ग्रामीण पर्यटन को संवारे बजट

By: Mar 9th, 2017 12:02 am

( डीआर सकलानी  लेखक, सरकाघाट, मंडी से हैं )

पर्यटन विकास हेतु  हमें गांवों में को मूलभूत सुविधाओं का नेटवर्क खड़ा करना होगा। इन गांवों में मनोरंजन पार्क, पार्किंग सुविधा, व्यवस्थित बाजार, सड़क मार्ग, मेले, उत्सव, समारोह, स्केटिंग रिंग, सिनेमा हाल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, तो पर्यटक खुशी-खुशी वहां जाना चाहेगा…

हिमाचल की सांस्कृतिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक विरासत अति प्राचीन है। प्राकृतिक नजारे, गांव-देहात की चरागाहें, पहाड़ी पहनावा, अनूठी कलाओं में बने मकान और कुदरत ने चप्पे-चप्पे पर जो रहमत बरसाई है, उससे प्रभावित होकर पर्यटक यहां आने को लालायित हो उठते हैं। नगरों-महानगरों की भागम-भाग भरी जिंदगी से तंग आकर पर्यटक सुकून की तलाश में सहज ही देवभूमि तक पहुंच जाते हैं। ऐतिहासिक महत्त्व के स्थानों के अलावा धार्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से कई अहम स्थल इन पर्यटकों को कभी निराश होकर नहीं लौटने देते। राज्य के कुल 55,673 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में से 60 फीसदी से भी अधिक भू-भाग वनों से आच्छादित है। इस वन संपदा ने प्रदेश की आबोहवा को अनूठी ताजगी से सराबोर किया है। हिमाचल प्रदेश में वन विभाग के लगभग 400 से भी ज्यादा विश्रामगृह मनमोहक व रमणीक स्थानों पर बनाए हैं, ताकि हिमाचल की वादियों में पहुंचे पर्यटकों को ठहरने संबंधी मुश्किलों का सामना न करना पड़े। यात्रियों व पर्यटकों के लिए तीन हजार बिस्तरों की निगम द्वारा व्यवस्था की गई है। 1990 में हिमाचल सरकार ने पर्यटन को मुख्य उद्योग का दर्जा दिया, तब से लेकर प्रदेश ने पर्यटन क्षेत्र में कई मंजिलें तय कीं और मीलों आगे का सफर तय करना अभी बाकी है। हिमाचल में पौधों की 3700 प्रजातियों में 175 प्रजातियां औषधीय पौधों की हैं। हर्बल स्टेट बनाने की जो योजना प्रदेश सरकार ने निर्धारित की हुई है, उसे धरातल पर उतारकर हर्बल टूरिज्म को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश का पर्यटन विकास निगम पर्यटकों को सुकून देने के बेशक कितने ही वादे और दावे करता हो, लेकिन यह अभी तक अपेक्षाओं पर खरा उतर नहीं पाया है। प्रदेश में पर्यटन उद्योग यदि कुछ परिणाम दे पा रहा है, तो यह विभागीय कसरतों से कहीं बढ़कर निजी या सामुदायिक प्रयासों के जरिए संभव हो सका है। हिमाचल में यदि पर्यटन के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे को मजबूत बना दिया जाए तो यह पहल राज्य पर्यटन के लिए अलग मिसाल पेश कर सकती है। धार्मिक पर्यटन के लिए तो देवभूमि प्रसिद्ध है ही। श्रद्धालु हर बार धार्मिक पर्वों, नवरात्र पर लाखों की तादाद में प्रमुख शक्तिपीठों तक पहुंचकर प्रदेश के खजाने को भरते हैं, परंतु सुविधाओं के अभाव में वे अपने आप को ठगा हुआ महसूस करते हैं। प्रदेश की सरकार के तमाम दावों के बावजूद जमीनी स्तर पर