खुद भर्तियां न करते तो नहीं फंसते

एचआरटीसी में कंडक्टरों की नियुक्तियों पर विवाद कोई नई बात नहीं

शिमला— हिमाचल में कंडक्टर भर्तियों पर विवाद कोई नया नहीं है। अभी भी 2014-15 व 2015-16 में हुई भर्तियों का मामला सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट में लंबित है। ये मामले कितने गंभीर हैं, इनकी मिसाल यहां से भी ली जा सकती है कि सुप्रीम कोर्ट में जो मामला लंबित है, उस पर ही कांग्रेस विधायकों ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लिखित तौर पर आग्रह किया था कि इस भर्ती को रद्द किया जाए। अब शुक्रवार को अदालत द्वारा ऐसे ही मामले में वर्ष 2003-04 के दौरान हुई भर्तियों में प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार व अनियमितताएं पाए जाने पर जो एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं, उसे लेकर प्रदेश की सियासत गरमाने लगी है। हालांकि भाजपा के लिए भी दिक्कत यह होगी कि उसके कार्यकाल के दौरान विजिलेंस की सिफारिश पर ऐसे आरोपी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं हुआ। बहरहाल, जानकारों का मानना है कि यदि कंडक्टर व अन्य भर्तियां अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा करवाई जाएं तो ऐसे विवाद  उठेंगे  ही  नहीं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कंडक्टर भर्ती मामले के बाद ये निर्देश दे चुके हैं कि सभी बोर्ड व निगमों के साथ-साथ अन्य सरकारी अदारे आयोग द्वारा ही भर्तियां करना सुनिश्चित बनाएं, मगर मुख्यमंत्री के निर्देशों की भी हिमाचल पथ परिवहन निगम व कई अन्य सरकारी अदारे अनुपालना नहीं कर पाए। यही वजह है कि अब इस मामले में सरकार व निगम के सामने नया विवाद खड़ा हो चुका है।

क्यों बनाया गया है कर्मचारी चयन आयोग

एचआरटीसी में अब भी कंडक्टर व अन्य भर्तियां निगम खुद कर रहा है। मेकेनिकल अधिकारियों के 70 से भी ज्यादा पद भरने के लिए ऊना में पूरे प्रदेश के उम्मीदवारों की लिखित परीक्षा ली गई। यही नहीं, उद्योग विभाग में खनन विंग द्वारा माइनिंग गार्ड की परीक्षा खुद आयोजित करवाई गई। वन विभाग व वन निगम में फोरेस्ट गार्ड व चौकीदारों की भर्तियां खुद आयोजित करवाई जाती हैं। सवाल ये उठ रहे हैं कि महकमों का ऐसी भर्तियां खुद करने का मकसद क्या रहता है। जब सरकार ने चयन आयोग गठित कर रखे हैं।