कुटुंब के अनगिनत लाभ

By: Feb 4th, 2017 12:05 am

सामाजिक दृष्टि से सम्मिलित परिवार अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है। चार अनुभवी व्यक्तियों के परिवार की सम्मिलित जनशक्ति देखकर प्रतिद्वंद्वी अनायास मुकाबला नहीं करते, मित्र आकर्षित होते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है। सम्मिलित शक्ति के स्वामित्व का भान घर के प्रत्येक सदस्य को रहता है। हर सदस्य समझता है कि किसी ने मेरा अपमान किया तो समस्त परिवार की जनशक्ति उससे प्रतिशोध लेगी।  इस प्रकार हर एक को 20 गुनी शक्ति का लाभ तो अनायास ही प्राप्त हो जाता है। पृथक रहने पर तो मनुष्य की जो वास्तविक शक्ति होती है, उससे भी न्यून प्रतीत होती है। दूसरे व्यक्ति समझते हैं कि ‘अपनी निजी आवश्यकताओं से इसके पास समय, बल और धन कम ही बचता होगा, अतः यह किसी को हानि-लाभ न पहुंचा सकेगा।’ इस मान्यता के आधार पर यह व्यक्ति वास्तविक स्थिति से भी छोटा प्रतीत होने लगता है। ऐसी स्थिति में देश या समाज की सेवा के निमित्त कोई महान त्याग करने के लिए भी  वह व्यक्ति तत्पर नहीं हो पाता। यदि हो भी जाता है तो उसे अतीव चिंता रहती है तथा उसके आश्रितों की कठिनाई का ठिकाना नहीं रहता। धार्मिक दृष्टि से सम्मिलित परिवार कर्तव्य, संयम, त्याग, निःस्वार्थता, सेवा-भावना की शिक्षा का पुण्य स्थान है। माता-पिता, बड़े भाई, सास, ननद, जेठानी आदि के प्रति जो कर्त्तव्य है, वह सम्मिलित कुटुंब में रहकर भी निभाया जा सकता है। बड़े का सत्कार, सेवा, आदर तभी संभव है, जब वह उनके साथ रहें। बड़े भी अपने अनुभव का लाभ छोटों को उसी दशा में दे सकते हैं। जिन बड़ों ने एक बालक को गोदी में खिलाया है और एक युग एक बड़ी-बड़ी आशाएं रखी हैं, वह समर्थ होते ही पृथक हो जाता है, तो उन्हें भयंकर मानसिक आघात लगता है। यह धार्मिक दृष्टि से एक कृतघ्नता है। ऐसी कृतघ्नता को अपनाने से मनुष्य अपने सहज धर्म लाभ से, कर्त्तव्य पालन से वंचित रह जाता है।  जो परिवार को अपना धर्म क्षेत्र मानकर, नाना प्रकार के पुण्य कर्त्तव्यों का पालन करते हुए उसके द्वारा प्रभु पूजा करते हैं, वे सच्चा आत्म लाभ करते हैं। अपना परिवार परमेश्वर के द्वारा आपको सौंपा हुआ एक उद्यान है। उसमें नाना प्रकार के छोटे-बड़े पौधे लगे हुए हैं। एक कर्त्तव्यशील माली की तरह आपको प्रत्येक छोटे-बड़े पौधे को सींचना है, जो इस प्रकार कर्त्तव्य का पालन करते हैं, वे एक प्रकार की योग साधना करते हैं और योग के फल को प्राप्त करते हैं। अपने निजी सीमित स्वार्थ की दृष्टि को विस्तृत करके जब मनुष्य उसे स्त्री, पुत्र, पौत्र, परिजन आदि तक फैलाता है, तब उसके ‘स्व’ भाव का विस्तार द्रुतगति से होने लगता है। फिर ग्राम, देश, विश्व से बढ़कर वसुधैव कुटुंबकम् की उसकी दृष्टि हो जाती है और अपना सब कुछ आत्मा का, परमात्मा का दिखाने लगता है, यही जीवन मुक्ति है। इस प्रकार सम्मिलित परिवार एक सुदृढ़ गढ़ है, जिसमें कोई भी बाहर का व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता, कोई हानि नहीं पहुंचा सकता, सर्वतोमुखी उन्नति हो सकती है। पर खेद के साथ स्वीकार करना पड़ता है कि आज हमारे अधिकांश सम्मिलित परिवार कलह और मनोमालिन्य के शिकार हैं। इसका कारण मुखिया  की कमजोरियां हैं। यदि प्रधान मनुष्य मनोविज्ञान का अच्छा जानकार है, बच्चों, बूढ़ों, युवकों और स्त्री-स्वभाव को अच्छी तरह समझता है तो वह कुटुंब में कलह का अवसर ही न आने देगा। उसे बड़ा अनुभवी, दूरदर्शी, न्यायसंगत, निःस्वार्थ, निष्पक्ष, शांत स्वभाव का होना चाहिए। उसका विवेक जागृत रहे, वह शांति  से सबके पक्ष सुने, विचारे और तत्पश्चात निर्णय प्रदान करे। वह परिवार का कंट्रोलर या पथ प्रदर्शक है, उसे आने वाली कठिनाइयां, घर की आर्थिक सुव्यवस्था, विवाह संबंधों की चिंता, युवकों की कठिनाइयां, घर की आर्थिक सुव्यवस्था, विवाह संबंधों की चिंता, युवकों की नौकरियां, स्त्रियों के स्वास्थ्य और शिशु पालन का ज्ञान होना अपेक्षित है। अनेक बार उसे युक्त से काम लेना पड़ेगा, प्रशंसा और प्रेरणा देनी होगी, क्रोध और डांट-फटकार का प्रयोग कर पथ भ्रष्टों को सन्मार्ग पर लाना होगा और आर्थिक कार्यों में आगे बढ़ाना होगा। अपनी धार्मिक उज्जवलता से उसे परिवार के सब सदस्यों का आदर और प्रतिष्ठा का पात्र भी बनना होगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App