‘पत्थर की राधा प्यारी, पत्थर के कृष्ण मुरारी’

ऊना —  रामायण हमें जीवन को जीने का तरीका सिखाती है, जबकि श्रीमद्भागवत हमारी मृत्यु को सुधार देती है। यह प्रवचन राष्ट्रीय संत बाबा बाल जी महाराज आश्रम कोटला कलां में वार्षिक धार्मिक महासम्मेलन में श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथा ब्यास शांतिदूत देवकीनंदन जी महाराज ने कहे। कथा के दौरान देवकीनंदन जी महाराज ने अपने प्रिय भजन पत्थर की राधा प्यारी, पत्थर के कृष्ण मुरारी… गाकर सभी को भावविभोर कर दिया। उन्होंने ऊं जय जगदीश हरें आरती.., सोने मुखड़े दा लेन दे नजारा, तेरा केह्ड़ा मुल लगदा.., तेरी बिगड़ी बना देगी चरण रज राधा प्यारी की.. इत्यादि मधुर भजनें से श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध किया। हजारों की संख्या में कथा सुनने पहुंचे श्रद्धालुओं ने राष्ट्रीय संत बाबा बाल जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि हमें मानव जीवन भजन, धर्म-कर्म के लिए मिला है। मृत्यु के समय केवल धर्म ही व्यक्ति के साथ जाएगा। पत्नी घर के द्वार तक, समाज शमशान भूमि तक, शरीर चिता तक जाएगा, जबकि परलोक मार्ग पर सिर्फ धर्म कर्म व भजन ही साथ जाएंगे। उन्होंने कहा कि गृहस्थ जीवन के चार सुख होते हैं। निरोगी काया, घर में माया, सुलक्षण नारी व पुत्र आज्ञाकारी। देवकीनंदन जी महाराज ने कहा कि धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्री राम का अवतार हुआ। भगवान अपने भक्तों से जितना लेते हैं, उससे कही गुना वह भक्त को लौटाते हैं। कभी भी अपने दुखों को लोगों के समक्ष न रोओ, इससे केवल जग हंसाई होगी। प्रभु के द्वार पर अपनी पीड़ा को व्यक्त करो, गोबिंद के द्वार पर अपनी बात करो। दोनों में दुखों को मिटाने की शक्ति है। देवकीनंदन जी महाराज ने श्रद्धालुओं को दान व संस्कारयुक्त शिक्षा के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वन कि अपने बच्चों में अच्छे संस्कारों की शिक्षा दें। उन्होंने कहा कि पहले बच्चों को हनुमान चालीसा, धार्मिक श्लोक, गुरवाणी सुनाई जाती थी, लेकिन अब समय बिलकुल विपरीत चल रहा है। दान की महिमा बताते हुए देवकीनदंन जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में दान की परंपरा सदियों पुरानी है। राजा बलि ने अपना सर्वस्व भगवान को दे दिया। सनातन धर्म में दान गुप्त ही दिया जाता है। गुप्त दान का महत्त्व अधिक है। देवकीनंदन जी महाराज ने कहा कि जब कोई अच्छा कार्य करें, उसे नहीं रोकना चाहिए, बल्कि उसका उत्साह बढ़ाना चाहिए। यहां धर्म की सेवा हो,वहां सबसे पहले पहुंचना चाहिए। संत-महापुरुष प्रसन्न होकर जो आशीर्वाद देते हैं, उसे भगवान भी पुरा करते हैं। जीवन एक मंथन है। देव-दैत्य अमृत्व की चाहत में एक होकर समुद्र मंथन कर सकते हैं तो अच्छी बात के लिए सभी को मिलजुल कर रहना चाहिए। हीरे मोतियों से नहीं सद्गुणों से व्यक्ति की पहचान होती है।