एसएमसी… अब तीन साल, फैसले पर सवाल

भुंतर, —  बच्चों को सरकारी स्कूलों में बेहतर शिक्षा प्रदान करने के दबाव से जूझ रहे शिक्षा महकमें का नया फरमान चर्चा में है। महकमे ने सर्वशिक्षा अभियान के तहत अजीबोगरीब फैसले को लेकर स्कूलों में गठित होने वाली प्रबंधन समितियों का कार्यकाल एक साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया है। लिहाजा, एसएमसी की कमान उन अभिभावकों के हाथ से खिसकने लगी है, जिनके बच्चे आखिरी कक्षाओं में पढ़ रहे हैं। बता दें कि इससे पहले स्कूलों में एसएमसी एक साल के लिए गठित की जाती रही है। नए सत्र के आरंभ होने के साथ उक्त समिति का गठन किया जाता था और 31 मार्च को इसका कार्यकाल समाप्त हो जाता था, लेकिन अब जो कार्यकारिणी गठित की जा रही है, उसका कार्यकाल साल 2020 तक होगा। हालांकि उन स्कूलों में एक या दो साल बाद कार्यकारिणी में फेरबदल होगा, जहां अंतिम दो सालों के बच्चों के अभिभावकों की ताजपोशी हो रही है। एसएसए/ आरएमएसए के अधिकारियों की मानें तो नए फैसले के बाद एसएमसी की भूमिका और ज्यादा सशक्त हो जाएगी और स्कूल विकास में प्रभावी साबित होगी। दूसरी ओर जानकारों की मानें तो उन अभिभावकों का एसएमसी का अध्यक्ष बनने का रास्ता अप्रत्यक्ष तौर पर बंद हो गया है, जिनके बच्चे अंतिम साल में हैं। जानकारों के अनुसार एसएमसी बैठकों में उन अभिभावकों की ताजपोशी पर सहमति नहीं बन पा रही है, जिनका कोई भी बच्चा आने वाले सालों में स्कूलों में नहीं पढ़ेगा और इन अभिभावकों के अरमानों पर पानी फिर रहा है। इसी के चलते उक्त निर्णय को लेकर प्रदेश के हजारों अभिभावकों में नाराजगी है। इनके अनुसार अगर नौसिखिए व्यक्ति कार्यकारिणी में चुने गए तो तीन सालों तक स्कूल और बच्चों को इसके परिणाम भुगतने होंगे। फैसले पर शिक्षा विभाग के ही कई आलाधिकारी भी इस पर सवाल उठा रहे हैं और अटपटा करार दे रहे हैं। कुल्लू जिला के प्राथमिक शिक्षा विभाग के उपनिदेशक कुलवंत पठानिया ने बताया कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत यह फैसला लिया गया है। उनके अनुसार इस फैसले की आड़ में उन अनुभवी अभिभावकों की सेवाओं का मौका स्कूल को नहीं मिलेगा जिनके बच्चे अंतिम कक्षा में है।