पौंग बांध विस्थापितों की राशि का हुआ दुरुपयोग

By: Jan 25th, 2017 12:05 am

समिति के सदस्यों, सलाहकार एवं अध्यक्ष की कार्यशैली पौंग बांध विस्थापितों के हित में न होकर सिर्फ अपनी शान-ओ-शौकत के लिए पौंग बांध विस्थापित निधि की राशि का दुरुपयोग करने तक ही सीमित रही…

बनावटी झीलेंपौंग झील

समझौते के मसौदों को अमल में लाने के लिए भारत सरकार के दबाव से राजस्थान सरकार ने विस्थापित हुए परिवारों के पुनर्वास के लिए 3.25 लाख एकड़ भूमि जिला गंगानगर में रिजर्व कर दी थी, लेकिन बाद में राजस्थान सरकार ने हिमाचल सरकार के ढीले रवैये के चलते वर्ष 1968 में रिजर्व भूमि को घटाकर 2.25 लाख एकड़ कर दिया, परंतु इस पर हिमाचल सरकार और पौंग विस्थापित समिति ने कोई भी आपत्ति दर्ज नहीं करवाई, जबकि पौंग बांध विस्थापित समिति सलाहकार एवं अध्यक्ष हिमाचल प्रदेश के कैबिनेट स्तर के मंत्री ही थे, परंतु समिति के सदस्यों, सलाहकार एवं अध्यक्ष की कार्यशैली पौंग बांध विस्थापितों के हित में न होकर सिर्फ अपनी शान-ओ-शौकत के लिए पौंग बांध विस्थापित निधि की राशि का दुरुपयोग करने तक ही सीमित रही। राजस्थान सरकार ने इस का पूरा फायदा उठाते हुए 2.25 लाख एकड़ भूमि में से पहले-पहले वर्ष 1972 से 1975 की अवधि में 9195 परिवारों को भूमि का आबंटन कर दिया था। इसके बाद राजस्थान सरकार ने धीरे-धीरे एक सोची-समझी चाल के तहत बाकी के उजड़े परिवारों को जिला बीकानेर से लगती नियंत्रण रेखा के साथ आबंटन करने शुरू कर दिए, जहां पर न तो पीने का पानी उपलब्ध था और न ही प्रतिदिन की सुविधाएं उपलब्ध थीं। यह सिलसिला यहां खत्म न करते हुए राजस्थान सरकार ने एक और नई चाल चलते हुए पौंग बांध विस्थापितों की रिजर्व भूमि में से एक लाख एकड़ घटाई गई भूमि को अपने स्थानीय (राजस्थानियों) भूमिहीनों को आबंटित करना शुरू कर दिया। इस रिजर्व भूमि में से अभी तक 87968 एकड़ भूमि ही आबंटित हुई है और शेष बची रिजर्व भूमि राजस्थान सरकार के कब्जे में है। इसके उपरांत वर्ष 1976 से 1978 के मध्य 9195 परिवारों को आबंटन हुई भूमि में से राजस्थान सरकार ने 6658 परिवारों की अलॉटमेंट रद्द कर दी थी और वर्ष 1980 के बाद कुछ 2537 विस्थापित परिवारों का आबंटन बचा रहा। हिमाचल सरकार के राजनेता और अफसरशाही भूमि आबंटन के सही पात्रों की अनदेखी करते रहे हैं। पौंग बांध विस्थापन की कहानी, प्रदेश के समृद्ध किसानों के उजड़ने की जीती-जागती तस्वीर है। सरकारों के झूठे वादे, नौकरशाही की भू-माफिया से सांठ-गांठ, शायद ही कभी भविष्य में ऐसी योजनाओं के कार्यान्वयन में सरकार को लोगों का साथ व सुख्याति दिला सके।


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