हिमाचल का सूत्रधार है गोरखा समुदाय
गोरखा इतिहास की सबसे बड़ी छटपटाहट !
आपकोे जानकर यह हैरानी होगी कि भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सबसे पहला युद्ध गोरखाओं ने ही वर्ष 1814-15 में लड़ा था, लेकिन इसे गोरख-एंग्लो वार के नाम से जाना जाता है। गोरखा ने भारत सहित हिमाचल के संरक्षण के लिए युद्ध किए, लेकिन उन्हें ब्रिटिश सरकार की फूट डालो और शासन करो की नीति का शिकार होना पड़ा।
जब अतीत में झांकती हैं, तो वक्त कैसे चिन्हित करती हैं और शोध के केंद्र में सबसे अहम क्या रहा?
गोरखा लोग हिमाचल प्रदेश में 200 वर्षों से भी अधिक समय से रह रहे हैं, लेकिन अब तक बाहरी होने की नजर से गोरखाओं को देखा जाता है।
गोरखा लोग रिफ्यूजी के तौर पर यहां पर नहीं बसे हैं, लेकिन इतिहास के पन्नों में झांक कर देखा जाए, तो सियासत और रियासत की सच्चाई से इस क्षेत्र में बसे हैं। मेरे शोध के केंद्र में सबसे अहम गोरखा संस्कृति से भारत संस्कृति का मेल और उसका अनुसरण-संरक्षण रहा है।
गोरखा पहचान में हिमाचल का इतिहास कैसे बदलता है?
हिमाचल प्रदेश जो छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था, प्रदेश को एकसूत्र में पिरोने का काम करने वाले गोरखा ही थे। 1804-09 के दौरान नेपाली शासन ने गोरखाओं को यहां भेजा और शिमला में भी कैपिटल स्थापित की। नेपाल के नक्शे कदम पर ब्रिटिश ने चलने का काम किया।
भारत से दो सदी से भी अधिक समय से रह रहे गोरखा किस प्रकार आज भी एक विविध व अलग सांस्कृतिक पहचान हैं?
गोरखा लोगों की मुख्यतः खुखरी अपनी ही पहचान है। नेपाली संस्कृति एक उत्साहवर्द्धक कल्चर है, जिसमें गीत-संगीत और नृत्य के साथ रचनात्मकता का प्रतीक है। गोरखा लोग हमेशा अपने सिंद्धातों पर ही चलते हैं, जिससे अभी तक अलग सांस्कृतिक पहचान भारतीय संस्कृति में मिलकर भी बनी हुई है।
धर्मशाला के वैश्विक आधार में गोरखा उपस्थिति की भूमिका रही है, लेकिन अब तिब्बती समुदाय कहीं अधिक पहचाना जा रहा है?
धर्मशाला में गोरखाओं का अपना इतिहास और भारतीय संस्कृति के साथ मेल-मिलाप से अपनी संस्कृति बसती है, लेकिन 1959 में तिब्बत से रिफ्यूजी के रूप में तिब्बत के लोग धर्मशाला में ठहराए गए। परम पावन दलाईलामा तिब्बत की आजादी के लिए शांति प्रिय तरीके से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन तिब्बती लोगों की अत्यधिक बढ़ती जनसंख्या ने हिमाचली संस्कृति को मिटाने का काम भी शुरू कर दिया है। भागसूनाग में पवित्र मंदिर के साथ नहाने के लिए तिब्बती लोग जाते हैं, लेकिन मंदिर में पूजा नहीं करते, गोरखा लोग शिव के भी भक्त हैं और भारतीय संस्कृति से मेल रख कर
चलते हैं।
एक इच्छा जो आप गोरखा पहचान के साथ पूरा करना चाहती हैं?
गोरखा लोगों को हिमाचल प्रदेश में हेरिटेज समुदाय के रूप में पहचान मिलनी चाहिए, जिसने हिमाचल और देश के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कोई गोरखा लोक गीत जिसे आप हमारे साथ साझा करना चाहेंगी?
शिमला हिल-शिमला हिल, गुमियाओ मि रेल, लोहरी की रेली मा फसियानो रामरो और ईयो नेपाल, सिर ऊंचाली।
आपको जब हिमाचली व गोरखा होने का गर्व महसूस होता है !
हिमाचली होने का मतलब ही पहाड़ का होने से है, हम तो हमेशा से ही पहाड़ी हैं और पहाड़ी और हिमाचली होने पर हमें गर्व है। भारत में सबसे खूबसूरत प्रदेश हिमाचल ही है, लेकिन आज के समय में मैदानी क्षेत्रों के अधिक लोग पहाड़ों की तरफ पहुंचकर वातावरण को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। हम सब लोगों को अपनी संस्कृति और वातावरण को बचाने का प्रयास करना होगा।
— पवन शर्मा, नरेन धर्मशाला