असफल होने पर प्रयास का तरीका बदलें लक्ष्य नहीं

By: Apr 5th, 2017 12:05 am

अपना एक लक्ष्य बनाएं और उसे बार-बार न बदलें। हमेशा अपने लक्ष्य को याद रखें। यदि किसी वजह से आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता हासिल न हो पा रही हो तो तत्काल लक्ष्य को न बदलकर, लक्ष्य को प्राप्त करने के अपने तौर-तरीकों और कार्य प्रणाली को बदलें…

पिछले कुछ वर्षों में स्मार्टफोन की उपलब्धता और इंटरनेट का प्रयोग बढ़ने के चलते आज वैश्विक ज्ञान का भंडार हमारी अंगुलियों के दायरे में सिमट चुका है। इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यमों – टीवी चैनल्स, अनेकों बहुउपयोगी एप्प, सोशल साइट्स जैसे – व्हाट्स एप्प, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिवटर और इंटरनेट इत्यादि के प्रचलन के कारण सभी प्रकार के ज्ञान की बाढ़ को इन माध्यमों पर रोजाना प्रचारित- प्रसारित होते हुए देखा जा सकता है। इसी वजह से कहीं-कहीं पाठ्य पुस्तकों के इतर अन्य ज्ञानोपयोगी पुस्तकों-पत्रिकाओं को पढ़ने की प्रवृत्ति भी घट रही है। इन दिनों अधिकांश लोगों में एक नई सोच और देखने को मिल रही है और वह है  ‘हमें सब कुछ पता है’ अथवा जरूरत पड़ी तो गूगल पर सर्च कर लेंगे। जाहिर सी बात है कि स्वयं न पढ़ने की आदत विकसित न हो पाने के कारण हम प्रायः कई रोचक ज्ञानवर्द्धक बातों को सीखने से भी वंचित रह जाते हैं। आज, ‘हमें सब पता है’ वाली सोच को तत्काल बदलने की जरूरत है और हमें अभी बहुत कुछ जानना, सीखना है वाली सोच और नजरिए को अपने अंदर विकसित करने की जरूरत है। वर्तमान युग में हमारे इर्द-गिर्द हजारों प्रेरणास्पद सफलता की कहानियां मौजूद हैं। जरूरत है अपने आपको पढ़़ने और नवीन ज्ञान एवं बातों को सीखने की और प्रवृत्त करने की। ऐसा हम अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव लाकर सहज ही कर सकते हैं। अच्छे लोगों की संगति, सुंदर ज्ञान और अच्छी पुस्तकों के बलबूते न केवल हमारी एक नवीन सोच विकसित होती है बल्कि स्वयं में बदलाव लाकर हम सभी सफलता पथ पर तेजी से अग्रसर हो सकते हैं। वर्तमान युग ‘कम्यूनिकेशन स्किल’ का है, व्यवहार कुशलता का है।  हम अपना सामाजिक कामकाजी दायरा व्यापक बनाकर ही इस दिशा में परिपक्वता हासिल कर सकते हैं। इसके अलवा हमें निरर्थक वार्तालाप से अपने आपको दूर रखने की भी जरूरत है। हमें अनावश्यक बहस करने की आदत से बचने और सार्थक वार्तालाप द्वारा अपनी समस्याओं का हल खोजने पर ध्यान देना चाहिए। अपना एक लक्ष्य बनाएं और उसे बार-बार न बदलें। हमेशा अपने लक्ष्य को याद रखें। यदि किसी वजह से आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता हासिल न हो पा रही हो तो तत्काल लक्ष्य को न बदलकर, लक्ष्य को प्राप्त करने के अपने तौर-तरीकों और कार्य प्रणाली को बदलें।  अपने प्रत्येक कार्य को समय पर समाप्त करने के लिए समय की पाबंदी और समय के प्रबंधन पर जोर दें। इस बात से हम सभी भली-भांति परिचित ही हैं कि जिस प्रकार नदी का पानी बहकर नीचे की ओर जाकर वापस पीछे नहीं लौटता है, उसी प्रकार बीता हुआ समय भी कभी लौटकर नहीं आता है। अतएव समय की कद्र करें। अपनी मानसिक भावनाओं एवं दिमाग को नियंत्रित रखें और इन्हें फिजूल की सोच में न उलझाएं।  मानसिक तनाव को कभी भी अपने नजदीक न फटकने दें। हमें अपनी पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त दूसरी ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों को पढ़ने में भी रुचि लेनी चाहिए। कुएं के मेंढक न बने रहें और अपने अर्द्धज्ञान को जबरदस्ती दूसरों पर न थोपें। अपने सीखने का दायरा व्यापक बनाएं। समय-समय पर धार्मिक पुस्तकें भी पढें क्योंकि हमारी संस्कृति की अनेक गूढ़ बातों एवं रहस्यों की जानकारी हमें इन्हीं पुस्तकों से प्राप्त  होती है। आज से 40-50 वर्ष पूर्व गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक  ‘कल्याण’ और उसका संग्रह ग्रंथ रूप में प्रायः घरोंं में उपलब्ध रहता था। अपनी बाल्यावस्था में उसमें वर्णित कहानियों, उपदेशों और श्लोकों का अनुवाद पढ़कर मेरे जैसे विद्यार्थियों को  भी अपनी प्राचीन संस्कृति और ज्ञान की गूढ़ एवं महत्त्वपूर्ण जानकारियों को आत्मसात करने की प्रेरणा मिलती थी। भगवद् गीता में श्री कृष्ण ने ज्ञान का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया है कि बुद्धि का अर्थ है नीर-क्षीर विवेक करने वाली शक्ति और ज्ञान का अर्थ है – आत्मा तथा पदार्थ को जान लेना। लिहाजा हमें हमारे पास उपलब्ध संस्कृति जन्य ज्ञान को पढ़ने समझने और तदनुरूप आचरण करने की हमेशा आवश्यकता रहती है ताकि हम सभी अपनी जीवन रूपी नैय्या को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा सकें।

-अनुज कुमार आचार्य, बैजनाथ


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