है और वह धारणा यह है कि ऋग्वेदिक समाज में  स्त्रियों की अपनी एक सुनिश्चित भूमिका रही थी। प्रत्येक पारिवारिक सामाजिक और सांस्कृतिक क्रिया कलाप में उनकी भागीदारी  और सक्रियता दिखाई देती है। ऋग्वेदिक परिवार में पति के बराबर पत्नी का दर्जा दिखाई देता है, दोनों की भूमिकाएं भले ही अलग-अलग रही हों। परिवार का मुखिया पुरुष होता था, पर पत्नी भी घर की स्वामिनी की तरह ही रहती थी। परिवार और समाज में उनका सम्मानीय स्थान था। वैवाहिक संबंध का निर्वाह मृत्युपर्यंत किया जाता था। दसवें मंडल की एक ऋचा में पति अपनी नव विवाहिता पत्नी से कहता है मैं तुम्हारा हाथ सौभाग्य के लिए पकड़ता हूं। मुझ पति के साथ तुम वृद्ध शरीर वाली बनो(बुढ़ापे तक साथ रहो) पति- पत्नी गृहस्थ रूप में ऋतु और सत्कर्म के साथ हो। हे विश्वदेव, तुम इन दोनों के हृदयों को जलों के समान मिलाओ। हम दोनों समान गुण धर्म वाले हों। देवता हमें एकाकार करें। (वधु) तू घर की स्वामिनी बनकर रहे। उस काल की स्त्रियां सतीत्व के प्रति आस्थावान थीं। जुहू ने अपनी एक ऋचा में कहा है जैसे बलवान राजा का राज्य सुरक्षित रहता है वैसे ही बृहस्पति की पत्नी  जुहू का सतीत्व सुरक्षित रहे। उसके आगे भी ऋचाओं में भी जुहू की सच्चरित्रता और पति के साथ एक निष्ठ होने की बात कही गई है। ऋग्वेद के अनुसार आर्यों में समान्यतया अपनी स्त्रियों को युद्ध में भेजना अनुचित समझा जाता था। दसवें मंडल की एक ऋचा में इंद्र के कथन से यह संकेत मिलता है। पर ऋग्वेद के एक ऐसे युद्ध का उल्लेख है, जिसमें पति के साथ युद्ध करते हुए विश्पला की एक टांग कट जाती है, जिसके लिए अश्विनी कुमारों ने धातु की टांग बनाकर विश्पला को लगाई और उसे फिर युद्ध के लिए तैयार किया था। स्त्रियों का यज्ञ में भाग लेने का वर्णन अनेक ऋचाओं में है। पहले मंडल की एक ऋचा की स्तुति में कहा गया है हे  अग्निदेव, इस यज्ञ में देवों की अभिलाषा करने वाली पत्नियों को ले आओ। इसकी अगली ऋचा में है हे अग्नि, हमारी रक्षा के लिए देव पत्नियों को इस यज्ञ में ले आओ। पांचवें मंडल में ऋषि श्यावश्व ने कहा है, जो पुरुष देवों की स्तुति नहीं करता और  धनदान नहीं करता है, उस पुरुष की अपेक्षा स्त्री शशीयसी अधिक महान है। आठवें मंडल की एक ऋचा में इंद्र का कथन है जिसमें स्त्रीधर्म के बारे में कहा गया है(गृहस्थ रूपी यज्ञ में) स्त्री ही ऋत्विक ब्रह्मा बनती है(स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ)। हे प्रयोगी तुम नीचे देखते हुए चला करो, ऊपर नहीं। पैरों को मिलाए रखो और तुम्हारे निम्नांग नग्न न हों। तुम्हारी जांघों को नग्न होते कोई न देखे।


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