निबंध प्रतियोगिता

By: Feb 1st, 2017 12:05 am

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नोटबंदी के दायरे में भारत

प्रथम

शैफाली अवस्थी

गगल, कांगड़ा

आज हमारे देश में बहुत सी समस्याएं हैं। भ्रष्टाचार हर समस्या की जड़ मानी जाती है। जब भी नई सरकार बनती है तो यह आशा की जाती है कि देश भ्रष्टाचार मुक्त होगा। ऐसे में जब मोदी जी ने आठ नवंबर, 2016 को घोषणा की कि वह आज देश के लोगों को संबोधित करेंगे तो देश में अटकलों का माहौल गर्म हो गया। लोग कयास लगाने लगे कि आज हमारे प्रधानमंत्री क्या नई घोषणा करेंगे, क्योंकि इससे पहले वह 28 सितंबर को पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करके एक क्रांतिकारी कदम उठा चुके थे। ऐसे में उन्होंने देश को संबोधित करते समय एक ऐतिहासिक और सहासिक घोषणा की। घोषणा करते वक्त उन्होंने कहा कि आठ नवंबर को रात 12 बजे से 500 और 1000 के नोटों का प्रचलन बंद हो जाएगा। जैसे ही घोषणा हुई देश में अफरा-तफरी का माहौल हो गया। कुछ लोग इससे बेहद प्रसन्न हुए, लेकिन कुछ चिन्तित भी हो उठे। चिन्तित वे लोग हुए जिनके पास कालाधन था और जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे थे। अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि कालाधन है क्या? आज बच्चे को भी पता है कि कालाधन भी धन होता है जो धन कर से बचने के लिए छिपाकर रखा जाता है। जब कभी देश में कालाधन ज्यादा हो जाए तो सरकार को विमुद्रीकरण की नीति अपनानी पड़ती है, जिसके तहत सरकार पुरानी मुद्रा का प्रचलन बंद कर नई मुद्रा को प्रचलन में लाती है। इस तरह जिनके पास कालाधन होता है वे अपने पुराने नोटों को नए में बदलने का साहस नहीं कर पाते, जिस वजह से कालाधन खुद ब खुद खत्म हो जाता है। जब से नोटबंदी की घोषणा हुई है, तब से देश दो वर्गों में बंट गया है। एक जो इसके पक्ष में है और दूसरा जो इसके खिलाफ खड़ा है। आम आदमी तो इस निर्णय से बेहद खुश है, लेकिन वे लोग जो भ्रष्टाचारी हैं और जो कालेधन को रखने वाले हैं, वे दुखी हैं। लोगों ने कालाधन छुपाने के लिए बहुत प्रयास किए जैसे कई लोगों ने पैसों को दूसरों के खातों में जमा करवा दिया। कई लोगों ने गंगा में बहा दिए तो कइयों ने तो जला ही दिए।  नोटबंदी के निर्णय से आम जनता तो बेहद प्रसन्न है भले ही उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। एटीएम के बाहर लंबी कतारों में लोग खड़े हैं। पहले सरकार ने एक हफ्ते में दस हजार रुपए निकालने की सुविधा दी, जिसे बाद में बढ़ाकर 24,000 कर दिया गया। हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या तो राजनीति है, जो इस निर्णय में भी टांग अड़ा रहे हैं। नोटबंदी का बेहद सकारात्मक असर है। जैसे एसबीआई में अब कई लाख करोड़ जमा करवाए जा चुके हैं। सभी बड़े उद्योगपति अपना टैक्स जमा करवा रहे हैं। जिन लोगों ने टैक्स बिजली का बिल जमा नहीं करवाया, वे भी बिल जमा करवा रहे हैं।  छोटे दुकानदार भी डिजिटल तरीके से पैसों का लेन-देन कर रहे हैं। कुल मिलाकर इस नोटबंदी के दूरगामी अच्छे परिणाम होंगे।

