न सरकार ने पूछा न ही सेहत सुधरी

शिमला— हिमाचल प्रदेश सरकार ने घाटे में चल रहे निगमों व बोर्डों को लाभ में लाने के लिए इनके समायोजन की योजना बनाई थी, लगभग चार साल पहले प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने पूर्व सरकार की तरह ही इन निगमों व बोर्डों को घाटे से उभारने की सोची थी। इसके लिए विशेष तौर पर एक टास्क फोर्स का गठन किया गया, जिसमें मंत्रियों के साथ अधिकारियों को भी शामिल किया गया। हैरानी इस बात की है कि चार साल बीत जाने के बाद भी इस टास्क फोर्स की कोई रिपोर्ट सामने नहीं आ सकी है। सूत्रों के अनुसार टास्क फोर्स ने शुरुआत में तो बैठकें की और योजनाएं भी बनाईं। यही नहीं, घाटे में चल रहे उपक्रमों से उनकी वित्तीय स्थिति को लेकर कई तरह के आंकड़े भी जुटाए गए, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाया। प्रदेश में अभी तक सिर्फ नाहन फाउंडरी का विलय स्टेट इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट कारपोरेशन के साथ ही हो सका और उसकी आर्थिक सेहत भी अब ठीक है, परंतु दूसरे ऐसे निगमों व बोर्डों को एक करने की योजना नहीं बन सकी, जो कि एक जैसा ही कारोबार करते हैं। हैरानी इस बात की भी है कि सरकार ने भी टास्क फोर्स से जुड़े अधिकारियों को इस संबंध में नहीं पूछा। सिर्फ निगमों व बोर्डों को पहले की तरह उनके हाल पर छोड़ दिया गया और वित्त विभाग ने केवल यहां तक कहा कि वह लोग अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारें। इसके लिए क्या सुधारात्मक कार्य कर सकते हैं और किन योजनाओं को ये लोग अपना सकते हैं इसपर कुछ नहीं कहा जा सका। ऐसे में नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा है। प्रदेश में लगभग एक दर्जन निगम व बोर्ड घाटे में हैं, जिनकी स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। इनके कर्मचारियों को कई जगह पर वेतन के लाले पड़े हुए हैं तो सेवानिवृत्त कर्मचारियों को कोई वित्तीय लाभ नहीं मिल पाता।

यहां हालात बेहद खराब

पिछले साल विधानसभा में पेश शासकीय क्षेत्र उपक्रम की रिपोर्ट को देखें तो प्रदेश के 11 बोर्ड और निगम 3000 करोड़ से अधिक के घाटे में थे। इनमें सबसे अधिक घाटे में राज्य बिजली बोर्ड चल रहा है। बिजली बोर्ड का घाटा 3500 करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया है। हालांकि सरकार ने इसके 75 फीसदी लोन खुद पर ले लिए हैं, लेकिन अभी इसकी स्थिति वैसी ही है। परिवहन निगम का घाटा 1020 करोड़ का था। प्रदेश के कुल 22 निगम व बोर्डों में से आधे घाटे में चल रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार मार्च, 2015 तक 3167 करोड़ रुपए के पार घाटा चला गया। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश वित्त निगम का घाटा 145 करोड़, एससी-एसटी निगम सोलन 15 करोड़, एग्रो इंडस्ट्रीज निगम 19 करोड़, एचपीएमसी 76 करोड़, वन निगम 53 करोड़ और हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम 16 करोड़ का घाटा झेल रहे थे। इन सभी की स्थिति में कोई ज्यादा सुधार इस साल देखने को नहीं मिला है और ताजा आंकड़ों से इसका खुलासा हो जाएगा। इसके अलावा पर्यटन विकास निगम,़ मिल्कफेड, अल्पसंख्यक वित्त और विकास निगम, हिमुडा, भूतपूर्व सैनिक निगम हमीरपुर, राज्य औद्योगिक विकास निगम, सामान्य उद्योग निगम, नागरिक आपूर्ति निगम, इलेक्ट्रॉनिक्स निगम, पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम, महिला विकास निगम, और खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड हैं, जो घाटे में हैं।