हिमाचल में नाम का मानवाधिकार आयोग

By: Feb 4th, 2017 12:02 am

12 साल से खाली है अध्यक्ष की कुर्सी, सरकार की योजना फाइलों में समाई

शिमला— बीते वर्ष सरकार ने कहा था कि हिमाचल में मानवाधिकार आयोग को नए सिरे से सक्रिय किया जाएगा, लेकिन यह योजना कागजों में ही गुम हो गई। हालात यह है कि 12 साल बाद भी आयोग बस नाम के लिए ही है और पूरी तरह निष्क्रिय है। हिमाचल प्रदेश मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी पिछले 12 साल से खाली पड़ी है। बिना अध्यक्ष के आयोग कोई भी कार्य नहीं कर सकता। वर्तमान में आयोग में एक प्रधान सचिव व एक एसपी की ही व्यवस्था है, लेकिन अध्यक्ष का पद खाली होने से आयोग का अस्तित्व न के बराबर है। प्रदेश में मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का पद खाली होने से आयोग में आने वाले मामले भी लंबे समय से लंबित पड़े हैं। ऐसे में पीडि़तों को मजबूर होकर न्यायालय की शरण लेनी पड़ रही है। वर्ष 2014-2015 में महिला उत्पीड़न करीब पांच सौ मामले आयोग के सामने आए। आयोग में अभी भी औसतन पांच से सात मामले मानवाधिकार उल्लंघन के आते हैं, लेकिन कोई सेटअप न होने से ये मामले फाइलों में ही रह जाते हैं। इसके अलावा दलित समुदाय, प्रवासी मजदूर, नारी सेवा सदन, बाल आश्रम समेत कई दूसरी संस्थाओं और निजी क्षेत्रों में मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले सामने आते हैं। दो साल पहले विश्वविद्यालय में छात्रों पर हुए लाठीचार्ज में कई छात्रों ने भी मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला उठाया था, लेकिन उनकी कहीं पर भी सुनवाई नहीं हो पाई। प्रदेश में मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1994 में की गई थी, लेकिन सितंबर, 2002 में हुई कैबिनेट की बैठक में इसे भंग करने का निर्णय किया गया। इसके बाद 2003 में इसे फिर से दोबारा गठित किया गया।

2005 के बाद तैनाती नहीं

हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन नियुक्ति विवादों में रही। नियमों के मुताबिक हाइ र्कोर्ट से सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश से नीचे का कोई भी व्यक्ति  आयोग का अध्यक्ष नहीं हो सकता। इसी के चलते फरवरी 2004 में एएल वैद्य की नियुक्ति को रद्द कर दिया गया। आठ महीने बाद कनार्टक हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एनके जैन को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन वह भी जुलाई 2005 में राजस्थान चले गए। तब से यह पद खाली है।


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