डाक्टर खेड़ा के छात्र छाए

चंडीगढ़ में माता-पिता संतान दिवस पर दिया सेवा का भावुक संदेश

चंडीगढ़ – वर्तमान के बच्चों में कृतज्ञता की भावना को जागृत करने के उद्देश्य से डा. खेड़ा चंडीगढ़ कोचिंग सेंटर द्वारा 14वें मात-पिता संतान दिवस का सेक्टर-23 चंडीगढ़ के बाल भवन में आयोजन किया गया। देश के विभिन उच्च मेडिकल एवं इंजीनियरिंग संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर रहे डा. खेड़ा कोचिंग सेंटर के पूर्व छात्र एवं वर्तमान विद्यार्थी अपने अभिभावकों संग इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। नगर निगम के मुख्य अभियंता एनपी शर्मा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए। यह कार्यक्रम माता-पिता की सेवा पर आधारित था। इसमें जो भी गीत या नाटक थे वह माता-पिता की सेवा को मुख्य रखते हुए रखे गए थे। कार्यक्रम प्रेरणादायक गीतों, कविताओं और नाटक पर आधारित था। विद्यार्थियों द्वारा गाए हुए गीतों ने श्रोताओं के दिलों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। विद्यार्थियों द्वारा गाए गए मधुर और दिल को छू जाने वाले गीतों में ‘माता-पिता का प्यार अनोखा, जब तू पैदा हुआ कितना मजबूर था, कैसे माता और पिता के उपकार सुनाएं हम, मेरी कौन करे परवाह’ शामिल थे। ‘पापा बहुत याद आते हैं’ गीत ने श्रोताओं विशेषकर विद्यार्थियों की आंखें नम कर दीं। एकांकी और बच्चों का स्वार्थ और दूसरी ओर माता पिता द्वारा दिए गए बलिदानों को चित्रित किया गया जिसे सभी ने खूब सराहा। नाटक के अंत में सभी प्रतिभागी विद्यार्थियों को अपने माता पिता के सामने दुखी हृदय से अपनी गलतियों की माफी मांगी और अपने माता पिता के द्वारा उनके भविष्य को बनाने के लिए दिए गए बलिदानों को दिल से महसूस करते हुए सम्मान और मान्यता दी। दर्शकों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि ने आने वाली पीढि़यों को सही दिशा दिखाने की और प्रेरित किया। उन्होंने परामर्श दिया कि माता-पिता अपने बच्चों के साथ बहुमूल्य समय बिताएं, ताकि बच्चे अपने जीवन को उन्नत कर सकें। चंडीगढ़ कोचिंग सेंटर के निर्देशक डा. खेड़ा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए सभी अभिभावकों को अपने बच्चों का आदर्श बनने की प्रेरणा दी। यह माता-पिता का सबसे प्रथम कर्तव्य है की वे अपने बच्चों के सामने ऐसे उदाहरण रखें, जिनका वे अनुसरण कर सकें माता पिता को अपने बच्चों को श्रद्धा, कृतज्ञता तथा सम्मान जैसे संस्कार देने चाहिए। माता-पिता तथा बच्चों के संबंधों में कड़वाहट तभी आती है जब वे अपने उच्च संस्कारों का अनुसरण नहीं कर सकते। संस्कारों के अभाव से ही समाज तथा देश को विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़ते हैं।