कम छात्रों वाले स्कूल न हों बंद

शिमला —  एसएफआई राज्य कमेटी प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय द्वारा दस से कम छात्रों वाले 250 स्कूलों को बंद करने का जो प्रस्ताव सरकार को भेजा है उसका कड़े शब्दों में विरोध किया है। एसएफआई राज्य कमेटी का आरोप है कि प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय ने सरकार को दस से कम छात्रों वाले 250 स्कूलों को बंद करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है और उसके पीछे शिक्षा की गुणात्मकता को बढ़ावा देने का तर्क दिया है, जो कि सरासर आधारहीन है। राज्य कमेटी का मानना है कि स्कूलों को बंद करने से शिक्षा की गुणात्मकता में सुधार नहीं बल्कि गिरावट आएगी। हिमाचल पहाड़ी राज्य है, जिसमें अधिकतर लोग गांवों में रहते हैं और गांव में स्कूल बंद होने की वजह से मजबूरन छात्रों को निजी स्कूलों की तरफ जाना पड़ेगा, जिससे अभिभावकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पडे़गा। एसएफआई राज्य अध्यक्ष विवेक राणा ने आरोप लगाया कि सरकार दिन प्रतिदिन अपनी राजनीति को चमकाने के लिए बिना आधारभूत ढांचे के कालेज खोल रही है और दूसरी ओर कालेज में पहुंचने के लिए जो स्कूली शिक्षा अनिवार्य होती है उन स्कूलों को बंद किया जा रहा है, जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। राज्य कमेटी ने आरोप लगाया है कि सरकारी स्कूलों को बंद करने का प्रस्ताव सीधे तौर पर निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाने की कोशिश है और अधिकतर निजी स्कूलों के मालिक भाजपा व कांग्रेस के लोग हैं।  इसलिए शिक्षा की गुणवत्ता महज एक बहाना है। राज्य इकाई ने आरोप लगाया कि प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों की अधिकतर पद खाली है, भवनों की स्थिति दयनीय है, अधिकतर स्कूलों में शौचायलों नहीं है और जहां है वहां दयनीय स्थिति में है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के अंदर एक भी महाविद्यालय ऐसा नहीं है, जिसमें सारे प्राध्यापक है, छात्रों को पढ़ने के लिए पूरे कमरे नहीं है।  राज्य कमेटी ने मांग की है कि सरकार शिक्षा निदेशालय के इस प्रस्ताव को तुरंत खारिज करे। राज्य कमेटी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर सरकार इस प्रस्ताव को खारिज नहीं करती है, तो एसएफआई पूरे प्रदेश भर में इसके खिलाफ आंदोलन करेगी।

क्रांति मंच ने भी जताया ऐतराज

शिमला —  हिमाचल शिक्षक क्रांति मंच अध्यक्ष विजय हीर ने कहा कि मुख्यमंत्री ने कई बार स्पष्ट किया है कि दुर्गम और पिछड़े क्षेत्रों में चल रहे स्कूल कम संख्या के बावजूद बंद नहीं होंगे। श्री हीर ने कहा कि मान्यता नियमों के विपरीत चल रहे निजी स्कूलों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के पांच साल होने पर भी बंद नहीं किया जा रहा है और उनको छह माह की रियायत गत वर्ष भी दी गई, मगर सरकारी स्कूलों को नामांकन बढ़ाने के लिए यह अवसर क्यों नहीं दिया जा सकता है । उन्होंने कहा कि अनेक निजी स्कूल सरकारी स्कूलों से सौ गज दायरे में  खुले हैं और उनमें न टेट पास जेबीटी हैं न ही शिक्षा के अधिकार और मान्यता नियमों के तहत जरूरी सुविधा, मगर इनको बंद करने की बजाय सरकारी स्कूलों को बंद किया जा रहा है।