द्वितीय

अदित कंसल

नालागढ़, सोलन

न्यू वर्ल्ड हैल्थ की टॉप-10 अमीर देशों की लिस्ट में भारत दुनिया का सातवां सबसे धनी देश है। वहीं दूसरी ओर भारत में अभी भी 40 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीने को अभिशप्त हैं। ‘भूख के सूचकांक’ में भारत की स्थिति बांग्लादेश व नेपाल से भी बदतर है। इन विषमताओं व असमानताओं का प्रमुख कारण हमारे देश  में व्याप्त भ्रष्टाचार, आतंकवाद व काला धन है। नकली करंसी ने हमारी अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह खोखला कर दिया है। इन सब पर नकेल कसने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को ऐतिहासिक व साहसिक फैसला लेते हुए विमुद्रीकरण प्रक्रिया के अंतर्गत 500 व 1000 के नोट को बंद कर दिया। लोग बाजार से खरीददारी नहीं कर पा रहे। देशहित में आम आदमी खाली एटीएम के समक्ष लाइनों में नतमस्तक रहा। नोटबंदी से तमाम छोटे उद्योग बंद हो रहे हैं। देश के युवा बेरोजगार हो रहे हैं। छोटे व अस्थायी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है। बाजार मंदी की मार झेल रहा है। नोटबंदी के कारण  180 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर रसूखदार लोग 500 करोड़ की शादी कर रहे हैं। भ्रष्ट बैंक अधिकारियों के प्रताप से ‘टॉप ब्रास’ वर्ग चांदी कूट रहा है। इनमें पद्मभूषण डा. सुरेश आडवाणी, तमिलनाडु के मुख्य सचिव, वकील रोहित टंडन जैसे प्रभावशाली लोग सम्मिलित हैं। राजनीतिक पार्टियां भी इससे अछूती नहीं हैं। नोटबंदी के कारण, ‘गरीब की जेब में छेद हो रहा है, शैतानों का कालाधन सफेद हो रहा है’ लोकसभा सांसद शांता कुमार ने नेताओं के भ्रष्टाचार के साथ गहरे रिश्ते पर चिंता जाहिर की है। इससे आम आदमी अवसाद में आ रहा है। सामाजिक असंतुलन की स्थिति बन रही है। भ्रष्टाचार की सीढि़यां ऊपर से नीचे की ओर साफ की जानी चाहिए। आखिरकार भ्रष्टाचार, कालाधन व नकली करंसी को रोकने का और विकल्प भी क्या है? विमुद्रीकरण का उद्देश्य पारदर्शिता लाना है। कठिनाइयां आना स्वाभाविक है। सृजन का मार्ग कभी भी सरल नहीं होता। लोकतंत्र में व्यवस्था-परिवर्तन जोखिम भरा रहता है। बिना पीड़ा सहे क्या मां बच्चे को जन्म दे सकती है? बिना मिट्टी में मिले क्या बीज अंकुरित हो सकता है? पीड़ा, विरोध, अनिश्चितता के बावजूद नोटबंदी का कदम प्रशंसनीय व सराहनीय है। देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने हेतु नकदविहीन अर्थव्यवस्था समय की मांग है। लोगों, बुजुर्गों व गृहिणियों को डिजिटल भुगतान के लिए प्रेरित करना होगा। जब इस देश के किसान, मजदूर व कामगार वित्तीय रूप से साक्षर व जागरूक होंगे, तभी नोटबंदी का मूल उद्देश्य सफल होगा। नोटबंदी ने बेशक पूरे देश में उथल-पुथल मचा दी हो, पर इसके परिणाम  सकारात्मक जरूर होंगे। हां, सरकार ने इस फैसले को लागू करने से पहले तैयारी की होती, तो शायद आम आदमी की मुश्किलों में कुछ कमी हो सकती थी। खैर इन मुश्किलों के बावजूद आम आदमी सरकार के फैसले के पक्ष में दिखाई दिया।

