भारत का इतिहास

By: Jan 25th, 2017 12:05 am

पूरे देश में फैले सांप्रदायिक दंगे

22 जुलाई को वायसराय ने अंतरिम सरकार के बारे में 16 जून के वक्तव्य के अनुरूप ही ताजा प्रस्ताव कांग्रेस और लीग के अध्यक्षों के सामने रखे। इनके अनुसार अंतरिम सरकार में 14 सदस्य होने थे, जिनमें 6 कांग्रेस मनोनीत करती (इनमें से एक अनुसूचित जाति का प्रतिनिधि होना था), 5 मुस्लिम लीग और और अन्य तीन अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए वायसराय स्वयं चुनते।  कांग्रेस और मुस्लिम लीग अपने स्थानों पर किसी को भी चुन सकती थी और कोई भी एक-दूसरे द्वारा चुने नामों पर आपत्ति नहीं कर सकता था। अर्थात कांग्रेस चाहती तो अपने स्थानों में से एक या अधिक राष्ट्रवादी मुसलमानों को दे सकती थी। साथ ही वायसराय ने यह औपचारिक शर्त भी रद्द कर दी कि सांप्रदायिक प्रश्नों पर दोनों दलों की स्वीकृति की आवश्यकता होगी।   तथापि यदि कांग्रेस सहज रूप से इस प्रकार की परिपाटी का विकास करना चाहे, तो वायसराय को प्रसन्नता होगी। लीग ने इन शर्ताें पर अंतरिम सरकार में सम्मिलित होने  से मना कर दिया और 27-29 जुलाई को लीग की परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया कि वह 16 मई की योजना की अपनी स्वीकृति वापस लेती है और स्वतंत्र पूर्ण प्रभुत्व संपन्न  पाकिस्तान राज्य की स्थापना के लिए सीधी कार्रवाई करेगी। 16 अगस्त सीधी कार्रवाई शुरू करने की तिथि तय की गई। सीधी कार्रवाई का उद्देश्य था हिंदुओं की मारकाट शुरू कर, सांप्रदायिक दंगों और आतंक का वातावरण फैलाकर यह सिद्ध करना कि हिंदू और मुसलमान साथ-साथ रह नहीं सकते और देश के विभाजन के अतिरिक्त और कोई रास्ता है ही नहीं। 16 अगस्त को देश के विभिन्न भागों में व्यापक  दंगे-फसाद हुए। बंगाल तथा सिंध में जहां मुस्लिम लीग की सरकारें थीं, 16 अगस्त को छुट्टी कर दी गई।  बंगाल के मुख्यमंत्री ने मुस्लिम जनता को हिंदुओं के विरुद्ध भड़काने वाले भाषण दिए। विशेषकर कलकत्ते (अब कोलकाता) में बड़े पैमाने पर रक्तपात हुआ। सरकारी अनुमानों के अनुसार 500 हिंदू मार डाले गए और 15 से 20 हजार हिंदुओं को चोटें आईं। संपत्ति लूटने की तथा महिलाओं के साथ विभिन्न प्रकार के अत्याचार और बलात्कार करने की भी असंख्य घटनाएं हुईं। शीघ्र ही सांप्रदायिक दंगों की ज्वाला सारे देश में फैल गई। एक जगह का बदला दूसरी जगह लेने का सिलसिला शुरू हो गया। नोआखली, बिहार, संयुक्त प्रांत, गुजरात और पंजाब में एक वर्ष से अधिक समय तक दानवता का नंगा नाच हुआ, वह भारत के इतिहास पर ऐसा धब्बा है, जिसको याद कर हर हिंदोस्तानी का सिर शर्म से झुकता रहेगा।


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