सामाजिक परिदृश्य में डाक्टरों की इज्ज्त
( कुलदीप चंदेल लेखक, बिलासपुर से हैं )
यह समाज जितना मान-सम्मान डाक्टर का करता है, उतना तो डीसी, एसपी या किसी दूसरे बड़े अधिकारी व नेताओं का भी नहीं करता है। फिर उस डाक्टर से बदतमीजी क्यों हो? हां, उन डाक्टरों को भी अपना व्यवहार बदलने की जरूरत है, जो मरीजों के साथ टाल-मटोल करते हैं। जो परेशान रोगियों से भी बड़ी बदतमीजी से पेश आते हैं…
हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य संस्थानों में डाक्टरों व अन्य स्टाफ के साथ होने वाली हिंसक घटनाओं को लेकर प्रदेश के डाक्टरों में भारी गुस्सा देखने को मिल रहा है। आलम यह कि डाक्टरों ने इस गुस्से की झलक एक दिन का सामूहिक अवकाश लेकर प्रदेश सरकार व आम जनता को दिखाई है। सरकार नहीं चेती, तो डाक्टरों की एसोसिएशन ने आगे की रणनीति भी बना ली है, जिसमें तीन से 12 फरवरी तक दो घंटों की पेन डाउन स्ट्राइक तथा 13 फरवरी को फिर से सामूहिक अवकाश लेने की बात कही गई है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है, दुखद है। डाक्टर वर्ष 2010 में गैर जमानती बनाए गए मेडिपर्सन एक्ट को लागू करने की मांग कर रहे हैं। यह मांग पिछले छह सालों से हो रही है। यदि इस बारे अध्यादेश ला दिया जाए, तो कोई पहाड़ नहीं गिर जाएगा। आखिर क्यों हो डाक्टरों व अन्य स्टाफ से स्वास्थ्य संस्थानों में मारपीट? जो लोग रात-दिन पीडि़त, दुखी मरीजों की सेवा में जुटे रहते हैं, उनसे दुर्व्यवहार या उससे भी बढ़कर मारपीट करने की इजाजत किसी को भी क्यों मिले?
ऊना के डाक्टर के साथ जो कुछ हुआ, वह किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसी कई घटनाएं कई बार मीडिया की सुर्खियां बनती रहती हैं। कई बार स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवा रहे इन कर्मचारियों को राजनीतिक प्रताड़ना का भी शिकार होना पड़ता है। यदि कोई डाक्टर या अन्य पैरामेडिकल स्टाफ का कर्मचारी किसी मरीज से दुर्व्यवहार या अनदेखी करता है, तो उसकी शिकायत की जा सकती है, लेकिन कोई उनसे मारपीट या दुर्व्यवहार करने पर उतर आए, हिंसक वारदात करने लगे तो सभ्य समाज में यह कैसे सहन किया जा सकता है? डाक्टर को तो इसी समाज ने भगवान का दर्जा दिया है। यह समाज जितना मान-सम्मान डाक्टर का करता है, उतना तो डीसी, एसपी या किसी दूसरे बड़े अधिकारी व नेताओं का भी नहीं करता है। फिर उस डाक्टर से बदतमीजी क्यों हो? उसे डराया-धमकाया क्यों जाए? उसे गलत करने पर मजबूर क्यों किया जाए? कई बार कुछेक डाक्टरों की लोग आपस में शिकायत करते हैं, उसके रूखे व्यवहार की निंदा करते हैं। डाक्टर को नालायक तक बता देते हैं। यह बात ठीक है कि किसी को भी किसी के बारे में अपनी राय बनाने का पूरा हक है, लेकिन मारपीट व दुर्व्यवहार करने का अधिकार तो कतई नहीं है और फिर नालायक लोग कहां नहीं होते?
किस प्रोफेशन में नहीं होते? राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले क्या सभी दूध के धुले होते हैं। क्या पत्रकारिता, अध्यापन, इंजीनियरिंग या ब्यूरोक्रेसी में सब ठीक होता है? धार्मिक क्षेत्र क्या नालायकी से अछूता है? हम लोग बात तो विदेश की करेंगे। अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी, आस्ट्रेलिया तक का उदाहरण दे देंगे, लेकिन उस समाज के लोग कितने सभ्य तरीके से व्यवहार करते हैं, ऐसा हम क्यों नहीं करें? क्या उस समाज में किसी की हिम्मत डाक्टर को अस्पताल में पीटने या गालियां देने की हो सकती है? ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता है, पर हमारे यहां सब चलता है और डाक्टरों को अपनी सुरक्षा के लिए हड़ताल पर जाना पड़ता है। सामूहिक अवकाश लेना पड़ता है। यदि इन सारी समस्याओं के पीछे का कारण खोजा जाए, तो एक ही बात सामने आती है कि हमारा नैतिक पतन हो रहा है। हम लोग राष्ट्रीय चरित्र मजबूत बनाने के मामले में पिछड़ गए हैं। यही सारी समस्या की जड़ है। यदि राष्ट्रीय चरित्र मजबूत होता तो किसी की हिम्मत डाक्टर से हिंसक व्यवहार करने की नहीं होती। डाक्टर से भी किसी को उसके काम की शिकायत नहीं होती। कोई सार्वजनिक स्थानों को गंदा नहीं करता। सरकारी ओहदों पर बैठे लोग रिश्वत लेते नहीं पकड़े जाते। हमारे नेता समाज का मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा तैयार रहते, स्वार्थ से दूर रहते, लेकिन ऐसा नहीं है। कमी तो हर जगह है, क्योंकि डाक्टर के पास हमेशा दुखी लोग ही इलाज के लिए आते हैं, इसलिए उससे समाज को सबसे अलग व्यवहार की जरूरत महसूस होती है। डाक्टर ठीक होना चाहिए। वह हर समय उपलब्ध रहना चाहिए। वह तुरंत मरीज को देखे।
तकलीफ दूर करे। समाज जो अपेक्षा डाक्टर से करता है, क्या वह भी बदले में वैसा ही व्यवहार करता है? उत्तर मिलेगा नहीं। तभी तो डाक्टर मेडिपर्सन एक्ट को लागू करने की मांग कर रहे हैं। इससे उन लोगों को, जो हिंसक व्यवहार पर उतर आते हैं, अपने व्यवहार पर अंकुश लगाने में सोचना पड़ेगा, क्योंकि गलत करने पर उन्हें जेल जाना होगा। गैर जमानती उनका व्यवहार माना जाएगा। इससे आम लोगों को कोई तकलीफ नहीं होगी। आम आदमी तो डाक्टर का हृदय से अभिवादन करता हुआ, उसके पास हाजिर होता है। हां, उन डाक्टरों को भी अपना व्यवहार बदलने की जरूरत है, जो मरीजों के साथ टाल-मटोल करते हैं। जो परेशान रोगियों से भी बड़ी बदतमीजी से पेश आते हैं या पद की धौंस जमाते हैं। ठीक से उन्हें ट्रीट नहीं करते हैं। कुल मिलाकर समाज में कहीं भी किसी से दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए। बड़ी कुर्सियों, बड़े ओहदों पर वैसे बड़े लोगों से समाज को कुछ अधिक अपेक्षा रहती है। तभी वे बड़े कहे जाते हैं। चाहे वे डाक्टर हों या ब्यूरोक्रेट या नेता आदि।
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