पर्यटन विकास मॉडल से चले पालमपुर

By: Feb 15th, 2017 12:02 am

( हेमांशु मिश्रा लेखक, पालमपुर से अधिवक्ता हैं )

अमरनाथ एवं वैष्णो देवी यात्रा का संचालन जिस प्रकार जम्मू-कश्मीर की सरकार करती है, वैसे ही हिमानी चामुंडा के लिए धार्मिक यात्रा का संचालन करना चाहिए। साथ ही पालमपुर के इर्द-गिर्द गढ़ माता मंदिर, जाखणी माता, नाला मंदिर घुघर और आशा पुरी माता मंदिर का एक सर्किट बनाना इस दिशा में एक सार्थक प्रयास हो सकता है…

बर्फ से लदे धौलाधार के मनमोहक पहाड़, अनगिनत कूहलों से सिंचित लंबे-चौड़े धान के खेत, हरियाली की चादर ओढ़े चाय के बागीचे, न्यूगल, आवा, बनेर, लिंगटी आदि कई सौंदर्य से भरपूर खड्डें, किंग्रफाल आदि अनेक छोटे-छोटे झरने, देवदार और चीड़ के गगनचुंबी वृक्ष, पहाड़ों के एकाएक बीच में लंबे-खुले हरे घास के मैदान, अनेक रहस्यमयी व अद्भुत पत्थर, पहाड़ों के बीच से गुजरती टेढ़ी-मेढ़ी रोमांच समेटे अनेक पगडंडियां, देवी-देवताओं की तपोस्थली, अध्यात्म से लबरेज पवित्र मंदिरों की पुण्य भूमि, पर्यटन और रोजगार के अवसरों की कितनी ही संभावनाएं हैं मेरे पालमपुर में। पालमपुर के जल, जंगल, जानवरों और जमीन में जनता की कितनी ही अपेक्षाएं और आशाएं दिखती हैं। धार्मिक पर्यटन का एक और अध्याय पालमपुर में खुल सकता है, जो कि निश्चित तौर पर पालमपुर की आर्थिकी को मदद कर सकता है। इसकी पहली शर्त तो यही रहेगी कि धार्मिक पर्यटन के विकास को लेकर कई उपाय शासन-प्रशासन के स्तर पर हों, लेकिन दुखद यह कि इच्छाशक्ति के अभाव के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। अमरनाथ एवं वैष्णो देवी यात्रा का संचालन जिस प्रकार जम्मू-कश्मीर की सरकार करती आई है, वैसे ही हिमानी चामुंडा के लिए धार्मिक यात्राओं को संचालित करना चाहिए। जखनी माता मंदिर, क्लोहाली माता मंदिर, गढ़ माता मंदिर, ग्वाल टिक्कर में बोहली वाली माता मंदिर के साथ-साथ ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित  बिरनी माता मंदिर, लांघे वाली माता के मंदिर और पालमपुर की आराध्य देवी मानविंध्यवासिनी के मंदिर वर्षों से गहन आस्था के केंद्र रहे हैं।

