सत्य में स्थित होना जरूरी

By: Jan 14th, 2017 12:15 am

बाबा हरदेव

महापुरुष संतजन यही संदेश, यही पैगाम दे रहे हैं कि हम इस सत्य की, इस अकाल पुरख, परमात्मा, निरंकार, इस रमे हुए राम की जिसके अनंत नाम हैं, की पहचान करें। नामों से ऊपर उठें और नामी की पहचान करें। इस एक को एक करके जान लें, इस एक को एक करके मान लें और जब एक को एक करके मान लेंगे तो एकता के सूत्र में बंध जाएंगे। फिर कोई पराया, कोई बेगाना नजर नहीं आएगा, फिर सारे अपने नजर आएंगे। फिर भाईचारे की भावना को मजबूती मिलेगी और इसी भाईचारे की भावना से युक्त होकर हम संसार में विचरण करेंगे। फिर वाक्य को क्रियात्मक रूप दे दिया जाएगा इस अवस्था में आने के कारण जो वसुधैव कुटुंबकम का वाक्य धर्म ग्रंथों से हमें प्राप्त हुआ है कि सारी वसुधा के ऊपर बसने वाले लोग एक कुटुंब का हिस्सा हैं, एक परिवार का अंग हैं, इसी को हम भाईचारा कह रहे हैं कि यह भाईचारा स्थापित होता चला जाए। अगर भाई -भाई से ही टकराने लगेगा, अगर भाई-भाई का ही वैरी बन जाएगा अगर एक इनसान दूसरे इनसान का दमन करता चला जाएगा, एक- दूसरे की जानें लेता चला जाएगा तो इस वसुधा के ऊपर बसने वाला कुटुंब खुदा परवरदिगार का कुटुंब तो न हुआ, फिर तो ये कुछ और ही बन गया। इसीलिए इनसान को आज पुनः उस अवस्था में लाने की कोशिशें की जा रही हैं। महापुरुष परोपकार कर रहे हैं ताकि इनसान पुनः अपने मूल में स्थापित हो जाए। जन्म ले लेने के बाद और शरीर की मृत्यु होने के बीच का जो वक्फा है इसी की कीमत है, इसी का मोल डालें । जो भी जन्मा है उसने मरना भी है, हमेशा कोई भी नहीं रहता है और ये भी नहीं पता कि कितनी देर रहता है। अगले श्वास का भरोसा नहीं है, अगले पल का भरोसा नहीं है कि अगला श्वास आएगा कि नहीं आएगा। बोलते-बोलते लोग खामोश हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता है और बोलते-बोलते, सुनते-सुनते श्वास भी उखड़ जाता है। एक-एक श्वास कीमती है, इसलिए एक-एक पल जो हमारा बीत रहा है इसको इस कदर सुंदर बनाएं कि ये जन्म और मरण के बीच का जो सफर है, यह जो वक्फा है, यहखूबसूरत बन जाए, यानी कि हमारे जीवन की चाल सुंदर बन जाए, ऐसा हमने कर गुजरना है। दरअसल जो भक्तजन होते हैं उनके जीवन के भी दो तट होते हैं, एक जन्म के रूप में और दूसरा मरन के रूप में। दो तटों के बीच में गंगा की निर्मल धारा बहती है और गंदे नाले के भी दो ही तट होते हैं यानी कि जन्म और मरन अज्ञानी के साथ भी जुड़ा है और ज्ञानी के साथ भी है। भक्त के साथ भी जुड़ा हुआ है और साकत मनमुख के साथ भी, तो ये दोनों ही पहलू यानी कि जन्मना और मरना।

राम गइओ रावनु गइओ जा कउ बहु परवार।

कहु नानक थिरु कछु नहीं सुपने जिउ संसार।।

शरीर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का भी हमें देखने को नहीं मिलता और रावण जो अभिमानी था, अहंकारी था, शरीर उसका भी नहीं रहा। आए हैं सो जाएंगे राजा, रंक फकीर। एक सिंहासन चढि़ चले एक बंधे जंजीर। फकीर भी नहीं रहता और राजा भी नहीं रहता है। धनवान भी नहीं रहता है, विद्वान भी नहीं रहता है, जिसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है वो भी नहीं रहता है। आए हैं सो जाएंगे सबके साथ है। आना जिसके साथ भी लगा तो उसका जाना भी निश्चित है। एक सिक्के के दो पहलू, सिक्का जब भी बनता है, वो एक पहलू वाला नहीं बनता है, दोनों पहलुओं वाला ही बनता है।


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