चार साल में आवारा कुत्ते बढ़े या घटे, कोई पता नहीं

विभाग ने 2003, 2012 के बाद नहीं की गणना, अब आउटसोर्सिंग के सहारे होगी गिनती

शिमला  – आवारा कुत्तों का आतंक प्रदेश में हर जगह है। कई संगठन और लोग आवारा कुत्तों की समस्या से निजात दिलाने के लिए ठोस उपाय करने की मांग कर रहे हैं। प्रदेश के शहरी स्थानीय निकाय आवारा कुत्तों की समस्या से जूझ रहे हैं। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक  वर्ष 2003 में प्रदेश में दो लाख आठ हजार 264 आवारा कुत्ते गिने गए हैं, जबकि वर्ष 2012 में इनकी दूसरी गणना में एक लाख 75 हजार आवारा कुत्ते थे। अधिकारियों का कहना है कि आवारा कुत्तों की संख्या में कमी आ रही है, क्योंकि इनकी नसबंदी और टीकाकरण का काम लगातार जारी है। कई साल से आवारा कुत्तों की गणना ही विभाग ने नहीं की है, लेकिन इस बार कुत्तों की गणना करने की तैयारी की जा रही है। स्टाफ की कमी के चलते गणना का कार्य आउटसोर्सिंग पर किया जाएगा। 17 फरवरी को शिमला में 18 मामले सामने आए, जिसमें डीडीयू अस्पताल में लोग इलाज के लिए पहुंचे। इसमें नौ आवारा कुत्तों के काटने के तथा पांच पालतू कुत्तों के और शेष बंदरों के काटने के मामले सामने आए हैं। शिमला में कुत्तों को पकड़ने के लिए दो डॉग कैचर वैन तैनात हैं, वहीं इनके लिए डॉग हट भी बनाया गया था। मार्च 2013 में प्रदेश हाई कोर्ट ने आवारा कुत्तों की समस्या पर कड़ा सांज्ञान लेते हुए नगर निगम शिमला को तीन महीने के अंदर शहर को आवारा कुत्तों से मुक्त करने के आदेश जारी किए थे। इसके लिए हाई कोर्ट ने निगम कोर्ट ने आदेशों में कहा था कि आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए एमसी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि कुत्तों के साथ दया दिखाई जाए और उन्हें इस दौरान किसी भी तरह का शारीरिक कष्ट न हो। कोर्ट ने यह भी कहा था कि आवारा कुत्तों की उपस्थिति ठीक नहीं दिखती और महिलाओं और बच्चों के लिए भी परेशानी का सबब बन रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में एक संस्था ने इस बारे में याचिका दायर की जिसके चलते हाई कोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया था।

…और नहीं बन पाए डॉग हट

आवारा कुत्तों के लिए डॉग हट बनाने की आवाज विभिन्न स्वंयसेवी संस्थाओं की ओर से उठाई जाती है। इसके बाद योजना भी बनी, लेकिन सिरे नहीं चढ़ पाई। डॉग हट चलाने की सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर कुत्तों के डॉग हट में रखा जाता है, तो उनके खानपान का भी ध्यान रखना होगा, लेकिन इन कु त्तों को खाना देने और इन डॉग हट को चलाने के लिए अभी तक एक भी संस्था आगे नहीं आई है।

सात सौ को पहुंचाया अस्पताल

डीडीयू स्थित स्टेट इंटराडर्मल एंटी रैबीज क्लीनिक एंड रिसर्च सेंटर में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक केंद्र में वर्ष 2016 में जानवरों द्वारा काटे जाने के कुल 3112 मामले दर्ज किए गए हैं। सेंटर के पास दर्ज आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2016 में पेट्स बाइट के एक हजार से अधिक मामले सामने आए, जबकि आवारा कुत्तों के काटने के करीब साढ़े सात सौ मामले ही दर्ज किए गए। हैरानी की बात है कि 2016 में डीडीयू केंद्र में एक मामला ऐसा भी आया, जिसमें एक आदमी ने ही दूसरे आदमी को काट दिया था। डीडीयू में कुत्तों, बंदरों, चूहों, बिल्ली, मुर्गे द्वारा काटे जाने के भी मामले हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि आवारा कुत्तों द्वारा काटा जाना खतरनाक है, लेकिन पालतू जानवरों से भी रैबीज का बराबर खतरा होता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक रैबीज का 98 फीसदी खतरा कुत्तों के काटने से होता है। आईजीएमसी की ओर से किए गए एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक पूरे हिमाचल में सालाला डॉग बाइट के करीब 24 हजार केस आते हैं।

किस जानवर ने कितने काटे

जानवर    मामले

आवारा कुत्ते           766

बंदर       743

लंगूर       44

बिल्ली     97

चूहे        58

खरगोश    4

सूअर      2

मुर्गा        1

मैन बाइट  1

पालतू जानवर  1068