बच्चों से मैदान न छीनें

By: Feb 15th, 2017 12:01 am

( डा. शिल्पा जैन सुराना, वंरगल, तेलंगाना )

बच्चों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद भी महत्त्वपूर्ण है। यह अत्यंत दुख की बात है कि आज के मां-बाप सिर्फ किताबी शिक्षा को ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उनका सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है कि बच्चा परीक्षा में अच्छे नंबर लेकर आए। जनमानस में यह धारणा आम हो गई है कि यदि बच्चे खेलकूद में ज्यादा मन लगाएंगे, तो वे पढ़ाई में पीछे रह जाएंगे। यह कैसा समाज है, जो बच्चों को अपना जीवन नहीं जीने दे रहा? क्यों हम बच्चों का मशीनीकरण करने में लगे हैं। बच्चे ने बोलना शुरू किया नहीं कि मां-बाप उसे एबीसी सिखाने की कवायद शुरू कर देते हैं। ऐसे प्ले स्कूलों की भी संख्या कम नहीं, जो डेढ़ से दो वर्ष के बच्चों का दाखिला लेते हैं। पढ़ाई अगर जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है, तो खेलकूद भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। इससे बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा। महानगरीय संस्कृति ने तो बच्चों से उनके खेल के मैदान ही छीन लिए हैं, जिसमें प्राचीन खेल तो लुप्तप्राय हैं। बच्चा जो चीजें खेल-खेल में सीख लेता है, वे उसे हमेशा याद रहती हैं। अपने बच्चों को रट्टू तोता न बनाएं, उसका मशीनीकरण न करे। मां-बाप को चाहिए कि अपनी व्यस्त दिनचर्या में समय निकालें और अपने बच्चे को खेल के मैदान में भेजें। आज बच्चे में शिथिलता है, निरसता है, मोबाइल, टीवी, इंटरनेट में खोए हैं तो इसके लिए माता-पिता ही जिम्मेदार हैं। जरूरी है कि बच्चों का रुझान खेलकूद की तरफ बढ़ाएं, ताकि बच्चे बौद्धिक और शारीरिक दोनों तरह से मजबूत हों।

 


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