व्यावहारिकता का पाठ

By: Feb 4th, 2017 12:05 am

समाज में विनिमय, वार्तालाप, संबंध एवं सामंजस्य, ये चार ऐसी बातें हैं, जिनकी पृष्ठभूमि पर ही सारे सामाजिक व्यवहार आधारित रहते हैं। इन चार बातों में ठीक से व्यवहार कर सकने की योग्यता प्राप्त कर लेना ही व्यवहार दक्षता है। विनिमय का अर्थ है-आदान-प्रदान अथवा लेन-देन। जो पैसे का, वस्तु का, भावनाओं का अथवा विचारों का हो…

बालकों को व्यवहार कुशल बनाने के लिए उनमें उत्तरदायित्वों की भावना का विकास करना बहुत आवश्यक है। जिन बालकों में उत्तरदायित्व का भाव जाग जाता है, वे हर काम बड़ी होशियारी से करते हैं। हर समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनसे कोई काम बिगड़ न जाए। उन पर कोई अंगुली न उठा सके। अथवा किसी समय वे उपहासास्पद न बन जाएं। व्यवहार-कुशलता का सीधा सा अर्थ है, कोई ऐसी बात या कोई ऐसा कार्य न करना, जिससे किसी को कोई तकलीफ पहुंचे अथवा वे आलोचना या उपहास के पात्र बन जाएं। यद्यपि सारे क्षेत्रों में किसी पूर्णरूपेण कुशल होना असंभव जैसी बात है। तथा समाज में साधारण व्यवहार कुशलता प्राप्त कर लेना, सबके लिए सुसाध्य एवं आवश्यक है, जो सामान्य सामाजिक व्यक्ति व्यवहार में कुशल नहीं होते हैं, अंदर से अच्छे होते हुए भी समाज में उचित स्थान नहीं पा सकते। लोग उनके विषय में यह कहकर आलोचना किया करते हैं कि अमुक व्यक्ति हो सकता है अंदर से अच्छा हो, किंतु व्यवहार में अच्छा प्रतीत नहीं होता है और समाज में इस प्रकार की धारणा लोगों को उसके प्रति शंकालु बनाए रखती है। समाज में विनिमय, वार्तालाप, संबंध एवं सामंजस्य, ये चार ऐसी बातें हैं, जिनकी पृष्ठभूमि पर ही सारे सामाजिक व्यवहार आधारित रहते हैं। इन चार बातों में ठीक से व्यवहार कर सकने की योग्यता प्राप्त कर लेना ही व्यवहार दक्षता है। विनिमय का अर्थ है-आदान-प्रदान अथवा लेन-देन। जो पैसे का, वस्तु का, भावनाओं का अथवा विचारों का हो सकता है। विनिमय के व्यवहार में जहां तक हो सके, सीमित, स्पष्टता एवं ईमानदारी रखनी चाहिए। जैसे कोई वस्तु खरीदते समय अपनी चतुरता अथवा हीलोहुज्जत से दुकानदार को साधारण भाव से कम कीमत देने का प्रयत्न न करना चाहिए। इससे दुकानदार अपना नुकसान तो करेगा नहीं और न ही उसे ग्राहक समझकर ऐसे व्यक्ति के हाथ कोई चीज बेचना भी पसंद करेगा। यदि एक बार वह ग्राहक बनाने के लिए दब जाएगा तो दूसरी बार दोगुने पैसे वसूल कर लेगा और सबसे पहले घटिया चीज भिड़ाने की कोशिश करेगा। बार-बार ऐसा करने वाला व्यक्ति की साख ग्राहक के रूप में कम हो जाती है और हजारों रुपए का सामान खरीदने पर भी वह आदर नहीं मिल पाता, जो उसे मिलना चाहिए था। अब रही कोई चीज बेचने की बात। कोई वस्तु बेचते समय साधारण भाव से अधिक पैसे लेने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर मूल्य बतलाना, घटिया चीज भिड़ाना या असंतोषजनक ढंग से विक्रय करने वाले की दुकानदार के रूप में साख खराब हो जाती है। वह एक बड़ा दुकानदार होने पर भी न तो अपेक्षित बड़प्पन पा सकता है और न ही अधिक समय तक अपनी स्थिति बनाए रख पाता है, धीरे-धीरे ग्राहक संख्या कम करता हुआ छोटा सा ही दुकानदार रह जाता है। इसी तरह पैसा लेन-देन में, समय और परिणाम में यथासंभव हेरफेर करने का प्रयत्न करना चाहिए और यदि किसी भ्रम, भूल या परिस्थितिवश ऐसा हो जाए या करना पड़े, तो ईमानदारी से उसका स्पष्टीकरण करने में संकोच न करना चाहिए। वार्तालाप में सत्यता, शिष्टता एवं देश-काल का विचार रखना चाहिए। सत्य यदि शिष्ट नहीं है अथवा शिष्टता से परे है या ये दोनों बातें देश, काल के अनुरूप नहीं हैं, तो अनुचित ही मानी जाएंगी। संबंध मूलतः छोटे, समान, बड़े, योग्यता एवं विशेषता के अनुसार छह प्रकार के होते हैं, जो जिस योग्य हो, उससे उसी प्रकार का व्यवहार अपेक्षित है, इसके प्रतिकूल व्यवहार करना, किसी भी दशा में ठीक नहीं है, जो जिस योग्य है, उसको उसके अनुरूप स्थान देना, बहुत बड़ी व्यवहार कुशलता है। छोटों से स्नेहिल संबोधनों से निःसंकोच और बड़ों से आदरपूर्वक बर्ताव करना चाहिए। पद में बड़े और आयु में छोटे व्यक्ति भी आदर और अदब के अधिकारी होते हैं। अपने से अधिक योग्यता अथवा किसी क्षेत्र में विशेषता (जैसे कला आदि) रखने वाले व्यक्ति भी अपने से बड़े अथवा उच्च पद पर न होते हुए भी सम्मान एवं सद्व्यवहार के पात्र होेते हैं। उनसे व्यवहार करने में इन बातों का ध्यान रखना न केवल आवश्यक ही है, अपितु अनिवार्य भी है। सामंजस्य का अर्थ है- अपने को इस तरह बताना कि हर व्यक्ति हर परिस्थिति तथा हर स्थान से समुचित समानता दिखला सकें। जैसे दूसरे के दुःख में दुःख, सुख में सुख। परिस्थिति से अनुकूलता, स्थान से निरपेक्षता का भाव प्रकट कर सकें। किसी सुख-दुःख में उदासीन रहना, प्रतिकूल परिस्थिति में अधैर्य अथवा अयोग्य स्थान पर क्षोभ अथवा घृणा व्यक्त करना ठीक नहीं है। अपने अवांछनीय आवेगों पर नियंत्रण रखना, व्यवहार कुशलता की एक महत्त्वपूर्ण शर्त है।


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