भारत का इतिहास
भारतीयों ने की संविधान सभा बनाने की मांग
1919 के अधिनियम के विरोध में स्वयं भारतीयों द्वारा भारत का संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा की मांग निहित थी। इससे पहले दिसंबर,1917 में देहली में कांग्रेस के 33वें अधिवेशन में एक प्रस्ताव के द्वारा यह मांग की गई थी कि आत्म निर्णय का सिद्धांत भारत पर लागू किया जाए। किंतु इस सबके बावजूद स्वयं भारतीयों द्वारा भारत का संविधान बनाए जाने की बात स्पष्ट शब्दों में सबसे पहली बार महात्मा गांधी ने 5 फरवरी, 1922 को कही। यद्यपि उन्होंने संविधान सभा शब्दबंध का प्रयोग नहीं किया, फिर भी उनकी बात में एक ऐसी प्रतिनिधिक संस्था का बीज निहित था। इसी वर्ष श्रीमती एनी बेसेंट के सुझाव पर शिमला में केंद्रीय मंडल के दोनों संदनों के सदस्यों की एक सभा हुई, जिसमें संविधान निर्माण के लिए एक सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया गया। 1923 में फिर एक सभा की गई, जिसमें केंद्रीय और प्रांतीय विधान मंडलों के सदस्य उपस्थित थे। इस सभा ने संविधान के आवश्यक तत्त्वों की एक रूपरेखा तैयार की, जिसके अनुसार भारत को अन्य स्वशासित उपनिवेशों के साथ बराबरी का दर्जा दिया गया था। एक वर्ष बाद फरवरी 1924 में इस सभा ने एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया। सम्मेलन के अध्यक्ष थे सर तेज बहादुर सप्रू। इस सम्मेलन की बैठक हुई अप्रैल 1924 में । बैठक में एक भारतीय कॉमनवैल्थ विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया। दिसंबर 1924 में सम्मेलन की मुंबई बैठक में विधेयक पर आगे विचार हुआ। कुछ संशोधनों के बाद विधेयक जनवरी 1925 में देहली में हुए सर्वदलीय सम्मेलन के सामने रखा गया। सर्वदलीय सम्मेलन महात्मा गांधी की अध्यक्षता में हुआ। आगे और भी विचार विनिमय संशोधनों और परिमार्जन के बाद विधेयक को ब्रिटिश संसद के सामने प्रस्तुत कराने का प्रयास किया गया। पत्रक पर 43 प्रमुख भारतीय नेताओं के हस्ताक्षर थे। श्रमिक दल ने कुछ संशोधनों के साथ विधेयक को स्वीकार कर लिया। दिसंबर 1925 में विधेयक हाउस ऑफ कामंस में पुनः स्थापित किया गया तथा उसका प्रथम वाचन हो गया। बाद में आम चुनावों में श्रमिक दल की हार के साथ इस विधेयक का भाग्य भी सो गया, किंतु नितांत सांविधानिक और शांतिपूर्ण ढंग से भारत को स्वशासन का अधिकार दिलाने तथा ब्रिटिश संसद के माध्यम से उसका नया संविधान लागू करने का यह एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था। इसी बीच 1924 में केंद्रीय विधान सभा में स्वराज दल के नेता, पंडित मोतीलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो आगे चलकर राष्ट्रीय मांग के नाम से विख्यात हुआ।
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