सूर्य चिकित्सा और रंग

By: Jan 14th, 2017 12:15 am

रंग कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है, वह विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों के आपस में विभिन्न मात्रा में मिश्रण के परिणाम हैं। जिन प्रकार हर एक वस्तु के स्थूल, सूक्ष्म और अत्यंत सूक्ष्म परमाणु होते हैं, वैसे ही रंगों के भी होते हैं। बाजार से जो रंग मोल लाओगे उसमें स्थूल परमाणु होंगे। उसे पानी में घोलकर किसी कपड़े को रंग दोगे तो वह स्थूल परमाणु पानी के सहारे होकर कपड़े के रेशे में मिल जाएंगे, उस दशा में रंग के अणु सूक्ष्म ही हैं, पर अत्यंत सूक्ष्म नहीं, क्योंकि उन्हें साबुन या किन्हीं मसालों की सहायता से छुड़ाया जा सकता है…

सूर्य-चिकित्सा शास्त्र शरीर में रंगों की घट-बढ़ के कारण रोगों का होना मानता है। इसके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि रंग वास्तव में क्या है। पदार्थ-विज्ञान के छात्र जानते होंगे कि संसार के संपूर्ण पदार्थ परमाणुओं द्वारा बने हुए हैं। विश्व में असंख्य प्रकार के रासायनिक तत्त्व व्याप्त हैं। विभिन्न-विभिन्न प्रकार के तत्त्वों के, विभिन्न मात्रा में मिलने पर अलग-अलग पदार्थ बन जाते हैं। यह मिश्रित पदार्थ जड़ और चेतन दोनों प्रकार के होते हैं। तुम दूध को कई पात्रों में रखो और उनमें से एक में दही, दूसरे में कांजी, तीसरे में नमक, चौथे में शक्कर डालकर कुछ देर तक रखा रहने दो। फिर देखो कि उनमें क्या परिवर्तन होता है। सब पात्रों का दूध अलग-अलग स्थिति में होगा और उनके गुण तथा रूप आपस में बिलकुल भिन्न होंगे। चूना और हल्दी को इकट्ठा कर दें तो उसका रंग लाल हो जाएगा, उसी प्रकार नारियल के तेल में रतन ज्योति बूटी डाल दें तो उसका रंग भी लाल हो जाएगा। इन चारों चीजों में से यद्यपि किसी का रंग लाल न था, पर मिश्रण होते ही रंग बदल गया। इसलिए समझना चाहिए कि रंग कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है, वह विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों के आपस में विभिन्न मात्रा में मिश्रण के परिणाम हैं। जिन प्रकार हर एक वस्तु के स्थूल, सूक्ष्म और अत्यंत सूक्ष्म परमाणु होते हैं, वैसे ही रंगों के भी होते हैं। बाजार से जो रंग मोल लाओगे उसमें स्थूल परमाणु होंगे। उसे पानी में घोलकर किसी कपड़े को रंग दोगे तो वह स्थूल परमाणु पानी के सहारे होकर कपड़े के रेशे में मिल जाएंगे, उस दशा में रंग के अणु सूक्ष्म ही हैं, पर अत्यंत सूक्ष्म नहीं, क्योंकि उन्हें साबुन या किन्हीं मसालों की सहायता से छुड़ाया जा सकता है। अत्यंत सूक्ष्म परमाणु वह है जो किसी पदार्थ में इतना मिल जाए कि बिना उस पदार्थ को नष्ट किए वह पृथक न हो सके। पत्तियों का रंग, बालों का रंग, शरीर का रंग ऐसे ही अत्यंत सूक्ष्म परमाणुओं से बना हुआ है। रंगीन कांच में जो रंग होता है, वह भी इसी श्रेणी के परमाणुओं द्वारा निर्मित है। रंग स्वयं मिश्रण होते हैं। आगे चलाकर हम बताएंगे कि कौन-कौन सा रंग किन-किन रासायनिक पदार्थों के सम्मिश्रण से बना है। लड्डू देखने में तो स्वतंत्र चीज है, परंतु वास्तव में वह खांड, मैदा, घी, खोया आदि का सम्मिश्रण मात्र है। इसी प्रकार रंग भी कोई स्वतंत्र चीज नहीं, वह भी विभिन्न रासायनिक पदार्थों के अत्यंत सूक्ष्म परमाणुओं की स्फुरणा है।  हमारा शरीर भी रासायनिक तत्त्वों से बना हुआ है। उसके जिस अंग में जिस प्रकार के तत्त्व अधिख होते हैं, वहीं रंग भी हो जाता है। चमड़े का रंग गेहुंआ, बालों का काला, आंखों का सफेद, पुतली का कसीसी, जीभ का गुलाबी, नाखूनों का फिरोजी, नसों का नीला, फेफड़ों का पीला, आंतों का भूरा, भीतरी झिल्लियों का मटमैला, हड्डियों का सफेद इस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों के विभिन्न रंग होते हैं।  यदि इनमें पृथक-पृथक प्रकार के द्रव्य न होते और द्रव्यों के मिश्रण से विभिन्न रंग न बनते तो भीतर बाहर सब जगह एक सा रंग होता। अब पाठक समझ गए होंगे कि शरीर में रंगों की विभिन्नता किस कारण से है। शरीर में स्थित पदार्थों की कमी-बेशी की सर्वसुलभ, सस्ती और निश्चयात्मक परीक्षा किसी भी अंग का रंग देखकर की जा सकती है। पीला चेहरा देखकर आप अनायास ही कह सकते हैं कि इसे कमजोरी है और रक्त निर्बल हो गया है। पीली आंखें पांडु रोग और नीली या हरी आंखें कमलवाय (कामला) रोग का प्रतिनिधित्व करती हैं। कफ, पेशाब, मल आदि का रंग शरीर में उपस्थित गड़बड़ी का बहुत कुछ बयान कर देता है। यदि रंग का घटने-बढ़ने का महत्त्व न होता तो पीला या लाल रंग लिए हुए पेशाब आने पर आप क्यों चिंतित हो उठते हैं? जवान सफेद पड़ने लगे और नाखून पीले हो जाएं, तो आपकी बीमारी की आशंका प्रकट होती है। जीभ के काली पड़ जाने पर मृत्यु की आशंका प्रकट हो जाती है।


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