कचरा-शून्य प्रदेश का रोडमैप तैयार करे बजट

By: Mar 8th, 2017 12:02 am

( कंचन शर्मा लेखिका, स्वतंत्र पत्रकार हैं )

कचरा प्रबंधन के लिए जगह-जगह रिसाइकिलिंग स्टेशन बनाना, जैविक कचरे को खाद में परिवर्तित करने के लिए आधुनिक संयंत्रों का बंदोबस्त, नई डंपिंग साइट तैयार करना, सफाई व्यवस्था हेतु कर्मचारियों की तैनाती की पहल बजट से हो। साथ ही नए शौचालयों, स्नानागारों व सीवरेज व्यवस्था के लिए भी बजट की दरकार है…

गत दिनों सपरिवार मनाली यात्रा के दौरान एक अनुभव हुआ, तो इस दौरान स्वच्छता अभियान की खामियां देखने को मिलीं। रास्ते भर में खाए-पिए सामान के पैकेट्स, प्लास्टिक की खाली बोतलें यहां-वहां न फेंककर गाड़ी में ही एक लिफाफे में इकट्ठा करते रहे। समस्या तब आई, जब पूरे रास्ते में कूड़ा-कचरा फेंकने की जगह न मिली। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कुल्लू-मनाली की वादियां व ब्यास नदी के किनारे कचरा फेंकने के लिए कहीं भी कूड़ादान नहीं मिला। आखिर थक-हार कर रास्ते में एक नाले के किनारे गाड़ी लगाई और जैसे ही कचरे का लिफाफा फेंका, एक जोर की गुस्सैल आवाज से मैं सहम गई। ऊपर धार पर घास काट रही महिला ने मुझे कूड़ा फेंकने के लिए खूब हड़काया। मैं इतना शर्मिंदा हुई कि थोड़ा नीचे उतर कर कचरे का लिफाफा फिर ले आई और उसे दोबारा गाड़ी में रख दिया। हालात ये हुए कि वह कचरे का लिफाफा मुझे शिमला में घर आने के बाद कूड़ाकर्मी को ही देना पड़ा। मगर इस छोटी सी घटना ने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर किया। कूड़ा-कर्कट तो रोज उत्सर्जित होगा। घर में हों तो कूड़ाकर्मी को दें, गलियों में हों तो कूडे़दान में डालें, मगर सफर के पड़ाव में कोई व्यवस्था न होने पर एक जागरूक व्यक्ति कूड़ा कहां फेंके? जहां मानव आवासीय, विकासशील व औद्योगिक प्रक्रियाएं होंगी, वहां कचरा पाया जाना स्वाभाविक है। कचरा घरों, बाजारों, कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, कृषि व उद्योगों से आता है। आम तौर पर सामान्य जन अपने-अपने घरों व संस्थानों का कचरा निस्तारण व प्रबंधन का जिम्मा नगरपालिका के जिम्मे डालकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। यही वजह है कि घर को छोड़कर परिवार, गांव, राष्ट्र की मिट्टी, पानी व हवा की स्वच्छता को मनुष्य ने अपनी जिम्मेदारी न मानकर समाज को कूड़े-कचरे की समस्या से त्रस्त कर दिया है।

