ऋग्वेद में वर्णित शुतुद्रि ही वर्तमान में है सतलुज नदी
ऋग्वेद में वर्णित सरिता शुतुद्रि ही वर्तमान सतलुज है। अविभाजित पंजाब के नामकरण में जिन पांच नदियों का योगदान रहा है, उनमें सतलुज के अतिरिक्त अन्य चार नदियां वर्तमान में ब्यास, रावी, चिनाब तथा जेहलम के नाम से जानी जाती हैं…
हिमाचल की नदियां
सतलुज ः यह वेदों में ‘सुतुद्रि’ और सांस्कृतिक साहित्य में ‘शुतद्रु’ के नाम से वर्णित नदी है, जो तिब्बत स्थित मानसरोवर की झील के पास कैलाश पर्वत के दक्षिण में राक्सताल झील से निकलकर 400 किलोमीटर के लगभग की दूरी तय करने के बाद जांसकर और बृहद हिमालय को काटती हुई शिपकी दर्रे के पास हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। शिपकी से थोड़ा नीचे पहुंचने पर स्पीति घाटी की प्रसिद्ध 112 किलोमीटर लंबी स्पीति नदी उत्तर की ओर से इसमे शामिल हो जाती है। उसके बाद यह दक्षिण-पश्चिमी दिशा में बहती हुई चली जाती है।
बिलासपुर के ‘भाखड़ा गांव’ के पास यह हिमाचल की सीमा को छोड़ कर पंजाब की सीमा में प्रवेश कर जाती है। यहीं इस पर एशिया का सबसे ऊंचा भाखड़ा बांध बना है। इसमें दो दर्जन के लगभग सहायक नदियां और खड्डें शामिल होती हैं, जिनमें स्पीति के अतिरिक्त किन्नौर की 72 किलमीटर लंबी बास्पा नदी प्रसिद्ध है। भावा भी इसकी सहायक है। खाब से नीचे संकरे पाट से बहती सतलुज बास्पा को अपने साथ लेने के लिए कड़छम रुकती है और कड़छम में हिंदोस्तान-तिब्बत मार्ग के पूर्वोत्तर में अनेकों शिला खंडों को एक-दूसरे पर लादे हुआ सा पर्वत शैल ढांका स्थित है। मानसरोवर से ही सतलुज का मार्ग प्रशस्त करने वाला मानव बाणासुर था, जिसकी कीर्ति के गीत पूर्व में ब्रह्मपुत्र उपत्यका से लेकर पश्चिम में ब्यास के जलसंग्रहण भू-भाग तक पाए जाते हैं। पौराणिक विवरणों में उसे विरोचन का पौत्र और राजा बलि का पुत्र कहा गया है। किन्नौर में एक युग ऐसा आया जब उसे मेशुर (महेश्वर शिव) का जनक तक कहा गया। वैसे तो समूचे हिमालय में अनेक गाथाएं हैं, जिनमें कहीं वह सेना नायक हैं, कहीं मंत्री और किसी में राजा। ऋग्वेद में वर्णित सरिता शुतुद्रि ही वर्तमान सतलुज है। अविभाजित पंजाब के नामकरण में जिन पांच नदियों का योगदान रहा है, उनमें सतलुज के अतिरिक्त अन्य चार नदियां वर्तमान में ब्यास, रावी, चिनाब तथा जेहलम के नाम से जानी जाती हैं, जो ऋग्वेद में क्रमशः विपाट् (विपाश) परूष्णी, असिवनी और वितस्ता कहलाती थीं। ‘शतुद्र’ यानी ‘सैकड़ों धाराओं वाली’ के नाम से विख्यात हुई। उक्त दो नामों के अतिरिक्त सितलोदा, शतरूद्रा आदि भी सतलुज के नाम बताए गए हैं। हिमालय से निकलने के कारण इसे ‘हेमवती’ भी अथवा ‘हुफसिस’ कहा गया है। सतलुज को ग्रीक में ‘हुपनिस’ अथवा ‘हुफसिस’ कहा गया है।
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