प्रयास कभी न छोड़ें

By: Jan 14th, 2017 12:15 am

डार्विन शुरू में बड़ा मंदबुद्धि बालक था। उसका पढ़ने में जरा भी मन नहीं लगता था। स्कूल में न चल सकने के कारण उसे वहां से निकाल दिया गया था। उसने जब स्कूल छोड़ा था, उस समय तक वह अपनी भाषा भी भली-भांति नहीं सीख सका था। लोग उसके पिता से शिकायत किया करते थे कि आपके घर में एक अच्छा बुद्धू पैदा हुआ है। आप उसे पढ़ाना चाहते हैं और इस बात की आकांक्षा करते हैं कि वह जीवन में योग्य व्यक्ति बने, किंतु यह आपका सारा प्रयास व्यर्थ कर देगा। साथी डार्विन से व्यंग्य करते हुए कहा करते थे कि तुम कहीं जंगल में जाकर या तो कुत्ते-बिल्ली पकड़ो और बेचो या किसी तालाब-झील अथवा समुद्र के किनारे जाकर मछली मारो, पढ़ाई-लिखाई तुम्हारे वश की बात नहीं है। इतिहास बताता है कि डार्विन शुरू में ऐसा ही मंदबुद्धि बालक था, किंतु उनके पिता ने प्रयास न छोड़ा और न वे निराश ही हुए, वह बराबर उसको उपदेश करते और होनहार होने की शिक्षा दिया करते थे। वे दुर्ग बनकर अपने बच्चे को दुर्गुणों तथा दुर्व्यवसनों से बचाए रहते थे और खुद अच्छे-अच्छे महापुरुषों की कहानियां सुनाया करते थे। वह अपने साथ उसे काम में लगाए रहते और सदा ऐसा व्यवहार करते मानो वह उनका बहुत होनहार सपूत हो। पिता के प्रयत्नों का फलने का समय आया और डार्विन की गुप्त शक्तियां प्रबुद्ध हुईं और वह पिता के परिश्रम, आत्मविश्वास, उत्साह तथा एकाग्रता के गुणों के आधार पर संसार का सर्वमान्य दार्शनिक, अन्वेषक तथा समाजशास्त्री बना। उसका विकासवाद का सिद्धांत संसार में आज भी मान्य है। जहां बहुत से अभिभावक अपने बाल की चपलता तथा वाचालता देखकर उसे होनहार मानकर निश्चिंत हो बैठते हैं और विश्वास बना लेते हैं कि उसे अपने आप बढ़ते चलने देना चाहिए। यह नियति है कि वह आगे चलकर एक बड़ा आदमी बनेगा, वहां बहुत से अभिभावक अपने बच्चों की शरारत तथा नटखटपन देखकर निराश हो बैठते हैं। नेपोलियन अपने बचपन में बड़ा ही नटखट और शरारती बालक था। लड़ना-झगड़ना, मार-पीट करना, शिकार खेलना, पहाड़ों पर चढ़ना और शरारती लड़कों का नेतृत्व करना उसे बहुत पसंद था। पढ़ने-लिखने का यह हाल कि बीए की परीक्षा में अपने 41 साथियों के साथ बैठा। पास तो हो गया, किंतु रहा सबसे फिसड्डी, आखिरी नंबर पर पास हुआ। उसके उत्साही माता-पिता निराश न हुए, उसके नटखटपन अथवा शरारत को नियंत्रित करने और उसे स्फूर्ति निर्माण की दिशा में लगाने का प्रयत्न करते रहे। उस प्रयत्न से नेपोलियन ने अनुशासन का महत्त्व तथा शक्तियों को कार्य की ओर लगाना सीखा, जिसका फल यह हुआ कि वह संसार का एक महानतम सेनापति तथा यूरोप का विश्वविख्यात विजेता बना। इसके विपरीत उसके वे साथी जो बीए में पहले और दूसरे नंबर पर पास हुए थे, क्या बने, यह कोई नहीं जानता। निश्चय ही वे नेपोलियन से अधिक मेधावी तथा परिश्रमी रहे होंगे, किंतु वे विस्मृति के गहन अंधकार में विलीन हो गए। संदेह किया जा सकता है कि उनके माता-पिता ने उन्हें महज मेधावी तथा होनहार समझकर उनके निर्माण में सहयोग नहीं किया होगा, जिनके विषय में न्याय तो यह कहता है कि उन्हें नेपोलियन से अधिक यशस्वी होना चाहिए था, किंतु वे संसार के किसी अज्ञात कोने में साधारण मौत मरकर चले गए।  सर आइजक न्यूटन, जिन्होंने ग्रह-नक्षत्रों की गति तथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण आदि की खोज की और जिसकी देन आज तक वैज्ञानिकों व नक्षत्रविदों के लिए प्रकाश स्तंभ बनी हुई है, बाल्यकाल में बड़ा मंद बुद्धि बालक समझा जाता था। पढ़ने-लिखने में इतना कमजोर कि असाध्य समझकर सबसे पीछे बैठाया जाता था। उसे खिलौने बनाने का बड़ा शौक था, वह खिलौने बनाकर स्कूल ले जाता और वहां भी उनमें कुछ सुधार करता रहता था। साथी उसकी कृतियों पर हंसते थे और अध्यापक नाराज होते थे, किंतु उसके माता-पिता ने उसकी इस वृत्ति को कभी नहीं टोका और न हतोत्साहित ही किया। वह घर पर तन्मयता से जिस निर्माण में लगता था, उसमें लगा रहने दिया जाता था। ध्यान केवल यह रखा जाता था कि वह अपनी कला में विकास करता है अथवा यों ही समय नष्ट किया करता है। माता-पिता की इस बुद्धिमानी का फल यह हुआ कि उसी खिलौने बनाने वाले बालक न्यूटन ने हवा चक्की और पानी की घड़ी का आविष्कार किया, जिनका विकसित रूप हम आज बड़े-बड़े फ्लोर मिल और तरह-तरह की सुंदर घडि़यों के रूप में देख रहे हैं। वही रोगी और मंद बुद्धि बालक न्यूटन माता-पिता की सावधानी के कारण महान गणितज्ञ तथा यथार्थ विज्ञानवेत्ता हुआ।


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