मांगें नहीं मानी तो जाएंगे कोर्ट

शिमला  – अगर जल्द ही रेजिडेंट डाक्टरों के काम करने के घंटे तय नहीं हुए और आरडीए की अन्य मांगों पर सरकार गौर नहीं करती है तो आरडीए कोर्ट जाएगी। शिमला में रविवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में आरडीए के अध्यक्ष डाक्टर अजय जरयाल ने कहा कि वह कई बार अपनी मांगों को आईजीएमसी के प्रिंसीपल से लेकर मंत्री के समक्ष उठा चुके हैं, लेकिन आश्वसानों के अलावा कुछ भी नहीं मिला है। अजय ने कहा कि अस्पतालों में इलाज के लिए सुविधाओं का अभाव है और रेजिडेंट पर काम का अधिक बोझ है। यही वजह है कि डाक्टर कई बार आपा खो देते हैं और मरीजों के तीमारदारों के साथ कहासुनी हो जाती है। आरडीए अध्यक्ष ने साफ कहा कि अस्पतालों में कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इसके कारण मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। मरीज और उनके तीमारदार इसके लिए डाक्टरों को दोषी ठहराते हैं और उनके साथ लड़ाई-झगड़ा करते हैं। आईजीएमसी में करीब तीन सौ रेजीडेंट डाक्टर हैं। डाक्टर अजय ने कहा कि रेजिडेंट से 36 घंटों तक काम लिया जाता है। एक सप्ताह में एक रेजिडेंट को करीब सौ घंटे काम करना पड़ता है।  उन्हें मजबूरन न चाहते हुए भी यह काम करना पड़ता है, क्योंकि विरोध पर उन्हें पेपरों में फेल होने का डर रहता है। इसके साथ ही आईजीएमसी में रेजिडेंट के साथ पिक एंड चूज की नीति अस्पताल प्रशासन की ओर से अपनाने का आरोप भी आरडीए ने लगाया है। अजय ने कहा कि आईजीएमसी में पार्किंग में खड़ी गाडि़यों के चालान पुलिस द्वारा किए जा रहे हैं, लेकिन ये चालान केवल आरडीए के हो रहे हैं। इसके अलावा हास्टल अलॉटमेंट की मांग की ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि लक्कड़ गाजार के साथ बने होस्टल पिछले तीन सालों से खाली पड़े हैं। आरडीए पदाधिकारियों ने बताया कि रेजिडेंट को पिछले तीन माह से स्टाइपंड भी नहीं मिला है, जिसके कारण उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पीजी कोर्स में इनसर्विस कोटे को पहले की तरह बहाल करने की मांग भी आरडीए ने की है। आरडीए के पदाधिकारियों का कहना है कि डाक्टरों की सुरक्षा को लेकर जल्द से जल्द एक्ट बनाना चाहिए ताकि डाक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि वह इन मांगों को लेकर कई बार अस्पताल से लेकर सरकारी अधिकारियों और मंत्री से मिल चुके हैं, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं।