पाक में ‘सांस्कृतिक’ भारत !

By: Feb 15th, 2017 12:02 am

आखिर पाकिस्तान पर भारत की मोदी सरकार की रणनीति क्या है? क्या सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान को सबक सिखाया जाएगा? या पाकिस्तान को दुनिया भर में अलग-थलग कर ‘आतंकी देश’ घोषित कराने की कोशिशें जारी रहेंगी? अथवा मोदी सरकार कुछ खिड़की-दरवाजे खुले रखना चाहती है, ताकि राजनयिक, सांस्कृतिक, नागरिक-दर-नागरिक संबंध बने रहें? एक तरफ आतंकी हमले और दूसरी तरफ सांस्कृतिक राग अलापने की कवायद…क्या यह विरोधाभास संभव है? क्या इसी आधार पर पाकिस्तान को नए सिरे से ‘टेस्ट’ किया जाना चाहिए? हमें तो इन सवालों का सटीक उत्तर यही लगता है कि कांग्रेस की यूपीए सरकार और मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति में कोई बुनियादी फर्क नहीं है। बल्कि मौजूदा सरकार कंबल ओढ़कर ऐसे कारनामे करने में लगी है, जो उसी के सार्वजनिक रवैये, रुख, दावों के बिलकुल उलट हैं। विदेश मंत्रालय ने अपने अधीन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के जरिए चार भारतीय साहित्यकारों को कराची साहित्य सम्मेलन में शिरकत करने भेजा है। उन्हें हवाई यात्रा के लिए सवा लाख रुपए दिए गए। आईसीसीआर भारत सरकार का सर्वोच्च सरकारी सांस्कृतिक संगठन है, जिसकी स्थापना 1950 में देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद ने की थी। तब पाकिस्तान बन चुका था, लेकिन पाकपरस्त आतंकवाद इतना भयानक और घिनौना नहीं था। आईसीसीआर के निदेशक का स्पष्टीकरण है कि पाक स्थित भारतीय उच्चायुक्त का आग्रह था कि कराची साहित्य सम्मेलन में शिरकत की जाए, लिहाजा विदेश मंत्रालय ने चार लेखकों को वहां भेजने की इजाजत दी थी। सवाल है कि इसकी क्या जरूरत थी? राजनयिक रिश्तों के लिए कुछ और कवायदें की जा सकती हैं। हमने जनवरी के एक सम्मेलन के लिए पाकिस्तान को न्योता भेजा था। उसने इनकार क्यों कर दिया? भारत ने इस्लामाबाद में आयोजित सार्क देशों के सम्मेलन का बहिष्कार क्यों किया? पाकिस्तान के फवाद खान, माहिरा और राहत फतेह अली खान सरीखे कलाकार भारत आना चाहते हैं, तो उन पर पाबंदियां थोप दी जाती हैं। शिवसेना सरीखे संगठन ऐसी गुंडई दिखाते हैं कि पाकिस्तान के कलाकारों वाली बालीवुड फिल्में रिलीज नहीं होने दी जाएंगी। यह दीगर है कि दोनों पक्षों में कुछ ‘गरमागर्म समझौते’ हो जाते हैं, नतीजतन शाहरुख खान और करन जौहर की फिल्में सिनेमाघरों में आराम से चलीं और 100 करोड़ी क्लब में भी शामिल हुईं। यह दोगलापन समझ में नहीं आता। पाकिस्तान की ओर से खबरें आ रही हैं कि ‘नजरबंद’ हाफिज सईद अब एक सियासी पार्टी बनाना चाहता है और देश की सियासत, हुकूमत में दखल तय करना चाहता है। दूसरे, पीओके में नए सिरे से आतंकी अड्डों को बनाने और बसाने का काम शुरू हो गया है। भारत के सर्जिकल स्ट्राइक का असर…! लाहौर में पंजाब असेंबली के बाहर एक बम धमाका हुआ है, जिसमें वहां के डीआईजी, एसएसपी समेत 16 लोगों की मौत हो गई है और 50 से ज्यादा जख्मी हैं। यानी पाकिस्तान बिलकुल भी बदला नहीं है और हम सांस्कृतिक रिश्तों की चिंता कर रहे हैं। पाकिस्तान तो आतंकवाद का भस्मासुर है। यदि चार भारतीय साहित्यकार कराची सम्मेलन में भाग नहीं भी लेते, तो उससे हमारी विदेश नीति पर क्या असर पड़ता? पाकपरस्त आतंकियों ने बीते रविवार कश्मीर के कुलगाम में हमारे दो सैनिकों को ‘शहीद’ कर दिया है। 2016 में भी हमारे 88 जवान ‘शहीद’ हुए और 14 नागरिक भी मारे गए थे। लेकिन भारत सरकार पाकिस्तान के मेले में अपनी सांस्कृतिक झांकी दिखाने को उत्सुक है! दरअसल आतंकवाद के मुद्दे पर भाजपा, उसके नेता और खुद प्रधानमंत्री मोदी बेहद आक्रामक रहे हैं, एक के बदले 10 सिर काटने वाला बयान शायद यह देश भूला नहीं होगा, लेकिन फिर भी कराची में चार भारतीय लेखक…! हैरानी भी होती है और कोफ्त के साथ-साथ क्षोभ भी…। सांस्कृतिक संबंध तब जरूरी और अच्छे लगते हैं, जब आपसी सौहार्द हो, बिलकुल अमन-चैन हो। कूटनीति सिर्फ सांस्कृतिक रिश्तों पर आश्रित नहीं होती। बेशक भारत सरकार ने हवाई यात्रा का खर्च दिया है, लेकिन प्रायोजन एक पैसे का भी हो, उसे मदद माना जाएगा और समर्थन की श्रेणी में भी आएगा। यदि ये लेखक निजी तौर पर कराची जाते, तो हमें इतनी आपत्ति नहीं होती, लेकिन सरकारी संस्थान ने उनकी यात्रा प्रायोजित की है। मोदी सरकार को पाकिस्तान नीति पर पुनः मंथन, विमर्श करना चाहिए।


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