विरासती प्रतीकों की शिनाख्त करे बजट

By: Mar 7th, 2017 12:03 am

( रमेश चंद्र लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं )

प्रदेश में सशक्त पुरातत्त्व विभाग के बिना उपेक्षित धरोहरों की सुध कौन लेगा या ले रहा है? कला पोषक मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से अपेक्षा रहेगी कि वह इस संदर्भ में हिमाचल पुरातत्त्व विभाग की स्थापना का मार्ग करेंगे। ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए अतिरिक्त संग्रहालयों की स्थापना की भी जरूरत महसूस की जा रही है…

हिमाचल प्रदेश पुरातत्व क्षमताओं के लिहाज से एक समृद्ध प्रदेश है। सदियों पूर्व हमारे स्वर्णिम इतिहास के अनेक रहस्य और साक्ष्य भूकंप, बाढ़ व अन्य भौगोलिक कारणों से पृथ्वी के गर्भ में समा गए। ये आज चाहे पृथ्वी की परतों में हों या सतह पर उपेक्षित अवस्था में, लेकिन  इतिहास पुनर्निर्माण की ये कडि़यां विलुप्त होने के कगार पर हैं। हिमाचल प्रदेश की कोई भी सरकार अब तक पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान व अन्य प्रांतों की भांति अपने यहां स्वतंत्र, सशक्त मूलभूत ढांचे की खातिर एक अदद पुरातत्व विभाग की स्थापना नहीं कर पाई है। परिणामस्वरूप देश-विदेश का शोध व पर्यटक जगत प्रदेश की पुरातत्व क्षमताओं से अधिक लाभान्वित नहीं हो पाया, जिसके माध्यम से प्रदेश के बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी उपलब्ध हो सकते थे। पुरातत्व मानव समाज की सभ्यता और संस्कृतियों का अध्ययन करता है। विडंबना यह कि अधिकांश लोग यह तक नहीं जानते कि धरोहरें होती क्या हैं या इनके के संरक्षण का क्या लाभ होगा। इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है, यह आज का ज्वलंत प्रश्न है। धरोहरें हमारे आसपास ही तो विद्यमान हैं। गांव व कस्बों के जल स्रोतों, बावडि़यों, टियालों पर अकसर मूर्तियां दृष्टिगोचर होती हैं। प्राचीन स्मारक, मंदिर, कलात्मक बरतन, प्राचीन सिक्के, मृदभांड, किसी काल की प्रतीक ईंटें, नृविज्ञान की सामग्री, शिलालेख, मानव हड्डियों के अस्थि पंजर, सौ वर्ष या इससे भी अधिक पुरानी कला धरोहरें बहुमूल्य कलाकृति नियम, 1973 के तहत धरोहरों की श्रेणी में आती हैं। चीनी विद्वान यात्री ह्वेन त्सांग से लेकर जनरल कनिंघम, निकोलस रौरिक व अन्य विदेशी विद्वानों ने हिमाचल की पुरातत्व क्षमताओं को पहचानते हुए यहां आकर अन्वेषण व लेखन कार्य किए।

