एक घर का चिराग बुझा, चार घरों में कर गया उजाला

By: Mar 24th, 2017 12:01 am

करियाड़ा के प्रदीप की मौत के बाद परिवार ने चार जरूरतमंदों को दान की किडनी-लिवर-दिल

गरली —  हमारा घर तो उजड़ गया, लेकिन दूसरों का घर बसाने से जो सुकून मिला, उसने अपनों के खोने का गम कम कर दिया। बूढ़ी आंखें अपने लाड़ले को तो ढूंढेंगी, पर दूसरों को दी गई सांसें उन आंखों में गर्व की चमक बिखेर रही हैं। एक पत्नी का सिंदूर तो मिट गया, पर उसके सुहाग के अंगों से वे चार घर रोशन हुए, जो अंधेरे में रोशनी की एक किरण के लिए तड़प रहे थे। दो बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया, पर चार घरों को खुशियां मिल गईं। जी हां! यह कुर्बानी करियाड़ा (ज्वालामुखी) के उस परिवार की है, जिसने एक हादसे में खोए बेटे के अंगदान कर चार लोगों को जीवनदान दिया। जानकारी के अनुसार करियाड़ा के पगपां निवासी प्रदीप कुमार (41) पुत्र बंसी लाल का गत 17 मार्च को सड़क हादसे में जख्मी हो गए। गंभीर हालत को देखते हुए उसे उपचार के लिए पीजीआई रैफर कर दिया गया। अति निर्धन परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रदीप कुमार की चंडीगढ़ में चार दिन पहले मौत हो गई। अचानक हुए हादसे ने घर का चिराग तो बुझा दिया, मगर अति दुख भरे इन पलों में  पीडि़त पत्नी वीना देवी और बुजुर्ग मां-बाप ने प्रदीप कुमार की किडनी, लिवर और दिल अस्पताल में उपचाराधीन उन चार मरीजों को दान करने का फैसला लिया, जिनकी हालत बेहद गंभीर थी। अंगदान करते वक्त पीडि़त परिवार को धक्का तो लगा, मगर पत्नी ने रूंधे गले से कहा कि सुहाग के जाने का गम तो ताउम्र रहेगा, पर पति के अंगदान से चार घरों में खुशियां भी लौटी हैं।  बता दें कि प्रदीप कुमार ज्वालामुखी में कार सीट कवर बनाकर किसी तरह परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर रहा था। हादसे में प्रदीप की मौत के बाद 18 वर्षीय बेटी व 14 वर्षीय बेटे के सिर से पिता का उठ गया है, वहीं उनके भविष्य पर भी संकट खड़ा हो गया है। निर्धन परिवार के पास अब आय का कोई साधन नहीं है। उधर, परिवार द्वारा दी गई इस कुर्बानी पर पूरा ज्वालामुखी गर्व महसूस कर रहा है। ठाकुरद्वारा पंचायत के प्रधान बहादुर सिंह पटियाल, वार्ड मेंबर सोनी, करियाड़ा सोसायटी के सचिव सुरेंद्र ठाकुर, पूर्व उपप्रधान रणजीत गुलेरिया ने पीडि़त पत्नी के लिए सरकार से नौकरी देने के साथ किसी विशेष कार्यक्रम में सम्मानित करने की मांग की है।

परिवार ने पेश की मिसाल

पीडि़त परिवार ने प्रदीप कुमार के अंगदान कर प्रदेशवासियों के सामने नई मिसाल पेश की है। साथ ही यह सीख दी है कि जाने वाला तो चला जाता है, जिसका ताउम्र दुख रहता है और उसकी भरपाई कभी नहीं हो पाती, लेकिन उसके अंगों से किसी दूसरे को जीवनदान देने से उस गम को दूर किया जा सकता है।


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