गुलाब ने मिट्टी को बना दिया सोना

By: Jan 4th, 2017 12:07 am

उद्योग विभाग में गुलाब सिंह का चयन बतौर उद्योग अधिकारी हो गया और उन्हें चंडीगढ़ में इसके लिए ट्रेनिंग पर जाना था। गुलाब सिंह के लिए अब तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि उन्होंने जो माटी से सोना उगाने की कोशिश की, उस दिशा में चलें या फिर अफसर की कुर्सी पर बैठकर आराम से जिंदगी गुजर बसर करें…

cereerअफसर की गद्देदार कुर्सी छोड़कर गिरिपार के एक बेटे ने मिट्टी को मां की तरह पूजा। मां ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और बेटे के पसीने को जाया न कर मेहनत का ईनाम दे दिया। गुरबत से दौर में शुरू की सब्जियों की खेती आज गिरिपार के लिए एक मिसाल बन गई, जो कई और लोगों को खुशहाली की राह दिखा रही है। इन दिनों खास सुर्खियों में रहा गिरिपार का शिलाई क्षेत्र 1970 के दशक में गुमनामी के अंधेरे में डूबा था। रोजगार तब दूर-दूर तक की बात थी। करीब-करीब क्षेत्र में अभी शिक्षा की लौ जली ही थी। कांडो भटनाल पंचायत के भटवाड़ गांव के गुलाब सिंह नौटियाल ने दसवीं की पढ़ाई मुकम्मल कर ली। यह किसान परिवार के लिए खुशी की बात थी और अब नौकरी की एक आस बंध गई थी। पर गुलाब सिंह नौटियाल के मन में कुछ और ही चल रहा था। गुलाब सिंह देखते थे कि गिरिपार में आय का साधन कुछ नहीं था। किसान परंपरागत खेती करते थे। गुजारा करना मुश्किल होता था। ऐसे में उन्होंने सब्जियांं लगाने की सोची। मिट्टी का लाल कुछ नया करना चाहता था। इसी बीच उन्होंने सब्जियां लगाईं और ठीक पैदावार हो गई। इसी दौरान उद्योग विभाग में गुलाब सिंह का चयन बतौर उद्योग अधिकारी हो गया और उन्हें चंडीगढ़ में इसके लिए ट्रेनिंग पर जाना था। गुलाब सिंह के लिए अब तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि उन्होंने जो माटी से सोना उगाने की कोशिश की, उस दिशा में चलें या फिर अफसर की कुर्सी पर बैठकर आराम से जिंदगी गुजर बसर करें। कई दिन तक यही उधेड़-बुन चलती रही। पर आराम की जिंदगी पर मिट्टी से उनका जुड़ाव भारी पड़ गया और उन्होंने नौकरी के ऑफर को ठुकराकर अपनों के लिए काम करने को कहीं बेहतर माना। अब गुलाब सिंह ने मिट्टी को मां की तरह पूजना शुरू कर दिया। दिन-रात मेहनत करने लगे और वैज्ञानिक ढंग से सब्जियों की बिजाई, निराई और छंटाई शुरू कर दी। 1973 का वह दिन आज भी याद कर गुलाब सिंह की आंखें चमक उठती हैं, जब उन्होंने बड़े पैमाने पर सब्जियोंें की खेती शुरू की थी। सबसे पहले उन्होंने टमाटर, बैगन और भिंडी की खेती शुरू की। शुरू मंे वह सब्जी पीठ मंे लादकर करीब 15 किलोमीटर पैदल मिनस ले जाया करते थे, जहां प्रतिदिन 20 से 25 रुपए तक की आमदन होती थी। उन्हांेने बताया कि उस दौरान जब उनकी सब्जी एक दिन 42 रुपए की बिकी तो उनके दादा ने 42 मंे से दो रुपए उन्हें पारितोषिक दिया। दो रुपए मिलने के बाद उन्हें पूरी रात नींद नहीं आई। सुबह उठते ही वह घर से करीब दो किलोमीटर दूर कांडो आए, जहां दो रुपए मंे से 50 पैसे के दो पैकेट बिस्कुट ले गए तथा डेढ़ रुपए अपनी दादी को दिया। गुलाब सिंह ने बताया कि उसके कुछ सालों बाद वह मिनस की वजाय सब्जी शिलाई ले जाने लगे, जहां 200 से 500 रुपए तक की आमदन होने लगी। यही नहीं, मजेदार बात तो यह है कि शिलाई मंे व्यापार मंडल उनसे बाकायदा 50 रुपए मार्केटिंग के वसूलता था। गुलाब सिंह शर्मा ने बताया कि जब उन्हांेने बड़े पैमाने पर सब्जी का उत्पादन करना चाहा तो उनके पिता जी ने पूरी तरह इनकार कर दिया। बावजूद इसके भी उन्हांेने कृषि विभाग मंे कृषि अधिकारी से संपर्क कर पिता जी को मनाने का प्रयास किया। उसके उपरांत जब सब्जी से अच्छी आमदन होने लगी तो परिजनों ने भी पूरा सहयोग दिया। उन्होंने कहा कि शुरू मंे तो गांव के लोग व आसपास के ग्रामीण भी उनका यह कहकर मजाक उड़ाते थे कि जब सारे खेत मंे सब्जी उगाएगा तो अनाज कहां से पैदा करेगा। गुलाब सिंह का जुनून ऐसा था कि उन्हांेने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसके पश्चात अन्य लोगांे ने भी धीरे-धीरे सब्जी उत्पादन की ओर जाना आरंभ किया। आज गुलाब सिंह बड़े पैमाने पर न केवल सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि गिरिपार क्षेत्र के प्रगतिशील कृषकांे मंे से भी एक हैं। सब्जी उत्पादन के लिए उन्हें कई मंचांे पर विभिन्न विभागों व सरकारों द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। कुछ वर्ष पूर्व भले ही उनकी एक बाजू गेहूं की थ्रैशिंग करते हुए कट गई थी, लेकिन अब परिवार वाले बड़े पैमाने पर सब्जी का उत्पादन कर रहे हैं।

