एक झलक से चर्चा बटोरना नहीं चाहती

एक्ट्रेस हुमा कुरैशी आने वाले दिनों में कई अलग-अलग तरह की फिल्मों में नजर आने वाली हैं। अक्षय कुमार के साथ वह जल्द ही ‘जॉली एलएलबी 2’ में दिखाई देंगी, वहीं गुरिंदर चड्डा निर्देशित ‘वाइसराइज हाउस’ से वह हालीवुड डेब्यू के लिए भी तैयार हैं। इसके अलावा 2014 में आई हालीवुड की ‘हॉरर’ फिल्म ‘ऑक्युलस’ की हिंदी रीमेक ‘दोबारा’ में वह पहली बार अपने भाई एक्टर साकिब सलीम के साथ भी नजर आएंगी। पेश है इस बारे में हुमा से हुई एक खास बातचीत…

‘जॉली एलएलबी’ एक हीरो सेंट्रिक फिल्म थी। ऐसे में  आपकी ‘हां’ कहने की क्या वजह रही।

दरअसल, फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत अच्छी थी। जब सुभाष सर निर्देशक सुभाष कपूर ने मुझे स्क्रिप्ट सुनाई, तो उसे सुनते ही मुझे उस स्क्रिप्ट से प्यार सा हो गया। इसके अलावा मेरा बड़ा मन था अक्षय सर के साथ काम करने का, क्योंकि वह जिस तरह की फिल्में कर रहे हैं, उसमें कमाल की स्टोरी और बेहतरीन परफोर्मेंस होती हैं। तो मुझे लगा कि इसके जरिए मुझे भी अच्छा मौका मिलेगा।

अक्षय की फिल्में ज्यादातर उन्हीं के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। हीरोइन उनकी सपॉर्ट सिस्टम भर ही दिखती हैं। आपने इस बारे में कुछ नहीं सोचा?

अक्षय सर की फिल्में उनके इर्द-गिर्द होनी भी चाहिए। वह 26 साल से सुपरस्टार हैं। सही है, वही हीरो हैं फिल्म के, लेकिन ‘जॉली एलएलबी 2’ एक केस के इर्द-गिर्द घूमती है और ऐसा नहीं है कि इसमें पुष्पा यानी मेरा कैरेक्टर कोई ऐसी औरत का नहीं है, जो ऐसे ही पड़ी हुई है उनकी बीवी या गर्लफे्रंड टाइप। पुष्पा बहुत ही फन कैरेक्टर है। उसको शराब पीना पसंद है। उसको पार्टी करना पसंद है। वह अपने पति से लड़ती रहती है कि मुझे यह चाहिए मुझे वो चाहिए, लेकिन वह उसके लिए बहुत प्रोटेक्टिव भी है। फिल्म में मेरे बहुत अहम सीन भी हैं। एक एक्शन सीन भी है, इसलिए ऐसा नहीं है कि यह फिल्म केवल अक्षय सर के बारे में है।

वैसे आप फिल्में किस आधार पर चुनती हैं। जैसे कोई फिल्म अच्छी है, पर आपका रोल कम है, तो आप करेंगी या आप अच्छे किरदार को तरजीह देती हैं?

यार! यह कुछ वैसा ही सवाल है जैसे बारहवीं के बाद पूछते थे कि आप अच्छा कालेज चुनेंगे या अच्छा कोर्स। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं,जो बहुत अच्छी होती हैं और जिसमें बहुत अच्छा मैसेज होता है, तो आप उसका हिस्सा बनना चाहते हैं, लेकिन मैं स्क्रिप्ट और रोल, सब देखती हूं। किसी एक पहलू को लेकर फिल्म को जज नहीं किया जा सकता। सारी चीजें देखनी पड़ती हैं।

आपकी पहली हालीवुड फिल्म ‘वाइसरायज हाउस’ की भी काफी चर्चा हो रही है। उसका अनुभव कैसा रहा?

‘वाइसरायज हाउस’ मेरी पहली हालीवुड फिल्म है, जिसके लिए मैं बहुत एक्साइटेड हूं। यह बहुत सोलफुल फिल्म है। मैंने यह फिल्म इसलिए की क्योंकि इसमें मेरा रोल बहुत अच्छा था। वैसे भी मैं हालीवुड जाकर बस एक झलक दिखलाने वाला रोल करके चर्चा बटोरने का काम कभी नहीं करना चाहती। इसमें मेरा किरदार आलिया का है, जो बहुत स्ट्रांग लड़की है। यह एक पीरियड फिल्म है। उस जमाने की पिक्वर है, जब लड़कियां उतना खुलकर नहीं बोल पाती थीं। हिंदोस्तान तब आजाद भी नहीं हुआ था, उस पर यह एक मुसलमान लड़की है, लेकिन आलिया पढ़ी-लिखी है, उसकी एक सोच, एक नजरिया है चीजों को लेकर। फिर एक लव स्टोरी है, उसके और एक हिंदू लड़के के बीच की। तो मुझे लगा कि यह रोल तो मुझे करना ही है। फिल्म का एक्स्पीरियंस भी बहुत अच्छा रहा। गुरिंदर चड्डा कमाल के डायरेक्टर हैं। यह फिल्म भारत-पाक विभाजन पर अधारित है। मुझे लगता है कि सन् 1947 में हमें आजादी जरूर मिली, पर बहुत गहरे घाव छूट गए थे, जो कहीं न कहीं अब भी हमारे दिलों में हैं।

हमारे यहां एक्टर्ज को एक खास तरह के फिगर या ढांचे में ढालने की कोशिश की जाती है। आपकी इस बारे में क्या राय है?

मेरी सोच यह है कि हर कोई अलग है। सभी यूनीक हैं। मेरा मानना है कि चाहे मर्द हो या औरत, खासतौर पर औरतों को हमें ऑरिजनल रहने के लिए बढ़ावा देना चाहिए। वे जो भी हों, उनकी सोच हो, कपड़े पहनने का ढंग हो, बॉडी टाइप हो या कोई शौक हो। भेड़चाल नहीं होनी चाहिए। अगर आप ऐसी दिखती हैं, तो कूल हैं और अगर ऐसा नहीं करती हैं तो कूल नहीं हैं।

फिल्म इंडस्ट्री एक प्रतियोगी फील्ड है। आपमें यह भावना कितनी है। किसी से कंपीटीशन फील करती हैं?

मैं किसी से प्रतियोगिता करने के बजाय अपने काम को लेकर ज्यादा भावुक हूं। मैं दूसरी एक्टर्ज से इंस्पायर्ड होती हूं कि उसने बहुत अच्छा काम किया। कंपीटीशन का मुझे नहीं पता, क्योंकि अगर वही किरदार मुझे निभाने को दिया जाता, तो मैं बहुत अलग तरीके से करती।