ढांचागत सुविधाओं का अभाव साफ दिखता है। कुदरती नजारों के सहारे बेशक हिमाचल पर्यटन आय से अपना खजाना भर रहा हो, पर हमें भविष्य में पर्यटन का एक ठोस ढांचा भी तो तैयार करना होगा। हिमाचल सरकार यदि होटल निर्माण के साथ-साथ अधोसंरचना में संसाधन लगाए, तो स्वरोजगार के अवसर सृजित होंगे। पहाड़ी राज्यों में गोवा जैसा राज्य अपनी आबादी के 20 फीसदी कार्यबल को पर्यटन उद्योग में समाहित कर सकता है, तो हिमाचल लाखों बेरोजगारों को क्या पर्यटन उद्योग में रोजगार के अवसर दे नहीं सकता। इस संभावना के साथ पहली शर्त तो यही नत्थी रहेगी कि प्रदेश पर्यटन विकास के लिए ढांचागत सुविधाओं का विकास करे। इसके तहत सबसे पहले हवाई और रेल कनेक्टिविटी को मजबूत आधार देना पड़ेगा। हिमाचल में साहसिक खेलों के लिए कई पर्यटकों को आमंत्रित किया जा सकता है, बशर्ते यहां इन खेलों के लिए अनुकूल माहौल तो तैयार हो। बीड़-बिलिंग को विकसित करके यदि प्रदेश ने इन संभावनाओं को अंगीकार करने की कोशिश की है, तो ऐसे अनेक स्थान अभी गुमनामियों की परतों तले दबे हैं। शासन-प्रशासन को इन स्थानों की पड़ताल करके इन्हें साहसिक खेलों के लिए विकसित करना होगा। प्रदेश का हर गांव कुछ कहता है, लेकिन पर्यटन विकास निगम या सरकार ने इसे कितना सुना? विडंबना भी यही कि हिमाचल में अनछुए पर्यटन स्थलों की जानकारी तो विभागीय अधिकारियों के पास नहीं है और न ही वे इस ओर विशेष प्रयास करते हैं। हिमाचल के गांव-देहात तक पर्यटकों को पहुंचाया जाए, तो जहां पर्यटन के नाम पर चंद शहरों में जमा होने वाली भीड़ बिखरेगी, वहीं पर्यटकों को एक नए हिमाचल से रू-ब-रू करवाया जा सकेगा। इसके लिए पहले गांवों में मूलभूत सुविधाओं का नेटवर्क खड़ा करना होगा। इन गांवों में मनोरंजन पार्क, पार्किंग सुविधा, व्यवस्थित बाजार, सड़क मार्ग, मेले, उत्सव, समारोह, स्केटिंग रिंग, सिनेमा हाल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, तो पर्यटक खुशी-खुशी वहां जाना चाहेगा। इसके बाद इन गांवों की जानकारी पर्यटकों तक पहुंचाने के लिए एक मजबूत प्रचार तंत्र विकसित करना होगा। पर्यटन निगम चाहे तो इसके लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से इन नवीन पर्यटन स्थलों का प्रभावी प्रचार कर सकता है। इसके अलावा सोशल मीडिया प्रचार का एक बेहतर माध्यम साबित हो सकता है। निस्संदेह इसके लिए वित्त की जरूरत रहेगी और सरकार आगामी वित्त वर्ष में पर्यटन विकास के लिए पर्याप्त फंड्ज की व्यवस्था करे। अगर रोजगारोन्मुख ग्रामीण तथा सामाजिक योजनाओं को पर्यटन विकास से जोड़ा जाए, तो निश्चय ही प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी के अलावा रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे? सरकार को बजट का 20 फीसदी पर्यटन उद्योग पर खर्च करना चाहिए, जिससे सरकार के राजस्व में इजाफा होगा, वहीं पहाड़ी राज्य खुद को दुनिया के समक्ष प्रभावी ढंग से पेश कर पाएगा।


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