-रमेश पहाडि़या, नाहन

cereerजब रू-ब-रू हुए…

मेरी मेहनत के आगे मेरी अपंगता हार जाती है…

आपके लिए माटी का अर्थ क्या है?

खेती से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है। यदि कृषि नहीं होगी, तो देश की आर्थिकी डगमगा जाएगी।

सब्जी उत्पादन की तरफ क्यों मुड़े?

बचपन से ही मुझे खेती का शौक था। दसवीं पास करने के बाद मैंने तीन बार सरकारी नौकरी के लिए इंटरव्यू दिए, जिसमंे मेरी उद्योग अधिकारी के पद पर तैनाती हुई थी, मगर परिजनों ने ट्रेनिंग के लिए नहीं भेजा। और मेरा झुकाव इस ओर हो गया।

कभी ऐसा लगा हो कि सरकारी नौकरी मंे होता, तो आराम करता।

अगर आज के परिवेश में देखें तो खेती की अपेक्षा सरकारी नौकरी बेहतर है क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद बुढ़ापे मंे पेंशन मिलती है, लेकिन मुझे सरकारी नौकरी नहीं करने का कोई भी मलाल नहीं है। मैं अपनी मेहनत पर विश्वास रखता हूं।

हिमाचली खेत की क्षमता और आशा क्या हो सकती है?

जिस प्रकार आज मौसम में परिवर्तन हो रहे हैं तथा गर्मी अत्यधिक होती जा रही है, उसको देखते हुए हिमाचल प्रदेश की खेती आने वाले समय मंे सोना उगल सकती है। बशर्ते सरकार खेती को बढ़ावा दे।

नकदी फसलों मंे अगर हमें आगे बढ़ना है तो क्या करना होगा?

इसके लिए किसानों को आधुनिक एवं नवीनतम तकनीकों को अपनाना होगा। खासकर प्रदेश मंे सेब व अन्य फलों की बहुत संभावनाएं हैं। यदि सरकार खेती को प्राथमिकता दे, तो प्रदेश मॉडल राज्य बन सकता है। बागबानी व नकदी फसलों के साथ-साथ हमंे औषधीय पौधांे की खेती की ओर अग्रसर होना पड़ेगा।

आप नई जानकारियां कहां से लेते हैं? कृषि, बागबानी विभाग या विश्वविद्यालयों ने कितना समर्थन या प्रोत्साहन किया?

कृषि व उद्यान विभाग आज केवल बीज एवं दवाइयां बेचने तक ही सीमित रह गए हैं। कृषि एवं बागबानी की नवीनतम जानकारी हमें कृषि विश्वविद्यालय, उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय तथा कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं के विशेषज्ञों से समय-समय पर मिलती है। आज कृषि विज्ञान केंद्र कृषकांे के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है, क्योंकि केवीके से ही किसान नई तकनीकें एवं बीजों की जानकारी हासिल करता है।

शारीरिक अपंगता के बावजूद आपकी हिम्मत का राज क्या है?

मैं अपनी मेहनत पर विश्वास रखता हूं। बचपन से ही खेती की है जिसके चलते मुझे आज भी कृषि एवं बागबानी का शौक है। इसी से मैं आज संतुष्ट हूं।

आपके लिए जीवन की परिभाषा क्या है?

किसी भी कार्य को मेहनत व लगन से करना ही सही मायने में जीवन है। यदि कोई भी कार्य ईमानदारी से नहीं किया जाए, तो उसमंे कभी भी सफलता नहीं मिलती है।

और मनोरंजन कैसे करते हैं।

जीवन में मनोरंजन भी जरूरी है। भले ही मैं आज शारीरिक रूप से थोड़ा अक्षम हूं बावजूद इसके अपनी संस्कृति के प्रति रुझान कम नहीं है। पहाड़ी गाने पसंद हैं।

जब गर्व महसूस करते हैं!

जब मेहनत रंग लाती है तो व्यक्ति स्वयं ही अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता है। भले ही मेरी एक बाजू कट चुकी है बावजूद इसके भी खेती के प्रति मेरा लगाव कम नहीं हुआ है।

हिमाचल को सब्जी राज्य बनाना हो तो आपके क्या सुझाव होंगे।

इसके लिए सरकार को नई तकनीकों व आधुनिक खेती के बारे में किसानों को बताना होगा। साथ ही कृषकांे को अच्छे बीज एवं दवाइयां उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। अकसर विभाग की मार्फत दी जाने वाली दवाइयां व बीज निम्न स्तर के होते हैं जिसके चलते उसके रिजल्ट नहीं आते हैं।

सब्जी कारोबार से वार्षिक आय कितनी होती है।

गत तीन वर्षों से खेती की आमदनी में काफी गिरावट आई है। वर्तमान मंे सब्जियों व अन्य कृषि उत्पादों से तीन से चार लाख वार्षिक आमदनी हो रही है।


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