मार्च की बर्फबारी से शुभ संकेत

पिघलते ग्लेशियर से परेशान पर्यावरण वैज्ञानिकों को सुकून

भुंतर— प्रदेश के लगातार सिकुड़ते ग्लेश्यिरों से परेशान पर्यावरण वैज्ञानिकों को सुकून मिला है। प्रदेश की चोटियों में जनवरी से मार्च में हुई बर्फबारी ने पिछले साल से चल रही बर्फ की कमी दूर कर दी है। ग्लेशियोलॉजी विभाग के अनुसार इस बार पिछले साल की तुलना में करीब 20 से 30 फीसदी तक ज्यादा बर्फ प्रदेश की चोटियों में दर्ज हुई है। हिमपात ने प्रदेश के सभी ग्लेशियरों में नई जान डाली है, तो पर्यावरण वैज्ञानिकों और ग्लेशियोलॉजी महकमे की चिंता भी कम हुई है। सिकुड़ते ग्लेशियरों से परेशान पर्यावरण वैज्ञानिकों को पिछले साल बड़ा झटका लगा था। स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज की ग्लेशियोलॉजी विंग के विशेषज्ञों के अनुसार पिछले साल प्रदेश में स्थित चंद्रा बेसिन में 7209 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बर्फ पड़ी थी, तो भागा बेसिन में 4737 वर्ग किमी, मियाड़ बेसिन में 10313 वर्ग किमी, रावी बेसिन में 5264 वर्ग किमी, ब्यास बेसिन में 1686 वर्ग किमी, पार्वती बेसिन में 3744 वर्ग किमी, जीवा बेसिन में 1349 वर्ग किमी, बस्पा बेसिन में 2408 वर्ग किमी, पिन बेसिन में 3386 वर्ग किमी और स्पिति बेसिन में 19100 वर्ग किमी में बर्फ दर्ज हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार पीर पंजाल रेंज के उतरी भाग की चोटियों में दक्षिणी भाग की चोटियों के मुकाबले अच्छी बर्फबारी हुई थी। रावी, ब्यास, पार्वती, जीवा बेसिन में कम बर्फबारी इस दौरान दर्ज हुई थी, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार इस बार इन घाटियों में भी अच्छी बर्फबारी हुई है और यह पिछले साल की तुलना में 20 से 30 फीसदी तक अधिक अनुमानित बताई जा रही है। प्रदेश की बर्फ से ढकी प्रमुख 11 बेसिनों में करीब 1100 से अधिक हिमक्षेत्र हैं, जिनमें 30 फीसदी मध्यम उंचाई वाले इलाकों तक फैले हैं। स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज के वरिष्ठ साइंटिफिक अधिकारी डा. एसएस रंधावा की मानें तो पिछले साल की तुलना में इस बार बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं और यह शुभ संकेत हैं।