सदी में 1300 बार थरथर्राई देवभूमि

हर साल औसतन 13 बार कांपती है धरती, भूकंपरोधी निर्माण जरूरी

पालमपुर – बीते सौ साल में प्रदेश की भूमि भूकंप के 1300 झटके सह चुकी है। यानी प्रदेश की धरती औसतन सालाना 13 बार हिल रही है।  इस समय प्रदेश के सात जिले भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेदनशील जोन पांच का हिस्सा हैं। इनमें जिला कांगड़ा, मंडी, चंबा, ऊना, हमीरपुर और बिलासपुर शामिल हैं, जबकि प्रदेश का अन्य बड़ा क्षेत्र संवेदनशील जोन चार में रखा गया है। जिला कांगड़ा, चंबा, हमीरपुर और जिला ऊना के कुछ क्षेत्रों में भूकंप आने पर भारी नुकसान होने की आशंका भी वैज्ञानिक जताते रहे हैं। स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस टेक्नोलोजी एंड एन्वायरनमेंट के आंकड़े बताते हैं कि बीत 100 में प्रदेश में रिक्टर स्केल पर तीन से 3.9 तीव्रता के 141, चार से 4.9 तीव्रता के 22, पांच से 5.9 तीव्रता के 43 और 6 से 6.9 तीव्रता के सात भूकंप आ चुके हैं। रिक्टर स्केल पर आठ तीव्रता का एक भूकंप 1905 में जिला कांगड़ा में आया था, जिसने भारी तबाही मचाई थी। पालमपुर कृषि विवि में भूकंपरोधी निर्माण पर शुरू हुई दो दिवसीय कार्यशाला में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डा. एसएस रंधावा ने खुलासा किया कि इन बड़े झटकों के अलावा भी पिछले 100 साल में प्रदेश तीन से कम तीव्रता के करीब 1130 झटके सह चुका है। वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रदेश में भूकंप सहित ऐसी अन्य प्राकृतिक आपदाओं को लेकर अधिक से अधिक जागरूकता फैलाए जाने व तैयारी किए जाने की आवश्यक्ता है।  वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नंदिता गुप्ता कहती हैं कि भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए प्रदेश में ऐसे निर्माण किए जाने चाहिए जिन पर भूकंप आदि का कम से कम असर हो। पालमपुर में शुरू हुई दो दिवसीय कार्यशाला में सीआरबीआई के वरिश्ठ वैज्ञानिक अधिकारी वाई पांडे की अगवाई में सात वैज्ञानिक भाग ले रहे प्रतिभागियों को भूकंपरोधी निर्माण की बारीकियों से रू-ब-रू करवाएंगे।

दो क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित

प्रदेश में बीते समय के दौरान  हुए भूकंपों को लेकर यह बात भी सामने आई है कि दो प्रमुख क्षेत्र अधिकतर प्रभावित हो रहे हैं। इनमें एक क्षेत्र जिला चंबा और जिला कांगड़ा की धौलाधार शृंखला में धर्मशाला के उत्तर में स्थित है, जबकि दूसरा सतलुज के दाएं किनारे पर सुंदरनगर वैली के पूर्व का क्षेत्र है।