लो वसंत फिर आया

By: Feb 1st, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

मौसम करवट बदल रहा है, मस्ती का है साया,

कलिका झांक रहीं, लो वसंत फिर आया।

फुलवाड़ी घर-घर की महकी, पक्षी सुध-बुध भूले,

पड़ती है फुहार हल्की सी, डाल रहे वो झूले।

वसुधा नई-नवेली दुल्हन, ओढ़ दुपट्टा पीला,

बिंदिया जवां कुसम की, लहंगा लिए चमकीला।

ठिठुर रहे थे पौधे जो, गा-झूम रहे हैं,

पशु-पक्षी कर रहे नृत्य, जोड़ों में चूम रहे हैं।

बागबान मदहोश हुआ है, फूला नहीं समाता,

पीले हाथ करे मुन्नी के, समय समीप अब आता।

कलियां नहा रहीं शबनम से, बूंदें बिखर गई हैं,

साग चुन रही बालाएं, खेतों में निखर गई हैं।

मौसम में रोमांच छा रहा, पवन सुगंध लुटाता,

नहीं संभलता आंचल, बालाओं का, उड़ता जाता।

स्वर का वर दे रही शारदा, वाणी हमको देती,

इसकी पूजा करें नित्य, कष्ट सभी हर लेती।

 


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