मंदिरों में भक्तों का सैलाब

कुल्लू —  देवभूमि कुल्लू की परंपरा अनूठी व अद्भुत है। हालांकि वार्षिक कैलेंडर में 12 संक्रांति दशाई गई होती है, लेकिन देवभूमि में तेरहवीं संक्रांति मनाई जाती है। नए संवत की बेला पर कुल्लू में इस संक्रांति को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। भले ही नए संवत को देवभूमि हिमाचल में धूमधाम से मनाया गया, लेकिन देवभूमि कुल्लू में इस पर्व को संक्रांति के रूप में पारंपरिक तरीके से मनाया गया। पूरे प्रदेश के मंदिर नवरात्र के लिए सजे हैं और कन्यापूजन भी किया जा रहा। जिला कुल्लू में इस संवत को मनाने का अंदाज कुछ और है। नव संवत पर जहां देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की गई, वहीं धार्मिक नगरी मणिकर्ण घाटी के इलाकों में लोगों ने इस बेला पर कद्दू की भी बिजाई की और नवरात्र तक कद्दू की बिजाई की जाएगी। मान्यता यह है कि नव संवत् पर कद्दू की बिजाई की तो तैयार होकर कद्दू मीठे होते हैं। लोग इसे नए संवत के नाम से ही नहीं बल्कि कुल्लवी में नौंउआं साजा भी कहते हैं। धार्मिक नगरी मणिकर्ण घाटी की माता कैलाशना के पुजारी होतम राम का कहना है कि नए संवत को तेहरवीं संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है। मंदिरों में अन्य संक्रांतियों की तरह पूजा-अर्जना होती है।