‘ हम ’ शब्द जोड़ता है और ‘ मैं ’ दूरियां पैदा करता है

By: Jan 18th, 2017 12:05 am

‘हम’ शब्द हमें आपस में जोड़ता है जबकि ‘मैं’ दूरियां पैदा करता है। इसलिए ‘मैं’ की जगह ज्यादा से ज्यादा ‘हम’ शब्द का इस्तेमाल करें। आदर्श स्थिति यह है कि दोनों पक्षों की जीत हो। इसका तात्पर्य है कि दोनों पक्षों के लिए कुछ अर्थपूर्ण चीजें सामने आएं…

जीनियस लोग खुद को ही सब कुछ मान कर अपने में ही मुग्ध नहीं रहते हैं। जितना संभव हो दूसरों की खूबियों पर नजर दौड़ाएं। अलग-अलग क्षेत्र के उन लोगों को पढ़ें, जो प्रतिभाशाली हैं। पहली नजर में ऐसा कुछ नजर न आए तो भी कुछ और समय लगाएं। यकीनन आप पाएंगे कि उनमें ऐसा कुछ जरूर है, जिसने उन्हें जीनियस बनाया। दूसरों की प्रतिभा के बारे में लोगों से बात करें। दूसरों के प्रति प्रशंसापूर्ण व विश्वसनीय बनने की भरपूर कोशिश करें। यकीन मानें, दूसरों के प्रति किया गया यह व्यवहार लौटकर आपके पास ही आएगा। जो स्नेह, अपनापन एवं सौहार्द रखने वाले असल में बड़े होते हैं, जीवन को सफल बना रहे होते हैं।। ऐसे गुणों के कारण ही वे महान कहे जाते हैं। अशांति फैलाने वाले, तेरा-मेरा करने वाले एवं स्वार्थी तो छोटे हैं और छोटे ही रहेंगे। ईर्ष्या और द्वेष रखने से हम अपने आप पर बोझ बनाए रखते हैं तथा अप्रसन्नता और दुख को बुलावा देते हैं। जान सलडेस ने जीवन का सत्य उजागर करते हुए कहा है कि निराशावादी हरदम बुराई ही देखता है। आशावादी की नजर अच्छी चीजों पर रहती है। निराशावादी तो अपनी फिक्र में ही कमजोर पड़ जाता है। आशावादी अपनी खुशी में परेशानी दूर कर लेता है। अकसर हम अपने अहंकार के कारण दुःख और अशांति को आमंत्रित करते है। ‘हम’ शब्द हमें आपस में जोड़ता है जबकि ‘मैं’ दूरियां पैदा करता है। इसलिए ‘मैं’ की जगह ज्यादा से ज्यादा ‘हम’ शब्द का इस्तेमाल करें। आदर्श स्थिति यह है कि दोनों पक्षों की जीत हो। इसका तात्पर्य है कि दोनों पक्षों के लिए कुछ अर्थपूर्ण चीजें सामने आएं। छोटी-छोटी चीजें, जैसे कि ध्यानपूर्वक सुनने, सराहना करने और आभार जताने से ‘हम’ की भावना पुष्ट होती है। डायन सॉयर, जूलिया रॉबर्ट्स, अब्राहम लिंकन, एमा वॉटसन, क्रिस्टीना ऑगिलेरा और बिल गेट्स जैसी शख्सयतें ‘हम’ होने की भावना को लेकर जी और इसी से वे सफल भी बनीं और लोकप्रिय भी हैं।हमारी दुनिया में हर कोई मेरे लिए टीचर जैसा है, इसी सोच से हम करिश्माई शख्सियत बन सकते हैं। महान बनने और जीवन को सार्थक बनाने के लिए जरूरी है कि हम दूसरों को महत्त्व दें। अपनी सोच में खुलापन लाएं। लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा कि आप अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करते हैं। जब आप लोगों की सराहना करते हैं, तो वे भी आपको पसंद करने लगते हैं। अगर लोग आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे और उनकी सोच भी नकारात्मक है, लेकिन आपका रवैया सकारात्मक रहता है, तो बहुत मुमकिन है कि धीरे-धीरे उनका व्यवहार आपके लिए सौम्य हो जाए। अगर आप चाहते हैं कि दूसरे आपका हौसला बढ़ाएं तो आप उनका हौसला बढ़ाने से शुरुआत करें। इस तरह की सकारात्मकता से आप दूसरों के करीब जा सकते हैं। लेकिन ऐसा संभव होता नहीं है, क्योंकि हम हर अच्छाई की उम्मीद दूसरों से ही करते हैं।

—ललित गर्ग, पटपड़गंज, दिल्ली


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