पत्तों की थाली का धंधा चौपट

पंचरुखी —  पत्तों की थाली यानी पत्तल अब बीते जमाने की बात होने लगी है। हिमाचल में सरकारों-नेताओं की अनदेखी से अब कारीगर इस काम को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। कभी शादी-समारोह पत्तल व डोने के बिना अधूरे माने जाते थे। जयसिंहपुर के पत्तलों की तो हर जगह डिमांड थी। इसी तरह शाहपुर के चड़ी-डोला आदि गांवों में कई परिवार इस कारोबार से जुडे़ थे, लेकिन हमारी सरकारों ने न तो कभी इसके लिए कोल्ड स्टोर की सोची न ही, कोई विशेष विक्रय केंद्र खोला। नजीता पत्तलों की जगह अब कागज या प्लास्टिक उत्पादों ने ले ली है। एक कारोबारी राज ने बताया कि सरकार अगर पत्तल का न्यूतम मूल्य तय कर बिक्री केंद्र खोल दे, तो ये कारोबार बच जाएगा। एक अन्य कारोबारी विधि का कहना है कि पत्तल की बेल के लिए बीज तक नहीं मिलते, काम क्या खाक करेंगे। जयसिंहपुर के  नडली, रंग्डू व घरचंडी गांव के लोग ये काम करके अपनी रोजी-रोटी कमाया करते थे । बेल रूपी पेड़ उक्त गांव के जंगली हिस्से में भरपूर है, जिन्हें टौर पेड़ के नाम से जाना जाता है ।  टौर पहले बेल के रूप में तैयार होता है व जैस-जैसे पुराना होता जाता है ये बेल बांस के पेड़ जैसा बन जाता है । इसके पत्तों को बांस की तीलियों से जोड़ कर पत्तल  का रूप दिया जाता है । इन्हीं पत्तियों से डोने यानी कटोरी बनाई जाती है । अब सरकारों की उपेक्षा के चलते व विभागों के उदासीन रैवेये तथा पेक्षित रवैये से ये ग्रामीण रोजगार विलुप्त होने की कगार पर है । किसान नेता मनजीत डोगरा ने इस संबंध में नडली, रंग्डू व घरचंडी के लोगों से मिल कर इस धंधे को बढ़ावा देने पर चर्चा की ।  इस उद्योग से जुड़े भरत, मैहर चंद, गुड्डी देवी, कश्मीर सिंह, बीना देवी, उर्मिला, सलोचना व रक्षा आदि ने मांग की है कि सरकार हस्तक्षेप कर इस धंधे को बढ़ावा दे।