तृतीय

सुनील कुमार

सरकाघाट, मंडी

भारत एक विशाल देश है। नोटबंदी खुला फैसला भले ही एक चौंकाने वाला कदम रहा, परंतु अब एक सामान्य सी बात लग रही है। नोटबंदी से पहले अगर इस शब्द के बारे में सोचते थे, तो एक अजीब सा एहसास होता था कि एक विशाल देश में यह संभव नहीं हो सकता, परंतु माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह अजीब और विचित्र विचार को एक सामान्य और एक साधारण विचार बनाकर रख दिया। नोटबंदी में भले ही कुछ मुश्किलों का सामना अवश्य ही करना पड़ा, परंतु यह तो एक बहुत बड़ा कदम था। यदि हम एक छोटे से अपने परिवार में भी कुछ परिवर्तन करें, तो भी हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। और प्रधानमंत्री ने तो इतने बड़े देश में यह परिवर्तन किया। ऐसे में मुश्किलें आना स्वाभाविक ही है। और लोगों ने भी इस प्रकार का विशाल परिवर्तन करने में संपूर्ण सहयोग दिया और अपने प्रधानंमत्री के निर्णय का भी भरपूर सहयोग दिया है। भारतीय संविधान में भी हमारे करंसी नोट को बदलने का प्रावधान है कि एक निश्चित समय के पश्चात इसमें परिवर्तन किया जाना चाहिए और जो माननीय प्रधानमंत्री ने यह कदम आठ नवंबर, 2016 को उठाया शायद यह आज से कुछ वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रतिनिधियों द्वारा उठा लिया होता, तो भारत अब तक एक विकसित राष्ट्र होता। इस प्रकार से यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि हम अपने प्रधानमंत्री के हमेशा आभारी रहेंगे, जिन्होंने भारत के विकास के लिए इतना बड़ा फैसला लिया। इस प्रकार के बड़े फैसलों से हमेशा परेशानी तो होती है, जिसका हमारे देशवासियों ने हंसकर मुकाबला किया। अतः हमें अपने देशवासियों का भी धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने इस मुश्किल समय में भी अपनी हिम्मत नहीं हारी और अपने देश में विकास के लिए भरपूर सहयोग दिया। भले ही अभी प्रारंभ में भारत का सपना धीरे-धीरे पूरा होता नजर आ रहा है, परंतु जितना कठिन यह सपना लग रहा है, उतना ही आसान भविष्य में हर कार्य हो जाएगा, जब हर भारतवासी हर एक कार्य ऑनलाइन करेगा।  नोटबंदी का फैसला भारत के विकास में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करने में अहम कदम साबित हुआ है। अगर भारत को विकसित भारत बनाना है, तो नोटबंदी में अपना कदम सबको खुश होकर बढ़ाना है। मुश्किलें हजार सही, पर इस नोटबंदी के परिणाम सुखदायी ही होंगे। इस नोटबंदी से आम आदमी ने लगभग दो महीने तक काफी कठिनाइयों का सामना किया, पर फिर भी देश हित में आम आदमी घंटों लाइन में लगा रहा। नोटबंदी का नकारात्मक पक्ष यही रहा कि इस संबंध में सरकार पूरी तैयारी न कर सकी। सरकार ने नोटबंदी के बाद सौ बार अपने आदेशों में परिवर्तन किए, जो सरकार की कमजोर तैयारी को दर्शाता है। फिलहाल यह फैसला सराहनीय है और देशहित में है। बेशक विपक्ष इस फैसले में मीनमेख निकालता रहे, पर सरकार ने कुछ कालाधन तो उजागर कर ही दिया।

इनके प्रयास भी सराहनीय रहे

शगुन हंस

योल, कांगड़ा

नोटबंदी ने एक बार तो पूरे देश को ही हिलाकर रख दिया। वैसे हर दस साल के अंतराल के बाद करंसी में बदलाव से भ्रष्टाचार पर और कालेधन पर लगाम लग सकती है। नरेंद्र मोदी द्वारा लिया गया नोटबंदी का फैसला किसी कड़वे घूंट से कम नहीं था, जबकि जल्द ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा होने वाली ही थी। नोटबंदी के मामले में सरकार को विपक्षी दलों ने काफी घेरा, पर इस तरह के फैसले अचानक ही लिए जाते हैं। अगर पहले ही घोषणा कर दी जाए कि अमुक  तारीख को बड़े नोट बंद हो जांएगे, तो भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को अपना पैसा एडजस्ट करने का मौका नहीं मिल जाएगा। फैसला सही था, पर कुछ तैयारियां सरकार को अवश्य कर लेनी चाहिए थी…

अमृत महाजन

नूरपुर, कांगड़ा

नोटबंदी का फैसला एक ऐतिहासिक व साहसिक फैसला माना जाएगा। बेशक इस फैसले के आने वाले वक्त में जनता, विशेषकर आम आदमी को कई लाभ होने की उम्मीद दिखती हो, लेकिन फैसला लेने के बाद करीब दो महीने तक हर वर्ग को कई दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा। कहना न होगा कि नोटबंदी के फैसले के बाद राष्ट्र के लिए नासूर बन चुकी आतंकवाद, भ्रष्टाचार या कालाधन सरीखी कई समस्याओं पर प्रहार हुआ है, फिर भी इस  प्रक्रिया में कहीं न कहीं आम आदमी पिस गया। प्रधानमंत्री भविष्य में भी ऐसे सकारात्मक कदम उठा सकते हैं, लेकिन आम आदमी को ज्यादा मुश्किल न हो, इसका ध्यान रखें…

संरेंद्र मिन्हास

बध्यात, बिलासपुर

एक चाय बेचने वाले ने  देशवासियों के विश्वास को न तोड़ते हुए 8 नवंबर को जब नोटबंदी की अचानक घोषणा की, तो भ्रष्टाचारियों और धन कुबेरों के पांव तले जमीन खिसक गई। विरोधी दल बेशक सत्ता पक्ष पर  नोटबंदी से पूर्व पूरी तैयारी न करने का आरोप लगा रहे हों, पर कालाधन बाहर निकालने का यही एकमात्र तरीका था। सत्तापक्ष ने किसी को भी नोटबंदी की भनक नहीं लगने दी। यही कारण रहा कि केंद्र सरकार के खजाने में चंद दिनों में ही अरबों रुपए आ गए। दूसरी तरफ सरकार के इस फैसले से धनकुबेरों के खजाने मिट्टी के ढेर में तबदील हो गए। आम आदमी बेशक लाइन में लगा, पर परिणाम अच्छे होंगे…


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