आवश्यकता मात्र इन स्थलों पर ढांचागत सुविधाओं को विकसित कर इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने की है। पालमपुर के इर्द-गिर्द हिमानी चामुंडा, गढ़ माता मंदिर, जाखणी माता, नाला मंदिर घुघर और आशा पुरी माता मंदिर का एक सर्किट बनाना इस दिशा में एक सार्थक एवं फलदायक प्रयास हो सकता है। कांगड़ी धाम को पर्यटन के साथ जोड़ना चाहिए। नए ट्रैकिंग ट्रैक बनाकर रास्ते को रोमांचित करने वाले स्थलों की पहचान कर उन्हें रोजगार के अवसरों से जोड़ने की जरूरत है। रास्ते में शेर के पानी पीने वाले झरने, सूर्योदय और सूर्यास्त के फोटो योग्य स्थलों, सेल्फी प्वाइंट्स के साथ-साथ, घोड़े वाले रास्ते बना कर हर एक गांव में कम से कम 50 परिवारों को रोजगार दिया जा सकता है। इससे पार्किंग और ग्रीन शुल्क के माध्यम से पंचायत को भी आमदनी हो सकती है। न्यूगल, बनेर, लिंगटी और आवा खड्डों में अब तक न जाने कितने ही गैलन पानी बह चुका है, परंतु कोई अच्छा रिवर फ्रंट या किनारा यहां हम अब तक विकसित नहीं कर पाए। शांता कुमार की नवोन्मेषी सोच के कारण जहां सौरभ वन विहार न्यूगल खड्ड को पर्यटन स्थल विकसित करने में कामयाब हुआ, वैसे ही भगोटला, बनोडू, राख, बल्ला, जिया और खारटी में खड्डों के किनारे सैंड टूरिज्म, जल विहार, मछली आखेट और कई प्रकार के अवसर सस्ती तकनीक के प्रयोग से ही प्रदान किए जा सकते हैं। कम से कम खड्डों के साथ पालमपुर, जिया, डाढ, बनोडू और ओडर  के साथ लगते 250-250 मीटर खड्डों के तट ही सुंदर पक्के, रंग-बिरंगी बिजली से सजा दिए जाएं, तो पर्यटक और अधिक रुकेंगे और क्षेत्र का विकास भी होगा। प्रदेश का पर्यटन विभाग, पर्यटन निगम, उपमंडल के सभी विभागाध्यक्ष, पंचायत के निर्वाचित प्रतिनिधि, स्थानीय जनता, टैक्सी उद्यमी और होटल व्यवसायी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का पर्यटन प्रबंधन संकाय कभी एक साथ बैठकर नवोन्मेषी अवसरों और उनके प्रबंधन बारे कोई सारगर्भित निष्कर्ष पर पहुंचे।

इसके पश्चात पर्यटन निगम, ‘पालमपुर पर्यटन 365 दिन’ का पत्रक छाप कर अखबारों व टेलीविजन के माध्यम से प्रचार करते हुए आगे बढे़, तो 5000 परिवारों के लिए रोजगार केवल पालमपुर में सृजित हो सकता है। जहां देश के प्रधानमंत्री ‘पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी किसी काम नहीं आता’ इस कहावत को गलत सिद्ध करना चाहते हैं, वहीं पालमपुर इस दिशा में आगे बढ़कर केंद्र का सहयोग लेते हुए नई इबारत लिख सकता है। प्रदेश सरकार और पर्यटन निगम को बंदला, कंडबाड़ी, राख, बड़सर के साथ लगती थाथरी, स्पेडू, मणिमहेश में पहाड़ की चोटियों पर लंबे-लंबे मैदान और स्नो लाइन का फायदा उठा कर महाराष्ट्र के महाबलेश्वर और पचमढ़ी के तर्ज पर विकसित कर सकते हैं, परंतु हिमाचल के पर्यटन मानचित्र पर फिलहाल इनकी तो चर्चा भी नहीं है। ‘हर पंचायत कुछ कहती है’ की तरह लिखित एवं विस्तृत प्रयास हो, घुघर का नाला मंदिर, कालीबाड़ी मंदिर, बिंद्रावन और कल्याड़कर में जंगल पर्यटन, न्यूगल पर पर्यटक स्थल, भगोटला में सैंड टूरिज्म, लटबाला में सनराइज प्वाइंट और बागोडा में ब्राग्लोक मंदिर में गो माता मंदिर विकसित करते हुए, राख में मणिमहेश मंदिर, कंडबाड़ी, ग्वाल टिक्कर के ट्रैक बनाने पड़ेंगे। बनूरी के सनसेट प्वाइंट को केवल नक्शे पर लाने भर की ही देर है। अविस्मरणीय हिमाचल तभी अविस्मरणीय रह पाएगा, जब हम नए नैसर्गिक स्थलों को पर्यटकों के सामने सलीके से प्रस्तुत कर पाएंगे। कुदरत से तोहफे में मिली अमूल्य व अतुलनीय सौगात की कद्र करते हुए हमें इस दिशा में गंभीरता से विचार करना होगा, तभी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को पर्यटन की दृष्टि से प्राथमिकता दिला पाएंगे। पर्यटन हिमाचल के युवाओं की जरूरत है। पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आए, इस ओर एक कदम सरकार चले, तो देखना हजारों युवा और सैकड़ों उद्यमी अपने आप पीछे चल पड़ेंगे।

ई-मेल : hemanshumisra@gmail.com


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