अंग्रेजों के बसाए शिमला में अब कहां सुकून

By: Apr 24th, 2017 12:08 am

फूलों से लदी पहाड़ों की रानी अब बदल गई है कंकरीट के जंगल में

newsशिमला  —  गर्मियों में गर्मी, बरसात में जमीन धंसने की घटनाएं, पेयजल किल्लत, वानर व आवारा कुत्तों की समस्याओं के साथ शहरीकरण की दिक्कतों से दो-चार होते वर्तमान शिमला को अंग्रेजों ने एक ऐसी सैरगाह के रूप में बसाया था, जो स्थानीय लोगों व पर्यटकों को सुकून के दो पल जुटा सके। वह शिमला फूलों से लदा होता था, बुरांस की महक से जंगल मदमाते थे। शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिसके पास फुलवारी न महकती हो। अब वह अतीत की यादें हैं। अब स्पर्धा है,तो मकान खड़े करने की। न सड़क, न ही पर्याप्त पगडंडी, बस बहुमंजिला इमारतें उस ब्रिटिशकालीन योजना को तोहमत देती दिखती हैं, जिसने इसे देश की कभी ब्रिटिशकालीन राजधानी का दर्जा दिया था। तब न वाहनों का कोलाहल था, न ही आबादी की दिक्कत। जितना भी आधारभूत ढांचा था, वह 20 हजार की आबादी के लिए पर्याप्त था। शिमला पहले शिमला तक ही मौजूद था, अब संजौली, ढली के साथ-साथ न्यू शिमला से भी आगे शहर पांव पसार रहा है, मगर जो सहूलियतें आधुनिक शहर के लिए आवश्यक थीं, वे आज तक यहां के लोगों को मयस्सर नहीं है। करीबन 35 वर्षों पहले शिमला में नियमित दो वक्त पानी आता था। सफाई का समुचित प्रबंध था। हालांकि उस दौरान ड्राई टायलट्स की ही शहर में व्यवस्था थी। अब नगर निगम ने डोर-टू- डोर कलेक्शन के जरिए व्यवस्था को सुधारने का प्रयास जरूर किया है। शहर सीवरेज व्यवस्था से जुड़ा है, मगर कंकरीट के जंगल उस हरित पट्टी को लील रहे हैं, जो कभी शिमला का वैभव समझा जाता था। इसे देवदार यानी देवताओं का पेड़ की संज्ञा भी इसी नजरिए से दी गई थी, क्योंकि लोग तब इन्हें पूजते थे। फर्क देखिए अब धूप के लिए इन्हें सुखाया जा रहा है। शिमला के फाइव बेंच, फोरेस्ट रोड़ के साथ-साथ कई ऐसे अन्य क्षेत्र हैं, जहां आधुनिक हवेलियों के आसपास सूखे पेड़ों की बस्तियां व्यवस्था को ताना देते मिलती हैं। पहले लोग वीकेंड पर महकते जंगलों में पिकनिक मनाने जाते थे। अब मंदिरों में लंगरों व शहर के आसपास चिलचिलाती धूप में पुरानी परंपरा सैर-सपाटे तक सीमित हो गई है। शायद ही ऐसा कोई वार्ड होगा, जहां बच्चों को खेलने के लिए खुले पार्क या बड़े मैदान हों। शिमला की नगर निगम सबसे पुरानी निगमों में शूमार है, मगर शहर के प्राचीन गौरव को कैसे बरकरार रखा जाए, इसके लिए कोई योजना नहीं दिखती। कहने को हेरिटेज कमेटी का भी गठन किया गया है, मगर जो पुराने मकान सहेजे जाने चाहिए थे, उन पर नजर नहीं रखी गई। अब मकान मालिक उनमें भी व्यवसाय ढूंढ रहे हैं। ऐसे सैकड़ों मकान धूल में मिल चुके हैं, जो शिमला की पहचान थी। इन्हीं सब के नतीजतन शिमला का तापमान बढ़ा है। गर्मियों में पर्यटक तो एक तरफ, स्थानीय लोग भी दिन में बाहर नहीं निकल सकते। सुबह-शाम जरूर आबोहवा बेहतर है, मगर दिन बदले हैं। यही वजह है कि शहर में अब पंखे व एसी का प्रचलन बढ़ा है। न्यू शिमला दिन में सोलन की तरह तपता है।

ये है नई तरक्की

संजौली व ढली में आधुनिक मकान ऐसे बनाए गए हैं कि किसी भी आपातकालीन स्थिति में लोगों को निकालने के लिए सड़क तक की सुविधा नहीं है। एनडीएमए ने इसे बेहद खतरनाक माना है, मगर व्यवस्था फिर नहीं बन सकी।

कुछ ऐसा है शिमला  का इतिहास

सन 1814-16 के गोरखा युद्ध के बाद सैनिक टुकडि़यों के सुरक्षित जगह पर आराम के लिए 1819 में शिमला की स्थापना की गई थी। शिमला ठंडी जलवायु, सुरम्य प्राकृतिक दृश्यों, हिमाच्छादित पहाड़ी दृश्यों, चीड़ और देवदार के जंगलों व औपनिवेशिक वास्तु के आकर्षक शहरी भू-दृश्यों के लिए विख्यात था। इन्हीं कारणों से यह भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था। सन 1864 में शिमला को अंग्रेजों की राजधानी बनाया गया था। शिमला एक पर्यटक स्थल के रूप में भी मशहूर है। शिमला की खोज अंग्रेजों ने सन 1819 में की थी। चार्ल्स कैनेडी ने यहां पहला ग्रीष्मकालीन घर बनाया था। जल्दी ही शिमला लॉर्ड विलियम बेंटिंक की नजरों में आ गया, जोकि सन 1828 से 1835 तक भारत के गवर्नर जनरल थे। 19वीं सदी के अतं में यहां ब्रिटिश वाइसरॉय के आवास (राष्ट्रपति निवास) का निर्माण हुआ था। आजकल इसमें इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ  एडवांस्ड स्टडी है।

अब बारिश को करना पड़ता है इंतजार

शिमला की आबोहवा कंकरीट की जंगल ने किस कद्र बदली है, इसकी मिसाल तापमान परिवर्तन से ली जा सकती है। पहले 20 डिग्री अधिकतम तापमान बढ़ते ही बारिश हो जाया करती थी, अब 30 डिग्री का भी इंतजार खत्म हो चुका है।

पहले कुएं में स्टोर होती थी बर्फ

अंग्रेजों ने आईसक्रीम व कुल्फियां जमाने के लिए फाइव बैंच और जाखू में प्राकृतिक बर्फ स्टोर करने के लिए कुएं बना रखे थे, जो ढलानदार टीनयुक्त छतों से कवर होते थे। अब इन क्षेत्रों में इनके निशान बचे हैं। आवाजाही के लिए यहां मानवचालित रिक्शा चलते थे, घोड़ों का प्रचलन बहुत ज्यादा था। अब घोड़े तो दिखते हैं, मगर यादें सिमट चुकी हैं। शहर में प्राकृतिक जल प्रपात व स्रोत लोगों की जरूरतें पूरी करते थे, मगर अब उन्हें निजी स्वार्थों ने बंद कर दिया है।

शिमला में सवा लाख वाहन

शिमला में अंग्रेजों के जमाने में कारें व अन्य वाहन गाहे-बगाहे ही देखने को मिलते थे। अब तरक्की के नए दौर में इनकी संख्या सवा लाख का आंकड़ा पार कर रही है। व्यवस्था वही पुरानी, वही सर्कुलर रोड और वही वार्डों की पुरानी सड़कें।


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