बैंक खातों की पड़ताल

By: Jan 20th, 2017 12:05 am

(रूप सिंह नेगी, सोलन)

सरकार ने नोटबंदी के बाद बैंकों में विमुद्रीकृत नोटों के जमा राशियों में से काले धन की अलगसे पहचान करने के लिए जो फार्मूला तैयार  किया गया है, वह सराहनीय है। लेकिन विभिन्न व्यवसायों, गैर सरकारी संगठनों, सरकारी विभागों और  राजनीतिक दलों और कारोबारियों के चालू खातों के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है। ये तमाम संस्थाएं दूध की धुली नहीं हैं , इसलिए उनके खातों को भी तो खंगाला जाना जरूरी है। क्या सरकार यह मान कर बैठी है कि इन खातों में काला धन आने की संभावना नहीं है? यदि ऐसा है, तो इस पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है। सरकार के इस रवैया से बचत खाता धारकों पर गाज गिर सकती है। ऐसा क्यों महसूस होता है कि आम आदमी को ही सरकारी नियमों से दो चार होना पड़ता है। गरीब आदमी, किसान, छोटे कारोबारी, छोटे उद्योगों, दैनिक मजदूरों आदि को पहले ही नोटबंदी के कारण परेशानियों से जूझना पड़ा है। इनके खातों को खंगालने में यह आशंका हो सकती है कि कहीं अनाज के साथ घुन भी न पिस जाए। यह जरूरी नहीं है कि उन सभी खातों में काला धन छिपा होगा, जिन खातों में अधिक राशि जमा हुई है, क्योंकि कई लोगों की आदत  होती है कि वे नोटों को अपने पास ही जमा रखते हैं और नोटबंदी के चलते इन्होंने इन बड़े नोटों को बैंक खातों में जमा किया हो। ऐसे में सरकार को इस संदर्भ में कोई भी कार्रवाई करने से पहले सभी बिंदुओं पर गौर कर लेना चाहिए। सरकार को ध्यान में रखना चाहिए कि नोटबंदी के दौरान जिस आम आदमी ने करीब पचास दिन की मुश्किलें झेली हैं, उसे अब और अधिक न सताया जाए। यह कार्रवाई संतुलित होनी चाहिए।

 


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