इन्होंने विश्व शोध जगत को हिमाचल की क्षमता से परिचित कराया। लार्ड कर्जन की खोजों के परिणामस्वरूप भारत वर्ष में तक्षशिला, नालंदा, मोहनजोदड़ो, भूरि सिंह संग्रहालय चंबा व अन्य पुरातत्त्व स्थल व साइट म्यूजियम विकसित हुए। ये भारत के अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय उदाहरण थे, परंतु हिमाचल में पुरातत्व किसी की प्राथमिकता में नहीं रहा प्रतीत होता है। यह हिमाचल पुरातत्व के लिए भारी क्षति है।प्रदेश में पुरातत्व विभाग के अस्तित्व में न होने के कारण अब तक कई प्रयोगों से हिमाचल प्रदेश अब तक वंचित रहा है। पुरातत्व का क्षेत्र एक तकनीकी एवं विशेषज्ञता का क्षेत्र है। उत्खनन क्रियाओं से प्राप्त सामग्री के विश्लेषण व निष्कर्षों से अतीत के मानव इतिहास को समझने की दृष्टि पैदा होता है। प्रदेश में सशक्त पुरातत्व विभाग के बिना उपेक्षित धरोहरों की सुध कौन लेगा या ले रहा है? प्रदेश का प्राचीन जनपद कुल्लूत प्रदेश वर्तमान कुल्लू का निरमंड क्षेत्र साइट म्यूजियम व वर्ल्ड साइट विकसित होने की क्षमता व पात्रता रखता है। शिमला का नीरथ क्षेत्र कुषाण साइट है। जिला कांगड़ा के बौद्ध, जैन, वैष्णव कला संस्कृति के अनूठे स्थल हैं, जिनमें चैतड़ू, पठियार, खनियारा, खबली, मानगढ़, पुराना कांगड़ा, पालमपुर के समीप लटाबा, मध्यकालीन साइट की संभावनाओं को समेटे हुए हैं। मसरूर के रॉक कट टेंपल के इर्द-गिर्द का एरिया पुरातत्त्व क्षमताओं से संपन्न है। सिरमौरी ताल जो कभी 10वीं, 11वीं शताब्दी में सिरमौर के राजाओं की राजधानी रहा है, भीषण बाढ़ से तबाह हो गया था। स्थल पर दबे पुरावशेष बाहर निकलने के लिए हिमाचल पुरातत्व विभाग की टीम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। नाहन के समीप सुकेती क्षेत्र में आदिमानव के पाषाण औजार, फोसिल्ज व जीवाश्म प्रकाश में आए हैं। यहां व्यापक रूप से पुरातत्व अभियानों की आवश्यकता है। नाहन और पांवटा साहिब में साइट म्यूजियम की स्थापना की आवश्यकता है, ताकि सिरमौर की उपेक्षित पुरातत्व धरोहरों को संरक्षण प्रदान किया जा सके।

किन्नौर और स्पीति घाटी में राज्य संग्रहालय शिमला के दल द्वारा मानव इतिहास व विकास पर प्रकाश डालती अमूल्य सामग्री संग्रहित की गई है। इन भागों में व्यापक स्तर पर पुरातत्व अभियानों की आवश्यकता है। चंबा शहर में उत्तर गुप्तकलीन ईंटें प्रकाश में आई हैं। भरमौर में आठवीं शताब्दी की बौद्ध प्रतिमा का मिलना और चोरी हो जाना इस क्षेत्र में बौद्ध कला संस्कृति के इतिहास व अध्याय का दुखद अंत है। व्यवस्था की उदासीनता के कारण मूर्ति चोर अभी तक पकड़ में नहीं आए हैं। पुरातत्व विभाग के बिना अगली कडि़यां कौन जोड़ेगा। मंडी की धरोहरें मानव विनाश का शिकार हो रही हैं। मंडी का दमदमा महल क्षरण की स्थिति में पहुंच चुका है। यहां की उपेक्षित धरोहरों को संरक्षण प्रदान किया जा सकता है। कला पोषक मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से अपेक्षा रहेगी कि वह हिमाचल प्रदेश में पुरातत्व विभाग की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हिमाचल की धरोहरें हमारे पूर्वजों व रियासत के अन्य राजा-महाराजाओं की देन हैं। वर्तमान व भविष्य की पीढ़ी के लिए इनका संरक्षण शासन-प्रशासन का साझा दायित्व है। कहना न होगा कि इस दिशा में अगर एक प्रभावी पहल सरकार की ओर से हो जाए, तो पर्यटन की कई संभावनाएं एक साथ पैदा हो जाएंगी। उम्मीद है कि अब तक उपेक्षित होती रही हिमाचल पुरातत्व विभाग की परिकल्पना इस बजट सत्र में हकीकत से रू-ब-रू हो पाएगी।


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