हालांकि हिमाचल प्रदेश ने स्वच्छता की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। उसके बावजूद ठोस कचरा प्रबंधन व निस्तारण अभी भी स्वच्छता के लिए एक बड़ी चुनौती है। प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध के बावजूद औद्योगिक पैकेजिंग, फूड पैकेजिंग, जैविक तथा अजैविक व ई-कचरे की भरमार है, जो स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाता हुआ प्रतीत होता है। हिमाचल हर दिन करीब 50 टन कचरा पैदा कर रहा है, जबकि सभी जिलों में ठोस कचरा निस्तारण के तकनीकी प्रबंध नहीं हैं। ऐसे में कूड़े-कचरे की समस्या जस की तस खड़ी है। कचरा प्रबंधन की शुरुआत सबसे पहले हर घर से ही शुरू हो जानी चाहिए। घरों से निकलने वाले कचरे में बचा हुआ भोजन, रेत, कागज, बजरी प्लास्टिक, धातु, शीशा, पौधों की पत्तियां, डंठल आदि वेस्ट होता है। घरों में ही कूड़े को जैविक व अजैविक श्रेणी में ही छांट दिया जाना चाहिए। इसके लिए नगरपालिका के कर्मचारी भी अलग-अलग रंगों के थैलों में इकट्ठा करें। जैविक में बचा खाद्य पदार्थ, पत्तियां, डंठल आदि हरे थैले में, रद्दी कागज, मैगजीन आदि पीले थैले में व प्लास्टिक शीशा व इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट लाल थैले में डाल दिया जाए। इस तरह से कूड़े-कचरे का वर्गीकरण घर पर ही हो जाने से नगरपालिका को कचरा प्रबंधन के लिए आसानी होगी। कूड़े का वर्गीकरण करना अत्यावश्यक है। कचरा प्रबंधन में यह एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जिसे आधुनिक पढ़ा-लिखा व संभ्रात वर्ग भी अनदेखा कर रहा है। इस अज्ञानता व जागरूकता की कमी की वजह से कचरा बिना वर्गीकृत किए ही घरों, कार्यालयों व सार्वजनिक स्थलों से उठकर नष्ट न होने वाली स्थिति में भूमि, वायु व जल को दूषित कर रहा है। तात्पर्य यह है कि केवल आंखों के आगे से ही कचरे का हट जाना स्वच्छता अभियान की इतिश्री नहीं। कचरे के निपटारे के लिए हमें स्वीडन को मिसाल के तौर पर लेना होगा, जहां कचरा प्रबंधन के लिए रिहायशी इलाकों के दायरे में ही रिसाइकिलिंग स्टेशन हैं।

लोग जागरूक भी हैं तथा घरों में ही कचरे का वर्गीकरण कर लिया जाता है। यहां 50 प्रतिशत कचरे को रिसाइकिल कर दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। 50 प्रतिशत कचरा जलाकर ऊर्जा पैदा कर बिजली उत्पादन किया जाता है। इस तरह स्वीडन कचरा शून्य देश बनकर विश्व में स्वच्छता की मिसाल कायम किए हुए है। स्वीडन की ही तर्ज पर हिमाचल को भी कचरा शून्य बनाने के लिए बजट का समुचित प्रावधान हो। हिमाचल विश्व पटल पर अपने प्राकृतिक सौंदर्य व पर्यटन के लिए विख्यात है। इसके प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए रखना हमारा परम कर्त्तव्य है। गलियों में ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय मार्गों में भी जगह-जगह कूडे़दान का प्रावधान हो। लोगों को कूड़ा-कचरा वर्गीकरण का पूरा ज्ञान हो, इसके लिए जागरूकता शिविर लगाने के लिए भी बजट हो। वर्गीकृत कूड़े के लिए अलग-अलग रंगों के छोटे कूड़ेदान गलियों में लगाने की आवश्यकता है। मसलन शीशा, ई-कचरा, प्लास्टिक जैसे कचरे के लिए लाल कूड़ेदान, कागज, गत्ता आदि के लिए पीले कूड़ेदान व जैविक कचरे के लिए हरे कूड़ेदान का प्रावधान हो। कचरा प्रबंधन के लिए जगह-जगह रिसाइकिलिंग स्टेशन बनाना, जैविक कचरे को खाद में परिवर्तित करने के लिए आधुनिक तकनीक संयंत्रों का प्रावधान, नई डंपिंग साइट तैयार करना, सफाई व्यवस्था के लिए हर वार्ड में कर्मचारियों की तैनाती की पहल के लिए बजट का प्रावधान जरूरी है। इसके साथ नए शौचालयों, स्नानागारों व सीवरेज व्यवस्था के लिए भी बजट की दरकार है। स्वच्छता अभियान की सफलता इसी में है कि हिमाचल को कचरा शून्य प्रदेश बनाने की ओर अग्रसर किया जाए, जो एक अच्छे बजट के बगैर संभव नहीं।

ई-मेल : luckybhadwal.dh@gmail.com


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