जिंदगी तो बेवफा है, एक दिन ठुकराएगी

By: Mar 2nd, 2017 12:05 am

संगीतकार आनंद जी की पंक्तियों में जीवन से प्यार का दर्शन

newsमुंबई — जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी। जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले हिंदी सिने जगत के मशहूर संगीतकार आनंद जी का जीवन से प्यार उनकी संगीतबद्ध इन पंक्तियों में समाया हुआ है। आनंद जी का जन्म दो मार्च 1933 को हुआ जबकि उनके बड़े भाई कल्याणजी वीर जी शाह का जन्म 30 जून 1928 को हुआ था। बचपन के दिनों से ही कल्याण जी और आंनद जी संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे। हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी। बतौर संगीतकार सबसे पहले 1958 में प्रदर्शित फिल्म  सम्राट चंर्द्रगुप्त में उन्हें संगीत देने का मौका मिला, लेकिन फिल्म की असफलता के कारण वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। अपना वजूद तलाशते कल्याण जी को बतौर संगीतकार पहचान बनाने के लिए लगभग दो वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। वर्ष 1960 में उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद जी को भी मुंबई बुला लिया। वर्ष 1960 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘छलिया’ की कामयाबी से बतौर संगीतकार कुछ हद तक कल्याणजी-आनंद जी अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।  सिने करियर के शुरुआती दौर में उनकी जोड़ी निर्माताण्ण्निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले इस संगीतकार जोड़ी से फिल्म उपकार के लिए संगीत देने की पेशकश की। इस फिल्म में इंदीवर रचित गीत कस्मेवादे प्यार वफा के लिए दिल को छू लेने वाला संगीत देकर कल्याणजी-आनंद जी ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।  वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ में  नफरत करने वालो के सीने में  ‘पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ल’ जैसे रूमानी गीतों को संगीत  देकर कल्याणजी-आंनद जी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म सच्चा-झूठा के लिए कल्याणजी-आनंद जी ने बेमिसाल संगीत दिया। ‘मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनिया’ को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है।


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